आरुणि धौम्य ऋषि का अत्यंत आज्ञाकारी शिष्य था। एक बार गुरु ने उसे रात में खेत में पहरा देने भेजा। उसने देखा कि खेत की मेड़ टूटने से उसमें पानी भीतर आ रहा है। उसे और कोई उपाय न सूझा तो बहते पानी को रोकने के लिए स्वयं ही मेड़ बनकर लेट गया। यही गुरुभक्त आगे चलकर उद्दालक ऋषि बना।
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