आ पिया पाषाण

पीर लेकर प्रीत अब

हर दिल में है जाने लगी

करे है घायल मधुरता

भर, ये तड़पाने लगी।

आह के बादल घुमरते

नैन बरसें उर जला

तन बदन में चाह के

दीपक हैं सुलगाने लगी।

भावना का है धुआँ

तुमसे लगा है – दिल मेरा

सोच यह पगली, तुम्हारी

और आजमाने लगी।

नींद बैरन-अन्न विष है

सुहाता अब कुछ नहीं

जलाती और बुझाती

आँसू में हॅंसाने लगी

विरह मारे बान है

बिंध कर करेजवा रिस रहा

आ पिया पाषाण अब तो

जान है, जाने लगी।

– प्रमोद कुमार प्रवीण

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