नेपाल के राजवंश के संबंध में जोनाथन ग्रेगसन के इतिहास की मानें तो इस राजवंश की तकदीर एक कटोरा दही से तय हुई थी। ग्रेगसन की किताब में इस बात का उल्लेख है कि 18वीं सदी में राजा पृथ्वी नारायण शाह नेपाल के एक छत्र सम्राट थे। उन्होंने इस देश को पहली बार एकीकृत राष्ट के रूप में संगठित किया। कहा जाता है कि राजा ने एक योगी को एक कटोरा दही दिया। वह योगी और कोई नहीं गोरखनाथ थे। योगी ने दही खा लिया, लेकिन इसके बाद राजा यह देख हक्का-बक्का रह गए कि योगी ने पूरी दही उनके शरीर पर उल्टी कर दी। राजा ने किसी तरह उस उल्टी को अपने शरीर पर आने से बचा लिया। यह बात योगी को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने ाोधित होकर राजा को शाप दे दिया। पृथ्वी नारायण शाह को योगी ने शाप में कहा कि उनका राजवंश 10 पीढ़ियों तक ही चल पाएगा और उसके बाद नष्ट हो जाएगा।
नेपाल के राजमहल के कुछ हिस्से 200 साल से भी पुराने हैं। महल का नाम नारायणहिति, इसके किनारे स्थित, इसी नाम के एक तालाब के कारण रखा गया। नेपाल के शाहवंशी राजा अपने पुराने राजमहल से इस महल में 18वीं सदी के अंतिम वर्षों में रहने आए थे। यहॉं आने से लगभग 10 वर्ष पहले वे एक युद्घ जीत चुके थे। इसी विजय के उपलक्ष्य में इस राजमहल का निर्माण कराया गया था। इससे पहले का राजमहल दरबार चौक के पास आज भी जीर्णशीर्ण खड़ा है। नए राजमहल में समय-समय पर अनेक बदलाव किए गए। आधुनिक राजमहल 1970 में राजा वीरेन्द्र वीर विाम शाह देव के विवाह के मौके पर अंतिम तौर पर तैयार हुआ था।
नारायणहिति राजमहल ने 1 जून, 2001 का भयंकर और हृदयविदारक मंजर देखा। राजा वीरेन्द्र और उनके परिवार के 7 सदस्य अंधाधुंध गोलीबारी में मारे गए। इसमें रानी ऐश्र्वर्या और युवराज दीपेन्द्र भी शामिल थे। आरोप है कि इस गोलीकांड को खुद युवराज दीपेन्द्र ने अंजाम दिया था, क्योंकि परिवार उनकी प्रेमिका के साथ उनके विवाह को मंजूरी नहीं दे रहा था। नारायणहिति महल की चर्चा पिछले कई सालों से है। 1 जून, 2001 के मंजर के बाद राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता संभाली और देश में लोकतंत्र समाप्ति के लिए आपातकाल लागू करने की घोषणा की। तब से यह राजमहल नेपाल की राजनीति का मुख्य केन्द्र बन गया।
नरेश द्वारा आपातकाल लगाने के कारण लोगों में गुस्सा भड़का। अंततः राजा को आपातकाल हटाना पड़ा। अगस्त, 2007 में नारायणहिति महल का राष्टीयकरण कर दिया गया लेकिन राज परिवार को संविधान सभा के चुनाव होने तक उसमें रहने की अनुमति दे दी गई। माओवादियों की चेतावनी के आगे झुकते हुए अब नेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र ने इस महल को खाली कर दिया है।
नेपाल में चर्चा है कि पदच्युत नेपाल नरेश भविष्य में शीघ्र ही अपना अस्तित्व बनाने और जनता के निकट होने के लिए एक राजनैतिक दल का गठन करेंगे।
उन्हें नेपाल में हिन्दूवादी विचारधारा और राजवंश समर्थित लोगों का समर्थन और सहयोग मिल सकता है। वैसे वर्तमान चुनावों में भी हिन्दूवादी लोगों ने अपना राजनैतिक अस्तित्व स्थापित किया है। उनकी समय-समय पर नेपाल के माओवादियों से झड़पें भी होती रहती हैं। वैसे अगर ज्ञानेन्द्र द्वारा राजनैतिक दल का गठन किया जाता है तो भारत की भारतीय जनता पार्टी, राष्टीय स्वयंसेवक संघ, विश्र्व हिन्दू परिषद सहित हिन्दूवादी संगठनों का बाहर से सहयोग मिलेगा। इन संगठनों की मान्यता है कि दुनिया का एकमात्र हिन्दू राजतंत्र का समाप्त होना हिन्दुओं के लिए भारी वापात की स्थिति पैदा कर चुका है। वर्तमान परिस्थिति में माओवादियों ने सत्ता हथिया ली है। उससे वहॉं की जनता अन्दर ही अन्दर संतुष्ट नहीं है, उसके असंतोष का उफान समय आने पर ज्ञानेन्द्र द्वारा राजनैतिक दल बन जाने पर दिखाई देने लगेगा। हिन्दू धर्म को मानने वाले बहुसंख्यक लोगों में घुसपैठ कर आतंक और लूट-खसोट का भय दिखाकर भले ही तथाकथित लोकतंत्र का गठन कर लिया हो माओवादियों ने, लेकिन जनता के भीतर वह अपनी पूरी पैठ नहीं बना पाए हैं। नेपाल नरेश द्वारा महल से हटकर अन्य स्थान से रहकर अपने राजनैतिक कॅरियर की शुरुआत होने में एक साल का समय लगना स्वाभाविक है, लेकिन भविष्य में पुनः सत्ता के निकट ज्ञानेन्द्र के पहुँचने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता। उनमें समाज के साथ समझौता करने और भावी रणनीति तैयार कर उसे िायान्वित करने की हिम्मत है, जिसको नेपाल की जनता का सहयोग भविष्य में मिल सकता है, ऐसी उम्मीद नेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र की है। 240 वर्ष की राजसत्ता से हटने के बाद पुनः राजतंत्र की स्थापना में प्रयत्नशील रहेंगे नरेश ज्ञानेन्द्र बहादुर शाह। नेपाल नरेश ज्ञानेन्द्र ने अपना राजमहल छोड़ने के पहले पत्रकारों से भावुक होकर अपने ऊपर लगे आरोपों को बेहद अमानवीय बताया। उन्होंने कहा कि 2001 में वे अपने भाई, भाभी और भतीजे की मौत का शोक भी नहीं मना पाए। मेरे ऊपर जो भी आरोप लगाए गए, वे बहुत अमानवीय थे। ज्ञानेन्द्र ने सरकार से उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा के लिए चार सौ सैनिक मुहैया कराने की मांग की है। ज्ञानेन्द्र ने अब तक उनकी सुरक्षा में लगी सैन्य टुकड़ी को ही लगाने का अनुरोध किया है। सुरक्षा के लिहाज से देश की सर्वाधिक प्रशिक्षित मानी जाने वाली और लंबे समय से नारायणहिति की सुरक्षा में लगी इस टुकड़ी में 400 तेज-तर्रार सुरक्षाकर्मी तैनात हैं।
इस पर गिरिजा प्रसाद कोइराला ने नाराजगी जाहिर करते हुए दो टूक कहा कि अगर पूर्व नरेश इसी तरह मांग करते रहे तो सरकार उनकी अब तक मानी गई मांगें भी रद्द कर देगी। कोइराला ने उन्हें आगाह कर दिया कि सरकार ज्ञानेन्द्र की भविष्य में कोई मांग नहीं सुनेगी।
ज्ञानेन्द्र ने नारायणहिति से रुखसत होने से पहले अपने पूर्व सहयोगियों को अलविदा कहा। उन्होंने अपने पूर्व सहयोगियों से फोन पर बातचीत कर विदा ली और उनके प्रति आभार जताया। नेपाल नरेश ने अपने ऐतिहासिक मुकुट और राजदण्ड को सरकार को सौंप दिया। उन्होंने कहा कि अब मैं नेपाल में शांति कायम करने के प्रयासों में अपना योगदान देना चाहता हूँ। ज्ञानेन्द्र ने कहा कि नेपाल को छोड़ने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं नेपाल में ही रहूँगा। मेरा नेपाल के बाहर धन-सम्पत्ति जमा करने का कोई इरादा नहीं है। मेरी सम्पत्ति केवल नेपाल में ही है और अब उसको मैंने सरकार को सौंप दिया है, जिसका राष्टीयकरण हो गया है।
अभी हाल-फिलहाल नेपाल नरेश ने अपने भावी इरादे सार्वजनिक रूप से नहीं बताए हैं किन्तु उनकी राजनैतिक जिज्ञासा एवं उत्सुकता देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में वे अपने राजवंश के प्रति आस्था रखने वालों को एकजुट करके राजनैतिक दल का गठन कर सकते हैं। नेपाल की जनता की सहानुभूति का लाभ उठा सकते हैं और पुनः सत्ता की ओर बढ़ सकते हैं।
– राजेन्द्र श्रीवास्तव
You must be logged in to post a comment Login