पिछले साठ वर्षों से असम में हर साल बाढ़ का तांडव होता रहा है। 1950 में हुए भयंकर भूकंप की वजह से ब्रह्मपुत्र एवं उसकी सहायक नदियों के स्वरूप में परिवर्तन आ गया और उसके बाद हर साल बाद तबाही मचने लगी। इस तबाही की रोकथाम के लिए सरकार की तरफ से इतने सालों में करोड़ों रुपये खर्च किए गए मगर आज तक एक भी बांध पूरी तरह बनाया नहीं जा सका और न ही तटबंधों का निर्माण हो पाया। राजनेताओं के लिए बाढ़ एक वार्षिक उत्सव की तरह है जिसके नाम पर केन्द्र से मिलने वाली राशि की बंदरबांट होती रही है लेकिन असमवासियों को बाढ़ की विभीषिका से आज तक छुटकारा नहीं मिल पाया है।
इस वर्ष उत्तर असम के लखीमुपर, धेमाजी और शोणितपुर जिले में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है। पाँच सौ से अधिक गांवों में बाढ़ आने की वजह से दो लाख लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। अब तक 27 व्यक्तियों की मौत हो चुकी है और छः हजार हेक्टेयर कृषि भूमि की फसल तबाह हो चुकी है। काफी तादाद में मवेशियों की मौत हो चुकी है। 52 नंबर राष्ट्रीय उच्च मार्ग टूट जाने के कारण लखीमपुर और धेमाजी जिले का सड़क संपर्क देश के दूसरे हिस्सों से टूट चुका है। रंगा नदी, डिाांग नदी, पायो नदी, काकै नदी, शिंगरा नदी, दोरपांग नदी, पिसला नदी आदि में आई बाढ़ की वजह से लखीमपुर जिले में व्यापक तबाही हुई है। लगभग चालीस वर्षों के बाद रंगा नदी में आई बाढ़ की वजह से लखीमपुर नगर का एक हिस्सा डूबा रहा। डिाांग नदी में आई बाढ़ की वजह से बिहपुरीया नगर डूब गया। अरुणाचल प्रदेश में एक कंपनी की तरफ से रंगा नदी पर पन-बिजली संयंत्र का निर्माण किया जा रहा है। इस वर्ष उक्त कंपनी ने अतिरिक्त पानी छोड़ दिया जिसके चलते असम में विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई। राष्ट्रीय पन-बिजली परियोजनाओं ने असम में बाढ़ के संकट को और भी अधिक गंभीर बनाया है। बांधों को मजबूती के साथ तैयार नहीं करने, टूटे हुए बांधों की समय पर मरम्मत नहीं करने और बाढ़ से निपटने की पूर्व तैयारी नहीं करने की वजह से बाढ़ की विभीषिका और भी अधिक बढ़ जाती है। धेमाजी जिले के मातमरा बांध के टूटे हुए हिस्से से आई बाढ़ की वजह से दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप माजुली के डूबने का खतरा पैदा हो गया है। धेमाजी जिले के सौ से भी अधिक गांव बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। असम के विभिन्न जन संगठन असम की बाढ़ समस्या को राष्ट्रीय समस्या घोषित करने की मांग केन्द्र से करते रहे हैं लेकिन केन्द्र ने इस समस्या की तरफ गौर करने की ज़रूरत नहीं समझी है। हर साल बाढ़ जहाँ लाखों लोगों के जीवन को बदतर बना देती है वहीं कुछ लोगों के लिए बाढ़ कमाई करने का एक सुनहरा अवसर बनकर आती है। असम के जल-संसाधन विभाग में वर्षा के दिनों में उत्सव जैसा माहौल नजर आने लगता है। इस विभाग में मंत्री से लेकर कर्मचारी तक के चेहरे पर रौनक दिखाई देने लगती है। बाढ़ नियंत्रण विभाग में भी ऐसा ही मंजर दिखाई देता है। बाढ़ से लोगों को राहत दिलाने की जगह ये दोनों ही विभाग सरकारी धन को हड़पने के खेल में ज्यादा दिलचस्पी लेते हुए दिखाई देते हैं।
लखीमपुर जिले में बाढ़ पीड़ितों के लिए 100 राहत शिविर बनाए गए हैं और बेघर हुए लोगों के बीच राहत सामग्री का वितरण भी किया जा रहा है। मगर बाढ़-पीड़ितों की तादाद को देखते हुए राहत सामग्री अपर्याप्त बताई जा रही है। दस लोगों के बीच एक किलो चिवड़ा बांटने की खबर आ रही है। इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में दवाओं की आपूर्ति भी नहीं की गई है। मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने राहत शिविरों का दौरा किया और बाढ़ में मरने वाले ग्रामीणों के परिवार वालों को एक-एक लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की।
राज्य के कई जन संगठनों ने राज्य के जल संसाधन विभाग में जारी भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और अगप (पी) के अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महंत ने भी केन्द्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह जल संसाधन विभाग के घोटालों की निष्पक्ष जांच सीबीआई से करवाए।
बाढ़ नियंत्रण के मद में हर साल केन्द्र की तरफ से करोड़ों रुपए आवंटित होते हैं। इसके बावजूद बाढ़ की तबाही जारी रहती है। सवाल पैदा होता है कि केन्द्र की तरफ से आवंटित धन कहाँ चला जाता है? बाढ़ नियंत्रण के लिए बनाया गया ब्रह्मपुत्र बोर्ड भी अब एक सफेद हाथी बन चुका है। असम में बाढ़ की समस्या को हल करने के लिए विश्व बैंक या अन्य किसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था ने आज तक दिलचस्पी नहीं दिखाई है। जिस समय ‘चीन का आंसू’ कहलाने वाली ठांगहो नदी ‘चीन की मुस्कान’ में तब्दील हो चुकी है, उस समय असम में ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियां हर साल तबाही मचा रही हैं। दुनिया के विकसित देशों ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सहायता से बाढ़ को नियंत्रित करने में सफलता हासिल की है मगर असम में शासक वर्ग अपने आपको असहाय बताता रहा है और बाढ़ को ऐसी प्राकृतिक आपदा के रूप में प्रचारित करता रहा है जिसे किसी भी सूरत में नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
ऊपरी असम की तरह निचले असम में भी बाढ़ से व्यापक तबाही हुई है। पड़ोसी देश भूटान ने अपनी कुरीशो नदी का अतिरिक्त पानी असम में छोड़ दिया है जिसकी वजह से निचले असम के सैकड़ों गांवों में बाढ़ का पानी घुस आया है। आशंका जाहिर की जा रही है कि आने वाले दिनों में बाढ़ का संकट और भी अधिक गंभीर हो सकता है। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि जब वर्षा का समय शुरू होता है उसी समय जल संसाधन विभाग नींद से जागकर बांधों की मरम्मत का काम शुरू करता है। मरम्मत के लिए रेत का इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि पानी के हल्के दबाव से ही बांध टूट जाते हैं। जल संसाधन विभाग को इस तरह हर साल टूटे बांधों की मरम्मत के नाम पर सरकारी धन की बंदरबांट करने का बहाना मिल जाता है। इस बंदरबांट से कुछ इंजीनियर, ठेकेदार और राजनेता मालामाल होते हैं। जब तक बाढ़ नियंत्रण के नाम पर जारी भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा तब तक असम में बाढ़ संकट को हल कर पाना संभव नहीं हो सकेगा।
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