पाकिस्तान जेहादी आतंकवाद की जड़ है, यह सूचना किसी के लिए नई नहीं है। अफगानिस्तान की सीमा से लगा पाकिस्तान का उत्तर-पश्र्चिमी पहाड़ी क्षेत्र तालिबान एवं अल-कायदा के सर्वप्रमुख केन्द्र के रूप में विकसित हो चुका है, यह भी सर्वविदित है। ये शक्तियां स्वयं पाकिस्तान को भी अपने हिंसक हमलों से लगातार बींध रहीं हैं इसे भी दुनिया देख रही है। किंतु लंबे समय बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर फिर से आतंकवाद की घटनाओं में संलग्न होने का संगीन आरोप लगा है। काबुल दूतावास पर हमले के बाद कुछ आतंकवाद के विशेषज्ञ पूर्व राजनयिकों, रक्षा एवं खुफिया अधिकारियों ने आईएसआई की ओर उँगली उठाई तो इसे उनकी परंपरागत पाकिस्तान विरोधी मानसिकता का उत्पाद बताकर खारिज किया गया। आईएसआई, तालिबान एवं अल-कायदा या उनसे प्रेरित या जुड़े हुए अन्य जेहादी समूहों को वैचारिक एवं संसाधनिक हर प्रकार का सिाय सहयोग देकर उनसे आतंकवादी गतिविधियां करवाता रहा है, कम से कम भारत एवं अफगानिस्तान इस भयानक सच का प्रत्यक्ष भुक्तभोगी रहा है। लेकिन कुछ समय से यह धारणा बदलने लगी थी। ऐसा माना जाता था कि आईएसआई सहित सेना एवं पाक सत्ता प्रतिष्ठान के कुछ तत्वों ने पहले आतंकवाद को विदेश नीति के तौर पर इस्तेमाल अवश्य किया, लेकिन अब उनके लिए ही वे चुनौती बन चुके हैं एवं पाक सरकार उनसे लड़ रही है तथा उनके जो समर्थक तत्व सरकारी संस्थाओं में हैं उनके लिए बहुत कुछ करना मुश्किल है। इस धारणा के विपरीत पहले अफगानिस्तान की सरकार ने और उसके बाद भारत ने साफ तौर पर हाल की आतंकवादी गतिविधियों के पीछे आईएसआई एवं पाक सेना की भूमिका के प्रमाण मिलने की बात कही है।
अफगानिस्तान के राष्टपति हामिद करजई ने बिल्कुल साफ शब्दों में 14 जुलाई को काबुल स्थित भारतीय दूतावास पर हमले में आईएसआई के हाथ का आरोप लगाया। हालांकि हमले के बाद से ही करजई एवं अफगानिस्तान सरकार पाकिस्तान की ओर इशारा तो कर रही थी, लेकिन नाम लेने से बच रहे थे। इसके पहले जून में कंधार जेल पर हमला कर 400 तालिबानियों को रिहा कराने जैसी आतंक विरोधी युद्घ आरंभ होने के बाद की सबसे बड़ी आतंकी घटना हो या फिर अप्रैल में सेना के वार्षिक परेड कार्याम के दौरान करजई पर भयावह चौतरफा हमला, इनके लिए भी पाकिस्तान को ही उत्तरदायी ठहराया गया था। लेकिन आईएसआई या सेना का नाम नहीं लिया गया था। अब तो करजई ने पाक में दो अफगान नागरिकों की हत्या एवं उरुजगान प्रांत में आत्मघाती हमले में 24 लोगों की मौत को भी पाक की साजिश करार दिया है। भारत के राष्टीय सुरक्षा सलाहकार एम. के. नारायणन ने 12 जुलाई को एक टीवी चैनल से बात करते हुए साफ कहा कि काबुल हमले में आईएसआई के हाथ होने के बारे में हमें केवल संदेह नहीं है, बल्कि हमारे पास पर्याप्त खुफिया जानकारी है। राष्टीय सुरक्षा सलाहकार जैसा महत्वूपर्ण पद पर बैठा व्यक्ति पूरी तरह आश्र्वस्त हुए बगैर ऐसा बयान नहीं दे सकता। इस मामले में अफगानिस्तान एवं भारत दोनों को सूचनाएं मिल रहीं हैं तो हमारे सामने इस खतरनाक सच को स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं है। तो फिर क्या किया जाए? भारत ने अभी किसी कार्रवाई की बात नहीं की है। नारायणन ने कहा कि “हमें उसी अंदाज में जवाब देने की ़जरूरत है। कभी रणनीतिक संयम बरता गया हो परंतु साफ तौर पर अब यह संयम नहीं रह गया है।’ उन्होंने यह भी कहा कि “लड़ाई से बेहतर बातचीत है लेकिन अभी तक बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला है। इसी तरह हम इस निर्णय पर भी नहीं पहुँचे हैं कि हमें लड़ना चाहिए।’ ऐसे वक्तव्यों से स्पष्ट नहीं होता कि भारत, प्रत्युत्तर देने के साथ भविष्य में आईएसआई या आतंकी समूह ऐसा दुस्साहस न करें, उसके लिए क्या करने जा रहा है। कोई भी यह स्वीकार करेगा कि इससे खतरनाक स्थिति कुछ नहीं हो सकती एवं इससे निपटने के लिए आतंकवाद विरोधी युद्घ एवं कूटनीतिक रणनीति की नए सिरे से पुनर्रचना की आवश्यकता है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 11 जुलाई, 2006 को मुंबई के उपनगरीय रेलों पर आतंकी हमलों के बाद भी सुरक्षा सलाहकार का लगभग ऐसा ही वक्तव्य आया था। आईएसआई के हाथ होने के सबूत के दावे सरकार की ओर से किए गए थे, किंतु हुआ कुछ नहीं और उसके दो महीने बाद ही भारत-पाकिस्तान संयुक्त आतंक विरोधी ढांचा कायम हो गया। जिस प्रकार उस समय राष्टपति परवेज मुशर्रफ ने ऐसे आरोपों को नकारा था वैसे ही वहॉं के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी पाकिस्तानी हाथ होने से इंकार कर रहे हैं। आईएसआई एवं सेना पर लगे आरोपों को अमेरिका भी अभी स्वीकार नहीं कर रहा है। 16 जुलाई को रक्षा मंत्री रॉबर्ट गेट्स ने कहा कि उनके पास कोई सबूत नहीं और 17 जुलाई को जॉर्ज बुश ने कहा कि वे इसकी जॉंच करेंगे। अमेरिका का यह रवैया हमारे लिए चिंताजनक है, क्योंकि अमेरिका के सहयोग के बगैर वहॉं कोई माकूल कार्रवाई नहीं हो सकती।
किंतु अफगानिस्तान ने 16 जुलाई को पाकिस्तान से होने वाली सभी प्रकार की बातचीत को स्थगित कर दिया। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि पाक खुफिया एजेंसी एवं सेना के हिंसक मंसूबों को देखते हुए बैठकों का कोई मतलब नहीं है। हमें शायद इस निर्णय की गंभीरता का अहसास नहीं हो, लेकिन इस समय पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान के संबंध हाल के वर्षों के सबसे ज्यादा तनावपूर्ण दौर में हैं। कंधार जेल हमलों के बाद करजई ने पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को मारने का बयान दिया था। उसके बाद से स्थिति काफी बिगड़ चुकी है। अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के साथ बातचीत स्थगित करने का निर्णय भारतीय विदेश सचिव शिवशंकर मेनन की यात्रा के ठीक एक दिन बाद लिया। इससे पाकिस्तान में यह धारणा बनी है कि अफगानिस्तान भारत की शह पर ही ऐसा आाामक रवैया अपना रहा है। मेनन की यात्रा के दौरान संयुक्त वक्तव्य में पाक की ओर इशारा करते हुए आतंक के खिलाफ मिलकर कार्रवाई की बात कही गई थी। इसका अर्थ भी कई प्रकार से लगाया जा रहा है। अफगानिस्तान को एक उपनिवेश के तौर पर इस्तेमाल करने वाला पाकिस्तान भारत के साथ उसके गहरे संबंध एवं वहॉं इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को आसानी से पचा नहीं सकता। इसलिए यह भारत के लिए कठिनाईयां पैदा करने तथा अफगानिस्तान को अपने पाले में लाने की हर मुमकिन कोशिश करेगा। यह भारत को तय करना है कि वह कैसे इनका प्रत्युत्तर दे। अमेरिका एवं नाटो की इच्छा है कि भारत पर्याप्त संख्या में अपनी सेना वहॉं भेजे। लेकिन भारत ऐसा करने का साहस दिखा पाएगा? अगर सेना गई भी तो क्या उसको आतंकियों का पीछा करते हुए पाक सीमा के भीतर कार्रवाई की अनुमति होगी? अमेरिकी तथा नाटो की सेनाएं पाक सीमा के भीतर प्रवेश कर कार्रवाई करने या किसी तरह उनके अड्डों को नष्ट करने का कदम उठाने की इजाजत चाहती हैं। करजई ने भी ऐसी ही इच्छा व्यक्त की है। हालांकि पाक सीमा के निकट सैनिकों के जमाव के बारे में नाटो के प्रवक्ता जेम्स अप्पाथुरई ने साफ कहा कि उनका पाक सीमा में प्रवेश करने का न कार्याम है और न इसके लिए उन्हें अऩुमति ही है। हो सकता है यह पाक के भीतर ऐसे हमले की आशंका के कारण देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर दिया गया हो। जो भी हो, भारत अफगानिस्तान के साथ मिलकर सघन कूटनीतिक अभियान चलाकर अमेरिका एवं नाटो को यह समझाने की कोशिश करे कि पाक स्थित स्रोतों का अंत किए बगैर आप आतंक विरोधी युद्घ को कभी फतह नहीं कर सकते। साथ ही भारत की स्वयं की तैयारी भी होनी चहिए।
– अवधेश कुमार
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