ये पंक्तियॉं करवा चौथ के व्रत वाले दिन शाम को होने वाली पूजा के समय पंजाबी सुहागिनें अपने हाथ में पकड़े हुए बायना (पूजावाला थाल, जिसमें मट्ठी, फल आदि होते हैं) के थाल को घुमाते समय गाती जाती हैं। इन सबके पास जल से भरा लोटा भी होता है। ये सात-आठ महिलाएँ एक घेरे में बैठती हैं और एक-दूसरे के थाल घुमाने पर जब उनका स्वयं का थाल वापस उनके पास आता है, तो वे अपने साथ लाये गये पानी के लोटे से छुआने के बाद उस थाल को माथे से लगाती हैं और फिर वीरो की कहानी सुनने में तल्लीन हो जाती हैं। इस तरह एक समां-सा बंध जाता है – करवा चौथ का।
पंडिताइन या फिर कोई बड़ी-बूढ़ी सुहागिन स्त्री वीरो की कहानी सुनाती है। मिट्टी की गुड़िया को बीच में वीरो बनाकर रखा जाता है। कहीं-कहीं पर खिलौने वाली गुड़िया को वीरो बनाया जाता है। पूजा शुरू करने से पहले सुहागिनें इस वीरो को सिंदूर, काजल, बिन्दी आदि लगाती हैं। उत्तर प्रदेश में गोबर की गौर स्थापित कर सिंदूर चढ़ाया जाता है। पीतल और मिट्टी का करवा रखा जाता है। भले ही वीरो हो या गौर दोनों पार्वती जी का ही रूप हैं।
सुहागिनें अधिकतर लाल रंग का अपने विवाह के समय का जोड़ा पहनती हैं, तो कुछ केवल विवाह के दौरान ली हुई चुनरी को ही ओढ़ती हैं। इस पूजा में पंजाबी परिवारों की महिलाओं से लेकर बनिया, मारवाड़ी और दूसरी जाति की महिलाएं तक शामिल होती हैं। करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक कृष्ण पक्ष को चन्द्रोदय व्यापिनी चतुर्थी में किया जाता है। भारतीय सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं। हालांकि यह सुहागिन स्त्रियों का मुख्य व्रत है, लेकिन इसे कुंआरी कन्याएं भी रखती हैं। इसमें सुहागिनें सुबह तारों की छांव में सास द्वारा भेजी गयी सरगी खाती हैं। इसके बाद रात को चन्द्रोदय तक निर्जल रहकर उपवास रखती हैं। शाम के समय महिलाएं इकट्ठी होकर गौर या वीरो की पूजा करती हैं।
अब तो एक के बाद दूसरी फिल्म में करवाचौथ के दृश्य फिल्माए जाने लगे हैं, जिसकी वजह से यह व्रत आधुनिक तथा ग्लैमराइज्ड हो गया है। टी.वी. सीरियलों में भी करवा चौथ को आधुनिक एवं पारम्परिक रूपों में दिखाने का चलन हो गया है। फिल्मों-सीरियलों में अभिनेत्रियों को शाम की पूजा के बाद छलनी से चांद को देखकर जल देने और फिर पति के पैरों को छूने के दृश्यों को फिल्माया जाता है। वैसे अब ऐसी धारणा भी बनने लगी है कि फिल्म व सीरियल में करवा चौथ का दृश्य रखे जाने का मतलब उनकी सफलता के सोपान खोलना है। अगर हम करवा-चौथ के दृश्यों वाली फिल्मों-सीरियलों के नाम गिनाने लगें, तो एक अच्छी-खासी सूची बन जाएगी।
पहले सादगी और बिना किसी शोर-शराबे से मनाए जाने वाले इस व्रत को फिल्मों तथा टी.वी. सीरियलों ने इतना तड़क-भड़क वाला बना दिया है कि व्रत से कुछ दिन पहले ही कपड़े, चूड़ी, बिन्दी, मेहंदी लगाने वालों का व्यापार तेजी पकड़ने लगता है। ब्यूटी पार्लरों में गहमागहमी बढ़ जाती है। इसी तरह करवा बेचने वालों से लेकर मिठाई वालों तक की खूब बिाी होती है। हलवाइयों की दुकानों पर मट्ठियों और फेनियों के अंबार लगने शुरू हो जाते हैं। अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार महिलाएं खरीदारी करती हैं।
टी.वी. और फिल्मों में इस व्रत को पंजाबी तरीके से रखने के फिल्मांकन से इसका रंग पंजाब और दिल्ली में कुछ ज्यादा ही चढ़ गया है। हालांकि इसे लगभग सभी जाति-वर्गों की महिलाएं रखती हैं। आज-कल में इस व्रत में हर कोई अपनी सामर्थ्य के हिसाब से दान-पुण्य करने से लेकर लड़की के ससुराल वालों के यहां भी बढ़-चढ़ कर सामान भेज रहे हैं।
आज की व्यस्त जिन्दगी में समय का अभाव अथवा पंडिताइन आदि के ना मिलने पर सुहागिनें करवा-चौथ के व्रत की विधि वाली कैसेट, सीडी आदि लगाकर पूजा कर लेती हैं। विदेशों में भारतीय महिलाएं तो अधिकतर इसी तरह से पूजा करती हैं। सीडी कैसेटों में कई तरह की कहानियां दी हुई हैं। हर महिला अपने समुदाय के तौर-तरीके के हिसाब से कहानी सुन कर पूजा कर लेती है। जैसे पंजाबियों में वीरो की कथा का प्रचलन है। पूजा के समय पंजाबी महिलाएं आपस में थाल घुमाती हैं। एक-दूसरे के थाल घुमा कर महिलाएं एक-दूसरे के सुहाग का आदान-प्रदान करती हैं। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण अंचलों में थाल की जगह करवे का इस्तेमाल किया जाता है। फिल्म, टी.वी. के प्रसार से करवा-चौथ का पर्व काफी कुछ आधुनिक हो चुका है।
– निर्विकल्प विश्र्वहृदय
You must be logged in to post a comment Login