शालिनी और सपना दो बहने हैं। शालिनी सपना से तीन साल छोटी है, जबकि सपना की उम्र 19 साल है। शालिनी स्कूल, स्थानीय मार्केट या पास के शॉपिंग मॉल तक भी अकेले जाने से डरती है। वह सपना के बिना एक कदम भी घर से बाहर नहीं निकालती। उसे डर लगा रहता है कि अगर वह कहीं अकेले जायेगी तो कोई उसका सेक्सुअल शोषण या उत्पीड़न करेगा, उसके साथ बलात्कार कर लेगा या उसे अगवा करके ले जायेगा।
इसलिए अगर दिन के भरपूर उजाले में भी शालिनी की मम्मी उससे बीस कदम के फासले पर स्थित कन्फेक्शनरी से ब्रेड लाने के लिए कह दें तो भी वह अकेले नहीं निकलती। अपनी बहन सपना को अपने साथ चलने पर मजबूर करती है। अगर किसी वजह से सपना साथ न जाये या जाने से मना कर दे तो शालिनी अपने कमरे में समा जाती है, वहां से टस से मस नहीं होती और अपने नखरों से घर में कोहराम मचा देती है।
शालिनी की जो स्थिति है, उसे एग्राफोबिया कहते हैं-सेक्सुअल शोषण का असामान्य डर। एग्राफोबिया, एगोराफोबिया से भिन्न है, दोनों को एक बात नहीं समझना चाहिए। एगोराफोबिया एंग्जाइटी डिसऑर्डर है, जिसमें पीड़ित अवामी/अपरिचित जगहों से बचता है क्योंकि उसे अपने घर की चारदीवारी में अधिक सुरक्षा महसूस होती है। एग्राफोबिया सेक्सुअल शोषण का बहुत अधिक डर है, जिसका पिछले किसी सेक्सुअल या इमोशनल टॉमा से संबंध हो भी सकता है और नहीं भी।
- सेक्सुअल शोषण की घटनाओं के बारे में सुनना या ग्राफिक इमेजिस देखना (असल जीवन में, फिल्मों या टेलीविजन पर) इससे भी अप्राकृतिक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- इस फोबिया से पीड़ित व्यक्ति की मोबिलिटी (जाना-आना) सीमित हो जाती है। साथ ही वह पैनिक अटैक या जबरदस्त डिप्रेशन का शिकार भी हो सकता है।
इस फोबिया से उबरने या छुटकारा पाने की राह कठिन है। इसके इलाज में अनेक तरीके अपनाये जाते हैं-हिपनोसिस, बिहेवियरल थैरेपी और डग उपचार। एग्राफोबिक पुरूष या महिला का इलाज उसी सूरत में हो सकता है, अगर वह स्वयं इलाज कराने का/की इच्छुक हो। इच्छुक होने पर ही वह दवाओं व अन्य उपचार विधियों पर प्रतििाया करेगा। इसके अलावा इस डर पर काबू पाने के लिए यह भी जरूरी है कि पीड़ित व उसके परिवार में संयम हो, परिवार पूरी तरह से पीड़ित का साथ दे और उपचार कुशल विशेषज्ञों की निगरानी में कराया जाये।
बहरहाल, विशेषज्ञों का कहना है कि एग्राफोबिया के रोगी हमारे देश की तुलना में पश्र्चिम देशों में अधिक हैं। हमारे देश में अक्सर बड़े परिवार होते हैं, जो अतिरिक्त सपोर्ट सिस्टम प्रदान करते हैं। यह सुविधा विदेशों में किशोरों को उपलब्ध नहीं है, जिन्हें अक्सर जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ता है और वह अधिक डरे हुए व भयभीत भी होते हैं। लेकिन जिस तरह से हमारे यहां भी संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और युवाओं में तलाक बढ़ रहे हैं, उससे ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ रही है, जिन्हें अकेले ही भरी दुनिया में अपने लिए राहें निकालनी पड़ेंगी। ऐसे बच्चों को एग्राफोबिया का खतरा अधिक है।
एग्राफोबिया से पीड़ित व्यक्ति बहुत अधिक तनाव में रहता है और उसकी अंदरूनी प्रतििाया यह होगी कि वह उससे बचे, जिससे वह डरता है और अधिकतर घर पर ही रुका रहे। उनके इलाज का पहला रास्ता यह है कि उन्हें घर से बाहर निकलने के लिए प्रेरित किया जाए। उनके डर की जड़ तक पहुंचने के लिए हिपनोसिस से मदद मिल भी सकती है और नहीं भी मिल सकती। बिहेवियर थैरेपी के नतीजे अच्छे निकलते हैं, क्योंकि इसमें अन्य चीजों के साथ रिलैक्सेशन तकनीकों का प्रयोग होता है ताकि तनाव कम किया जा सके, आखिरकार, एक शांत दिमाग डर या एंग्जाइटी के प्रति बेहतर प्रतििाया व्यक्त करता है। डग टीटमेंट उस समय शानदार रहता है, जब रोगी बिहेवियर थैरेपी से गुजर चुका होता है। मुख्य रूप से एग्जियोलाइटिक्स और एन्टी-डिप्रैसेंट्स डग्स दी जाती हैं ताकि एंग्जाइटी और डिप्रेशन को दूर किया जा सके।
– डॉ. बी बी गिरि
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