उफ! ये गर्मी

उफ! ये गर्मी सब पर भारी,

दहक उठी है धरती सारी।

गर्म हवा ने तीर चलाए,

हरे-भरे पेड़ मुरझाए।

अकड़ रहे हैं सूरज राजा,

ठंडी हवा का बज गया बाजा।

बड़ी तेज आती है धूप,

गुस्साया सा उसका रूप।

नदियों में कम हो गया पानी,

तालों पर दिखती वीरानी।

नलों से पानी न आता,

पानी बिना मन घबराता।

बिजली ने भी असर दिखाया,

घंटों तक इंतज़ार कराया।

परेशान होते हैं सारे,

आखिर हैं गर्मी से हारे।

– शशिशेखर त्रिपाठी

You must be logged in to post a comment Login