आखिर हम कब तक बनते रहेंगे आतंकवादियों के शिकार

आप और हम इसलिए जिन्दा हैं, क्योंकि आतंकवादी हमले के शिकार नहीं हुए। कब, कहॉं और कैसे इन आतंकवादियों द्वारा धमाका किया जाएगा, कहा नहीं जा सकता और इन धमाकों में कितनों की जान जाएगी इसका भी कोई निश्र्चित आंकड़ा नहीं है। देश में कोई भी स्थान और किसी भी व्यक्ति के प्राण सुरक्षित नहीं हैं। भारत आतंकवादियों के लिए पर्यटन स्थल-सा बन गया है, कभी भी वे यहॉं टहलते हुए आते हैं और अपना काम कर चले जाते हैं। आतंक मचाने के बाद ये आतंकवादी तो भाग निकलते हैं और हमारी सरकारें यही कहती रह जाती हैं कि आतंकवाद से सख्ती से निपटा जाएगा और उन्हें किसी कीमत पर नहीं छोड़ा जाएगा।

यह चेतावनियां भी चुनाव के समय जनता को दिए जाने वाले आश्र्वासन की तरह लगने लगी हैैं। आए दिन देश के किसी न किसी कोने में आतंकवादी हादसे होते रहते हैं। कश्मीर तक सीमित रहने वाली आतंकवादी गतिविधियां अब पूरे देश में फैल गई हैं। आतंकवादी गतिविधियों में पड़ोसी देश के तार जुड़े होने के संकेत मिलते रहे हैं। हम महाशक्ति बनने की दौड़ में हैं, लेकिन पड़ोसी छोटे-छोटे देश हमारी धरती पर आतंक फैलाकर बेरोक-टोक चले जाते हैं और हम मात्र चेतावनी देकर ही रह जाते हैं। महाशक्ति बनने की ओर हमारे कदम उठ ़जरूर रहे हैं लेकिन इन आतंकवादी गतिविधियों के कारण हमारी स्थिति कमजोर देश की ही उभर रही है। यहॉं तक कि आतंकवाद से निपटने के लिए हमारी कोई स्पष्ट नीति तक नहीं बन पाई है। आतंकवाद से निपटने के लिए पोटा कानून बनाया गया था, उसे भी समाप्त कर दिया गया। इसके अतिरिक्त आतंकवादियों के विरुद्घ की जाने वाली कानूनी कार्यवाहियों की गति इतनी धीमी होती है कि गवाह टूटने लगते हैं और आतंकवादियों को सरकार पर दबाव बनाने के लिए भरपूर समय मिल जाता है।

सन् 1989 में तत्कालीन गृहमंत्री की अपहृत बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकवादियों को छोड़ा गया। इसके बाद कंधार विमान अपहरण कांड में जिस तरह सरकार ने घुटने टेके और उसके बाद जैश-ए-मोहम्मद ने भारत में जिस तरह आतंक मचाया वह इतिहास में हमारे लिए शर्मनाक घटना बन गई है। आतंकवादी आए और अपने काम को अंजाम देकर चले गए। उनके मन में कोई खौफ नहीं। आतंकवादियों में खौफ पैदा करने वाली कार्यवाही की ही नहीं गई अन्यथा आतंकवाद से निपटना भारत के लिए कोई कठिन कार्य नहीं है। पोटा समाप्ति के बावजूद वर्तमान कानूनों के तहत भी आतंकवाद पर काबू पाया जा सकता है। इसके भी उदाहरण हैं। पंजाब में अर्द्घसैनिक और सैनिक बलों की सख्त कार्यवाही के कारण आतंकवाद पर काबू पाया गया। आंध्र प्रदेश नक्सलवादियों की गतिविधियों का गढ़ माना जाता था, वहॉं हमारे सुरक्षाबलों ने सख्ती बरती और त्रिपुरा में वर्तमान में नक्सलियों की क्या हालत है, यह भी किसी से छिपी नहीं है। आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सक्षम होते हुए भी इन पर काबू नहीं पाना हमारी कमजोरी ही साबित करती है। स्पष्ट है कि हमारा पुलिस तंत्र खोखला है। पुलिस और इंटेलीजेंस एजेंसियों का ध्यान राष्टीय सुरक्षा के स्थान पर नेताओं और सत्ताधारी पार्टी के हितों को साधने में ही लगा रहता है। ऐसी स्थिति में आतंकवादियों द्वारा राष्टीय सुरक्षा में सेंध लगाने की आशंका को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। कभी दिल्ली, कभी मुम्बई और अब दूसरी बार बेंगलुरु बना है आतंकी हमलों का निशाना। इस हाईटेक शहर में गत शुावार को श्रृंखलाबद्घ धमाके हुए जिसमें जान-माल की अपूरणीय क्षति हुई। इस हमले के अगले ही दिन अहमदाबाद में 19 सिलसिलेवार बम धमाकों ने पूरे देश को थर्रा दिया।

राजस्थान का जयपुर भी हाल ही में इन आतंकवादियों का शिकार हुआ है। ामबद्घ धमाकों में चल-अचल संपत्तियों और मानव जीवन को क्षति पहुँची। हद तो ये है कि आतंकवादियों ने भारत पर आामण के अपने इरादे को व्यक्त करने में कभी भी संकोच नहीं किया। लश्कर-ए-तय्यबा के प्रमुख ने अपने एक भाषण में कहा था कि जेहाद कश्मीर तक सीमित नहीं रहेगा और यह तभी समाप्त होगा, जब भारत पर फिर से मुसलमानों का राज स्थापित हो जाएगा।

भारत ने परमाणु शक्ति प्राप्त कर ली है, लेकिन पड़ोसी छोटे-छोटे           देश आज भी     अपनी आतंकवादी गतिविधियों को हवा देकर भारत को चुनौती दे रहे हैं और हम हर घटना के बाद अपना सिर नीचा किए शर्मसार हो रहे हैं। जयपुर की आतंकवादी घटना में बांग्लादेश का आतंकवादी संगठन हूजी शंका के दायरे में आया तो बांग्लादेश ने आँखें दिखानी शुरू कर दी। उसने एतराज किया कि जयपुर बम विस्फोट के मामले में भारत बार-बार हूजी का नाम क्यों ले रहा है। पाकिस्तान ने कहा कि पाक दाऊद इब्राहिम को भारत को सौंप देगा, लेकिन इसके लिए भारत को पुख्ता सबूत पेश करने होंगे। श्रीलंका हमेशा लिट्टे समस्या के लिए भारत को दोष देता रहता है। श्रीलंका, बंाग्लादेश यहॉं तक कि पाकिस्तान की भारत के सामने हैसियत ही कितनी है। पाकिस्तान ने परमाणु बम बना लिया, इसके बावजूद उसकी भारत के सामने कोई हैसियत नहीं है। फिर भी भारत के आसपास के ये छोटे-छोटे देश समय-समय पर भारत को आँखें दिखाने से नहीं चूकते। अवश्य ही उनका यह साहस भारत विरोधी देशों से प्राप्त मदद के कारण ही होता है। एक शक्तिशाली राष्ट होने के बावजूद भारत ने अपनी छवि एक कमजोर देश की बना रखी है।

भारत को पश्र्चिमी देशों की आतंकवाद से निपटने की नीति से सीख लेनी होगी। विशेषकर 9/11 की घटना के बाद अमेरिका ने जिस सख्ती से आतंकवाद के विरुद्घ कदम उठाए वह एक मिसाल है। भारत की कमजोरी से आतंकवादी भी परिचित हैं। यही कारण है कि वे जब चाहे तब अपने आतंकवादी कार्यों को अंजाम दे देते हैं। भारत में पाकिस्तानी और बांग्लादेशियों की घुसपैठ कोई नई बात नहीं है। आज तक इन घुसपैठों को कारगर तरीकों से नहीं रोका जा सका। यह भी एक बड़ी कमजोरी है। इसके अतिरिक्त इन घुसपैठियों को भारत में शरण देने वालों की भी कमी नहीं है। आतंकवादियों पर जो कार्यवाही की जाए वही सख्त कार्यवाही इनको शरण देने वालों पर भी की जानी चाहिए। इससे आतंकवादी और शरण देने वाले दोनों में ही खौफ पैदा होगा। इससे आतंकवादियों को अपनी गतिविधियां संचालित करने का अवसर नहीं मिल सकेगा। इसके विपरीत यदि हूजी का जयपुर के ामबद्घ धमाकों में हाथ है तो बांग्लादेश अभी तक सलामत क्यों है, क्यों नहीं उसके विरुद्घ सख्त कार्यवाही की गई। आतंकवादी कार्यवाहियों को प्रोत्साहन देने वालों के विरुद्घ हमारे द्वारा उठाए गए कदम हमेशा निराशाजनक रहे हैं। 13 दिसम्बर, 2001 को आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया। इस हमले का जिम्मेदार पाक स्थित लश्कर-ए-तय्यबा को ठहराया गया। पाक सरकार ने मात्र इतना ही कहा कि संसद पर हमले में लश्कर-ए-तय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद का हाथ होने के बारे में सबूत मुहैया कराएं तो वह उनकी जांच करेगा, साथ ही धमकी भी दी कि भारत ने कोई दुस्साहसिक कार्यवाही की तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। पाक की यह हिम्मत किसी भारत विरोधी देश का हाथ उसकी पीठ पर होने का संकेत अवश्य देता है। इसलिए आतंकवाद को रोकने के लिए पड़ोस के छोटे-छोटे देशों में आतंकवादियों की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए उसी तीव्रता से कदम उठाने होंगे, जितनी तीव्रता से भारत के महाशक्ति बनने की ओर कदम उठ रहे हैं।

 

– सुरेश समाधिया

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