अगर हम बागबाँ होते तो गुलशन को लूटा देते
पकड कर दस्त बुलबुल का चमन से जा मिला॥
जो होते बाग के माली, लगाते फूल की डाली।
गुँथाकर हार फूलों का जो दिलबर को पहना देते॥
जो होते बाग के भँवरे, कली भीतर छुपे रहते।
मुहब्बत का मजा लेते, सुबह होते निकल जाते॥
जो दिल मेरा पतँग होता, उडाते गम की डोरी से।
लगा कर इश्क का माँजा, पतँग तेरी कटा देते॥
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