रम़जान के माह में रो़जा रखने का नियम है। मोहम्मद पैगम्बर ने एक सूक्ति द्वारा यह कहा था कि रम़जान के महीने में स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं और नरक के द्वार बन्द। अल्लाह द्वारा शैतानों को बंदी बना लिया जाता है। अल्लाह ने मोहम्मद पैगम्बर के द्वारा इस माह में हर व्यक्ति को सद्-कार्य करने का आदेश दिया।
इसलिए पाक रम़जान के महीने में पुण्य कार्यों की वृद्घि हो जाती है। इस्लाम धर्म में रो़जा रखने के नियम भिन्न-भिन्न नहीं हैं। एक मुसलमान इस माह के एक दिन में ही कम से कम चौदह घण्टे का रो़जा रह जाता है। मैं रो़जेदार हूं, यह विचार हमेशा उसकी स्मृति में बना रहता है, जिसके चलते वह पानी भी नहीं पीता है। इस तरह की कठिन पाबंदियों के कारण वह हर तरह के पाप करने से बच जाता है।
सायंकाल इफ़्तारी के बाद मुसलमान कुछ समय के लिए विश्राम कर लेता है। उसके बाद नमा़ज अदा करने के लिए मस्जिद में जाता है। उसके पश्र्चात घर लौटकर लगभग चार घण्टे की नींद लेता है। अलसुबह सेहरी कर अगले दिन का रो़जा प्रारंभ करता है। इस तरह की दिनचर्या में हर मुसलमान लगभग हर दिन बीस घण्टे अल्लाह की खिदमत में रहता है।
इसलिए रम़जान का माह पुण्य-कार्यों का माह कहलाता है। इस माह में अर्जित एक व्यक्ति अपना पुण्य अन्य व्यक्तिों को भी प्रदान कर सकता है। इससे समाज का कल्याण होता है। आध्यात्मिक और मानसिक रूप से व्यक्ति और समाज की प्रगति होती है। हर मुसलमान व्यक्ति रो़जे से संबंधित नियमों के पालन करने में अन्यों को अपना सहयोग प्रदान कर परमार्थक बनता है।
रम़जान पाक माह की खास बात यह है कि इसमें सारा मुसलमान संप्रदाय एक ही स्थिति में अल्लाह की इबादत करता है।
– आर. नरसिंह स्वामी
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