नहीं, मैं आपको प्रेमिका के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकता। यह शब्द सुनते ही राधिका का चेहरा पराजित योद्घा की तरह लटक गया। उसने सोचा कि वह लू़जर है, बेकार है, किसी लायक नहीं है, अपूर्ण है, तरस खाने लायक है…
ये भद्दे शब्द हैं, लेकिन ठुकराये जाने पर अपनी भावनाओं को इन्हीं के सहारे परिभाषित किया जाता है। रोजमर्रा के अनुभवों में ठुकराया जाना और ठुकराये जाने का डर सबसे शक्तिशाली और परेशान करने वाली घटना होती है। ठुकराये जाने का डर अक्सर वास्तविकता की बजाए अनुमान पर आधारित होता है। हम में से ज्यादातर लोग सोचते हैं कि हम बुरा या शर्मिंदगी महसूस करेंगे, इसलिए इस अनुभव के खिलाफ हम ऐहतियात बरतते हैं।
शायद यही वजह है कि नये दोस्त बनाने के लिए अब सोशल नेटवर्किंग पर निर्भर रहा जा रहा है। ऑनलाइन जाने से ठुकराये जाने का डर कम हो जाता है। अगर कोई आपको अपनी सूची में शामिल नहीं करता, तो भी आप इसे सहजता से स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन व्यक्तिगत तौर पर किसी से मिलना और उसके सामने प्रस्ताव रखने की कल्पना ही बहुत लोगों को स्थिर कर देती है, जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो। इसलिए वे किसी लड़की के पास जाकर वार्तालाप शुरू करने की बजाए अफ्रीका के रेगिस्तान में भूखे, प्यासे और अकेले भटकने को वरीयता देंगे।
संबंधों में ठुकराये जाने का डर चिड़चिड़े, पीड़ा देने वाले या गुस्से से भरे बर्ताव को जन्म दे सकता है। इसके चलते हम दूसरों को ठुकरा देते हैं ताकि उनके द्वारा ठुकराये जाने से बच सकें। ठुकराये जाने की घटना पर जितना ज्यादा हम नकारात्मक दृष्टिकोण से सोचते रहेंगे, उतना ही कठिन हो जायेगा, दूसरी संभावित ठुकराये जाने की घटना का सामना करने के लिए साहस जुटाना।
एक कंपनी में फील्ड वर्करों से प्रोजेक्ट पर प्रतििाया की फीडबैक ली गयी। लेकिन वरिष्ठ प्रबंधकों ने नकारात्मक फीडबैक को सहजता से स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कटाक्ष किए और जूनियरों से महत्वपूर्ण जानकारियां शेयर करना बंद कर दिया। फील्डवर्करों को लगा कि उनका हुक्का-पानी बंद कर दिया गया है, उन्हें ठुकरा दिया गया है। अब उनमें से कोई भी अपने कॅरिअर संभावनाओं को सीमित नहीं करना चाहता था, इसलिए जब अगली बार उनसे फीडबैक ली गयी, तो वे खामोश रहे।
ग्रुप का हिस्सा बने रहना और स्वीकार किए जाने का अहसास स्वाभाविक है। इसे बरकरार रखने के लिए कुछ लोग अपने आपको मुश्किल परिस्थितियों में डालने से भी परहेज नहीं करते। राजबीर सिंह, वरिष्ठ सलाहकार, कहते हैं, “”जब मैं किशोर था, तो निरंतर स्वीकृति तलाशता रहता था। मुझे बदनाम होने से बड़ा डर लगता था। मेरे लिए महत्वपूर्ण था कि हर कोई मुझे पसंद करे, तभी मैं अपने आपको स्वीकार कर सकता था। मैंने सिगरेट का पहला कश सिर्फ इसलिए लिया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे दोस्त मुझे ठुकरा दें। ठुकराये जाने के डर से मैं हर किसी को खुश करने वाला व्यक्ति बन गया। अब डर और चिंताओं को दूर करने में काउंसलर मुझे मदद कर रहा है।”
ठुकराया जाना उन लोगों को ज्यादा परेशान करता है, जो ज़ज्बाती तौर पर भावुक होते हैं, जिनमें आत्मविश्र्वास व आत्मगौरव की कमी होती है या जो बचपन में शोषण व उत्पीड़न से गुजरे होते हैं। अगर कारण को नजरंदाज कर भी दें तो भी इससे “अब और यहां’ में समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। अगर हम ठुकराये जाने के डर से लगातार लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दें, तो हम खुशी, आनंद, उत्साह आदि जो दूसरे लोग प्रदान कर सकते हैं, उससे वंचित रह सकते हैं।
इसलिए आवश्यक है कि ठुकराये जाने के डर को हम अपने जीवन से निकाल दें। किस तरह? जवाब में यह सुझाव हैं-
- यह मानकर न बैठें कि ठुकराया जाना आपकी गलती है।
- यह जान लें कि ठुकराये जाने का अर्थ यह नहीं कि आप लू़जर हैं।
- यह धारणा विकसित न करें कि अगर एक व्यक्ति ने ठुकरा दिया है, तो बाकी लोग भी आपको ठुकराते रहेंगे।
- आपका आत्म-मूल्य इस बात पर निर्भर नहीं होना चाहिए कि दूसरे लोग आपको स्वीकार करते हैं या नहीं।
- लोगों को खुश करने वाले न बनें कि जो वह चाहते हैं आप वही करते रहें।
- दूसरों को जाहिर कर दें, जो कुछ आप किसी विषय के बारे में सोचते या महसूस करते हैं।
- कुछ गलत कहने या करने के लिए उत्सुक न रहें।
- मजाक बनने का रिस्क उठाने से न डरें।
- इस बात पर शर्मिंदगी का अहसास न करें कि लोग क्या कहेंगे क्योंकि, सबसे बड़ा रोग होता है कि क्या कहेंगे लोग।
- ठुकराये जाने का डर क्यों है? इसको पहचानें।
अंग्रेजी के मशहूर उपन्यासकार व कवि डी.एच. लॉरेंस ने जब अपना पहला उपन्यास “लेडी चैटरलीज लवर’ लिखा, तो उसे 27 प्रकाशकों ने ठुकरा दिया था। इस पर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। वे 28वें प्रकाशक के पास गये। उसने उपन्यास प्रकाशित किया और लॉरेंस की इस पुस्तक ने उनके लिए साहित्य इतिहास में प्रमुख जगह बना दी। इस प्रसंग से जाहिर है कि अक्सर ठुकराने वाला नुकसान में रहता है। इसलिए ठुकराये जाने पर कभी यह न सोचें कि आप में सफल होने के लिए पर्याप्त सलाहियतें नहीं हैं। कामयाबी सकारात्मक सोच से ही हासिल होती है।
– राजकुमार “दिनकर’
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