आइटम नम्बर देखा क्या?

आजकल फिल्मों में आइटम सांग की महत्ता बढ़ती जा रही है। यहॉं तक कि कई स्थापित अभिनेत्रियां भी आइटम सांग कर रही हैं। यह जरूरी भी हो गया है क्योंकि उनके पास अब नया दिखाने को कुछ बचा नहीं है, सो अपने को दर्शकों की नजरों में बनाये रखने के लिये आइटम नम्बर करना उनकी मजबूरी है।

इधर फिल्मों से भी दर्शकों का मोहभंग होता जा रहा है। उनकी रूचि फिल्मों से ज्यादा टी.वी. चैनल्स में बढ़ रही है जो दर्शक की नब्ज को टटोल कर उसी के हिसाब से प्रोग्राम बनाते हैं। फिल्मों के निर्माता निर्देशक इस मामले में चुक गये हैं। दर्शक बासी मसाला देख-देख कर ऊब गये हैं। ढिशुम-ढिशुम, धांय-धांय, हीरो हीरोइन की उछल-कूद, सौ बार फिल्मायी गयी विषय वस्तु और मनोरंजन की जगह सिरदर्द पैदा करता गीतˆसंगीत आखिर दर्शक कितनी देर झेल सकता है?

अब फिल्म तो चलानी ही है, उसकी लागत वसूल करनी ही है, सो दर्शक को तीन घंटे तक हॉल में जमाने के लिये निर्माता निर्देशक उसमें एक चटकता-मटकता आइटम नम्बर ठूंस देते हैं जो फिल्म का आंशिक रूप से ही सही लेकिन लागत वसूल करने में तो मदद करता ही है।

केवल फिल्म ही नहीं बल्कि जरा गहराई से देखा जाय तो आज हमारे यहॉं हर फील्ड में इस तरह के आइटम नम्बर का सहारा लिया जाता है। इस तरह की कोशिश के पीछे मूल फंडा यही होता है कि कम से कम मेहनत में लोगों का ज्यादा से ज्यादा ध्यान अपनी तरफ खींच लिया जाय। जैसे नेता को लीजिये, जब लोग उसे महत्व देना बन्द कर देते हैं तो वो कोई न कोई ऐसा विस्फोटक बयान जारी कर देता है कि दूसरे दिन सबकी जुबां पर उसी की चर्चा होती है। गबन हो या घोटाले, दलाली हो या कमीशनखोरी, ये सब आज की राजनीति के आइटम नम्बर कहे जा सकते हैं। इस यू.पी.ए. सरकार में भी कई ऐसे नेता हैं जिन्हें हम इस सरकार का आइटम नम्बर कह सकते हैं जो अपनी स्पेशल पर्सनालिटी के बल पर सरकार की तरफ लोगों को आकर्षित करने में सफल रहते हैं।

पी.एम. इन रेटिंग कहे जाने वाले अपने आडवाणी जी भाजपा का मशहूर आइटम नंबर हैं। राम रथ यात्रा नाम का जो आइटम उन्होंने बीते समय में पेश किया था उसने इस अछूत पार्टी को केन्द्र में सत्ता दिलायी थी। इन्होंने पड़ोस मुल्क में जिन्ना की मजार पर माथा टेक कर अपने जीवन का सबसे विवादास्पद आइटम पेश किया था। फिर एक आइटम किताब की शक्ल में पेश कर दिया है। यह भी अपने मकसद में कामयाब रहा क्योंकि यह भी विवादास्पद की श्रेणी में आ गया। जो आइटम जितना ज्यादा बवाल खड़ा कर दे, उसे उतना ही सफल मानना चिहये। क्योंकि यही आइटम नम्बर की सफलता का सूत्र होता है।

इधर मीडिया जगत में टी.आर.पी. बढ़ाने का सफल फार्मूला खोज लिया गया है। ज्यादातर न्यूज-चैनल अपने कार्यामों में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत जैसी आइटम न्यूज पेश करते हैं जिससे दर्शक टी.वी. से चिपके रहने को मजबूर हो जाये। कई बार तो ये आत्मदाह जैसी वीभत्स घटनाओं को प्रायोजित करके उसका लाइव प्रसारण करते हैं। बलात्कार और हिंसक घटनाओं पर आधारित आइटम न्यूज प्रस्तुत करके ये दर्शकों को आकर्षित करने में कामयाबी हासिल कर लेते हैं।

उच्च पदों पर आसीन लोगों द्वारा रिश्र्वत खाते हुये दिखाना भी आइटम न्यूज का हिस्सा है। ये दर्शक की मानसिकता को सर्च करते हैं कि उसकी रुचि किस तरह की न्यूज में है। बस उसी तरह की आइटम न्यूज मिर्च -मसाला लगा कर पेश कर दी तो दर्शक भी निहाल और चैनल भी मालामाल।

समाचार पत्रों में भी यदि कोई आइटम न्यूज नहीं होती तो पाठकों के मुंह का जायका बिगड़ जाता है। वह दूसरे पाठक की तरफ पेपर सरकाते हुये कहता है कि आज कुछ नहीं है अखबार में, लेकिन यह स्थिति कभी-कभार ही आती है अन्यथा पाठकों की जिज्ञासा शांत करने को हमेशा कोई न कोई धांसू आइटम न्यूज पेपर्स में छपते ही रहते हैं, जैसे पिछले दिनों आरुषि हेमराज की डबल मर्डर मिस्टी समाचार जगत का सबसे सफल और लोकप्रिय आइटम नम्बर बनी हुयी थी। अखबार खोलते ही लोगों की निगाहें सबसे पहले इसी न्यूज को खोजती थीं कि पता नहीं आज सी.बी.आई. केस की कितनी परतें उधेड़ चुकी है लेकिन यह पाठकों और अखबारों दोनों का सौभाग्य है कि यह मर्डर मिस्टी सुलझने के बजाय उलझती ही जा रही है और यही इस आइटम न्यूज की अपार सफलता का राज भी है।

हमारी देखादेखी प्रकृति भी अपना टेस्ट बदलने को बीच-बीच में आइटम डांस मार देती है, जैसा हाल ही में म्यांमार में हुआ, फिर चीन में हुआ। अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में जमीन फटने की खबरें भी यही इंगित करती हैं कि प्रकृति भी मनुष्य का ध्यान अपनी दुर्दशा की तरफ खींचने के लिये आइटम नम्बर का सहारा ले रही है। क्या हमारा ध्यान इस आइटम नम्बर पर जा रहा है?

– प्रेमस्वरूप गंगवार

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