राष्ट्रीय पिता मोहनदास करमचन्द गांधी का गांधीवाद दशकों का लम्बा अरसा गुजर जाने के बाद आज भी प्रासंगिक है। महात्मा गांधी ने हमेशा अन्याय पर न्याय की विजय के लिए, असत्य पर सत्य की विजय के लिए तथा हिंसा पर अहिंसा की विजय के लिए संघर्ष किया। महात्मा गांधी के जीवन का सिद्घांत सदैव “जियो और जीने दो’ का रहा। सत्य, प्रेम, अहिंसा की जो मशाल दक्षिण अफ्रीका जैसे देश में रंगभेद के खिलाफ महात्मा गांधी ने जलाई थी, उसका प्रकाश सारी दुनिया में फैला था। हाड़-मांस की कमजोर कद-काठी वाले इस महात्मा ने जिस सच्चाई, ईमानदारी और अहिंसा के बल पर हिन्दुस्तान जैसे देश से अंग्रेजों को भगाया था, वह अपने आप में आज भी एक बड़ा ही हैरतअंगेज कारनामा है। एक वरिष्ठ गीतकार ने ठीक ही लिखा है-
दे दी हमें आजादी,
बिना खड्ग बिना ढाल।
साबरमती के सन्त,
तूने कर दिया कमाल।।
राष्टपिता महात्मा गांधी का पूरा जीवन अपने आप में एक जीवन-दर्शन है। वे आज के भारत के निर्माता थे। वास्तविक भारत भाग्य विधाता थे। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई लड़ते समय कभी भी अपने दुश्मन अंग्रेजों तक का बुरा नहीं सोचा। कई अंग्रेज भी गांधीजी की सत्य-अहिंसा के कायल थे। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह, असहयोग आन्दोलन, भारत छोड़ो, दाण्डी मार्च, पूर्ण स्वराज इत्यादि न जाने कितने नामों से अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ी। गांधीजी की सत्य, निष्ठा, प्रेम और अहिंसा की भावना से प्रेरित होकर मोतीलाल नेहरू जैसा अंग्रेज भक्त वकील भी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने पर उतर आया था। महात्मा गांधी के प्रभाव और प्रेरणा से लाखों भारतीय अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे। गांधीजी ने अंग्रेजों के खिलाफ जितनी भी लड़ाइयां लड़ीं, वे सभी सत्य और अहिंसा के दम पर लड़ीं। आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी द्वारा कभी भी हिंसा और हथियार का प्रयोग नहीं किया गया। महात्मा गांधी समाजसेवक और आजादी के मसीहा के अलावा एक सुलझे हुए समाज- सुधारक थे। अछूतों तथा पिछड़ों के लिए “हरिजन’ शब्द का प्रयोग सबसे पहले महात्मा गांधी ने ही किया था। महात्मा गांधी किसी भी प्रकार की हिंसा के प्रबल विरोधी थे।
विधवा उत्थान, छुआछूत की समाप्ति, दलित उत्थान, सामाजिक न्याय और समरसता, हिन्दू-मुस्लिम एकता, मजदूर किसान उत्थान आदि के लिए राष्टपिता महात्मा गांधी ने जीवन भर संघर्ष किया।
महात्मा गांधी हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे। महात्मा गांधी की इच्छा देश में राम -राज्य स्थापित करने की थी। उनके लिए सम्पूर्ण मानव जाति एक समान थी। वे यह भजन बड़े चाव से गाते थे-
रघुपति राघव राजाराम,
पतित पावन सीताराम।
ईश्र्वर अल्लाह तेरो नाम।
सबको सम्मति दे भगवान।।
राष्टपिता महात्मा गांधी ने अपने जीवन-काल में कांग्रेस को समाप्त करने की इच्छा व्यक्त की थी। वे जानते और समझते थे कि कांग्रेस की स्थापना का मूल उद्देश्य अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़कर देश को आजाद कराना था, जब देश को आजादी मिल गई तो कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य भी पूर्ण हो गया, परन्तु पंडित जवाहरलाल नेहरू की जिद के चलते कांग्रेस को समाप्त नहीं किया जा सका है और गांधीजी की इच्छा अधूरी रह गयी। राष्टपिता महात्मा गांधी किसी भी कीमत पर यह नहीं चाहते थे कि हिन्दुस्तान का बंटवारा हो, परन्तु पंडित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना की चालों के आगे महात्मा गांधी जैसे महान राष्ट निर्माता को अपने दिल पर पत्थर रखकर हिन्दुस्तान का बंटवारा होते देखना पड़ा, जो भारत और पाकिस्तान के रूप में हुआ। जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री बने तथा मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के वजीरे आजम। दरअसल, पंडित जवाहरलाल नेहरू कई कारणों के चलते गांधीजी के अति प्रिय थे और यही वजह थी कि नेहरूजी की हर जायज व नाजायज मांग को गांधीजी को मजबूरन स्वीकार करना पड़ता था। गांधीजी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी भी नेहरू को काफी मानती थीं, परन्तु देश के विभाजन से महात्मा गांधी काफी दुःखी थे।
महात्मा गांधी ने जिन्दगी भर सत्य-प्रेम और अहिंसा का पाठ पूरे विश्र्व को पढ़ाया, परन्तु जीवन की अंतिम सांस में उन्हें हिंसा का शिकार बनना पड़ा। 30 जनवरी, 1948 को सुबह 11 बजे नाथूराम गोडसे ने उस समय गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी, जब वे प्रार्थना सभा में जा रहे थे। गांधीजी के मुंह से आन्तम शब्द “हे राम’ निकला था। आज जब पूरा विश्र्व आतंकवाद की चपेट में है, तब गांधीजी का गांधीवाद और गांधीदर्शन हमें नयी प्रेरणा देता है।
– दुर्गाप्रसाद शुक्ल “आजाद’
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