अभी तक आतंकवाद के खिलाफ “पोटा’ जैसा कड़ा कानूनी प्रावधान लागू करने की मॉंग भाजपा के ही खेमे से उठ रही थी, लेकिन अब इसकी आवश्यकता को सरकारी खेमा भी महसूस कर रहा है। ़गौरतलब है कि अभी तक सरकार इस तरह की हर मॉंग को यह कह कर निरस्त करती रही है कि आतंकवाद से मुकाबला करने में हमारे वर्तमान कानून पूरी तरह सक्षम हैं। चारों तरफ से होने वाले आलोचनात्मक प्रहारों से बचने की गऱज से सरकार ने यह मंशा प्रकट की है कि वह इस संबंध में किसी भी सकारात्मक प्रस्ताव पर विचार करने के लिए तैयार है। इस बीच केन्द्र सरकार द्वारा गठित वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाले प्रशासनिक सुधार आयोग ने आतंकवाद से लड़ने के लिए वर्तमान कानून को नाकाफी तो बताया ही है, उसने इसमें ढांचागत परिवर्तन कर इसे आतंकवादियों के लिए भयप्रद और सख्त बनाने की भी सिफ़ारिश की है।
अब तक भाजपा और कांग्रेस के बीच इस मसले पर अजीब किस्म का द्वन्द्व देखने को मिला है। भाजपा जहॉं अपने राजग शासनकाल में बने पोटा कानून की वकालत करती है, वहीं कांग्रेस इसके दुरुपयोग और अल्पसंख्यक मुसलमानों के उत्पीड़न को आधार बना कर इसे लगातार निरस्त करती है। लेकिन प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट ने दोनों के बीच का रास्ता निकाला है। उसकी सिफारिश में कहा गया है कि पूर्व के अनुभवों के आधार पर कानून को सख्त बनाने की ़जरूरत तो है लेकिन यह सावधानी भी बरतनी होगी कि इस कानून का दुरुपयोग राजनीतिक कारणों से न होने पाये और न ही यह पुलिस के लिये अपनी मनमानी करने का एक जरिया साबित हो। प्रशासनिक सुधार आयोग की यह रिपोर्ट इस बात पर भी बल देती है कि आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए राष्टीय स्तर पर एक सूचना तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। इसके लिए उसने एक संघीय जॉंच एजेंसी की आवश्यकता पर विशेष बल दिया है। उसने इसके अभाव में सी.बी.आई. में एक विशेष प्रकोष्ठ बनाने तथा आतंकवाद से संबंधित मामलों के त्वरित निपटारे के लिए फास्ट-टैक अदालतों के गठन का भी सुझाव दिया है।
अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब आतंकवाद के मुद्दे पर बड़ी बेबाक टिप्पणी करते हुए पूर्व राष्टपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी इस संबंध में एक कड़े कानून की वकालत की थी। साथ ही उन्होंने अपना अभिमत फेडरल एजेंसी के बाबत भी प्रकट किया था। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि इन उपायों का प्रभाव बहुत सीमित दायरे में ही संभव होगा। पूर्व राष्टपति ने आतंकवाद से लड़ने के लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छा शक्ति की आवश्यकता पर बल देते हुए स्पष्ट तौर पर कहा है कि एक समग्र और अखंड राष्टीयता ही आतंकवादी हौसलों को परास्त कर सकती है। यह एक दुःखद सत्य है कि वोटवादी राजनीति ने आतंकवाद के मुद्दे पर भी अपने को अब तक विभाजित ही प्रदर्शित किया है। अब इसे क्या माना जाय कि हर आतंकी घटना के बाद भाजपा “पोटा’ का राग अलापने लगती है और कांग्रेस फेडरल एजेंसी का। जबकि ़जरूरत दोनों की है। और उससे बड़ी ़जरूरत यह है कि आतंकवाद को एक राष्टीय आपदा मान कर एक समन्वित और सर्वस्वीकृत नीति का अनुसरण किया जाय।
सिंगूर मसला उलझाव का शिकार
पं. बंगाल के राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी की अध्यक्षता में किसानों की जमीन वापसी के मुद्दे पर सरकार से हुई बातचीत के बाद यह घोषणा की गई थी कि विवाद को सुलझा लिया गया है। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस की नेत्री ममता बनर्जी ने अपना आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर “नैनो’ कारखाने का घेराव भी समाप्त कर दिया था। लेकिन कई दौर की वार्ता के बाद भी इसकी पेचीदगी खत्म नहीं हुई और अब हालत यहॉं तक पहुँच गई है कि एक बार फिर सिंगूर मुख्यमंत्री बुद्घ देव भट्टाचार्य और ममता बनर्जी की जोर आजमाइश का अखाड़ा बन सकता है। इसका संकेत सिंगूर में ही बुलाई गई एक जनसभा में ममता बनर्जी ने यह कहते हुए दिया है कि वे 19 सितम्बर तक राज्यपाल की कोलकाता वापसी का इंतजार कर रही हैं, अगर पूर्व में हुए समझौते को मानने से माकपा सरकार इन्कार करती है तो आंदोलन फिर से शुरू हो सकता है।
प्रशंसा की जानी चाहिए रतन टाटा की कि राज्यपाल द्वारा समझौते की घोषणा और माकपा सरकार के काम शुरू करने की गुजारिश के बाद भी उन्होंने जल्दबाजी से काम नहीं लिया और कुछ दिनों तक सामान्य स्थिति बहाल होने के बाद ही कोई निर्णय लेना उचित समझा। दरअसल मुख्यमंत्री बुद्घदेव भट्टाचार्य और तृणमूल नेत्री ममता बनर्जी, दोनों ने इसे अपनी राजनीतिक प्रतिष्ठा का विषय बना लिया है। दोनों सार्वजनिक तौर पर मतदाताओं में यह संकेत नहीं देना चाहते कि किसी के सामने किसी को झुकना पड़ा है। अतएव मसला फिर खींच-खांच कर वहीं पहुँचा दिया गया है, जहॉं पहले था। एक ही समझौता, जिसको दोनों ने स्वीकार किया था, अब अलग-अलग व्याख्यायित हो रहा है। ममता का कहना है कि समझौता 300 एकड़ जमीन वापसी की शर्त पर हुआ है, सरकार कहती है नहीं सिर्फ 70 एकड़ पर। सच यह है कि उलझाव कहीं नहीं है, अपने-अपने सियासी फायदे के लिए उलझाव पैदा किया गया है।
You must be logged in to post a comment Login