प्रसिद्घ पार्श्र्व गायिका आशा भोंसले की मदमस्त कर देने वाली गायिकी का आज भी कोई विकल्प नहीं है। कटु आलोचक भी मानते हैं कि उनके बिना फिल्म संगीत की कोई भी परिभाषा अधूरी है। हाल ही में जी टीवी के रियाल्टी शो “महागुरु’ की वह जज भी बनीं। इस संदर्भ में हुई एक मुलाकात के दौरान उन्होंने कई पेचीदा सवालों का सुलझा हुआ जवाब दिया।
क्या इस तरह के रियाल्टी शो वाकई में अच्छे गायक तैयार करने में मदद करते हैं?
देखिए, इतने शो के बीच कौन एक ठीक-ठाक गायक कलाकार के रूप में सामने आयेगा, यह सब कुछ उक्त कलाकार पर निर्भर करता है। आप में प्रतिभा होगी, तो देर-सेवर सराहना आपके हिस्से में ही आयेगी।
क्या एसएमएस के माध्यम से सही गायक उभर कर सामने आ पाता है?
बिल्कुल नहीं। वोटिंग का कोई मतलब नहीं होता है। जिसका जितना बड़ा परिवार है, जितने यार दोस्त हैं, वह उतने ही ज्यादा वोट पायेगा। इससे सही गाने वाले के साथ सही निर्णय नहीं हो पाता है। एसएमएस सिर्फ अपने गाने वाले लोगों को अपनी ओर से जिताने की कोशिश है। मुझे लगता है, एकमात्र सुरों के सही जानकार ही सही गाने वाले की तलाश कर सकते हैं। वोटिंग कभी भी इस खोज का मापदंड नहीं बन सकती।
आज तो कम उम्र के बच्चों को भी ऐसे रियाल्टी शो में उतारा जा रहा है?
मैं तो हमेशा ही छोटे-छोटे बच्चों को ऐसे शो में उतारने के पक्ष में नहीं रही हूं। वह जब बड़ों की तरह कॉस्ट्यूम पहन कर पूरे मेकअप के साथ चकाचौंध रोशनी के सामने परफॉर्म करते हैं, तो उनका सिर थोड़ा घूम जाता है। ग्लैमर की रोशनी में बेचारे बच्चे इस कदर फंस जाते हैं कि उन्हें कुछ भी नहीं सूझता। ऐसे में वे कुछ भी तय नहीं कर पाते हैं, न ही पढ़ाई ठीक से हो पाती है न गाना-बजाना। आपने देखा ही होगा कि ज्यादातर बाल कलाकार बड़े होने पर ठीक-ठाक काम नहीं कर पाते हैं। आप “मासूम’ फिल्म के जुगल हंसराज को ही ले लीजिए, बड़ा होकर वह वैसा कुछ कमाल नहीं दिखा पाया।
मैंने देखा है, बचपन में प्रसिद्घि पाने वाले बड़े होने पर वह कहीं गुम हो जाते हैं। मैंने तो अपने बच्चों को शुरू से ही फिल्मों में आऩे के लिए मना कर रखा था। मैं तो उन्हें अपनी रिकॉर्डिंग में भी नहीं ले जाती थी। मैं तो हमेशा कहती हूँ, हजारों साल में ईश्र्वर एकाध लता-रफी तैयार करता है। ईश्र्वर सभी को वैसा हुनर और भाग्य देकर पृथ्वी पर नहीं भेजता है। फिर हम लोगों ने जिस तरह का संघर्ष किया है, उसका पॉंच प्रतिशत भी वे नहीं कर पायेंगे। शुरू में ही ग्लैमर की रोशनी में आने पर संघर्ष का सारा जज्बा भी जाता रहता है।
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