पहले बंगलुरू और फिर अहमदाबाद के दिल दहला देने वाले सीरियल धमाकों के बाद भी जिस तरह से देश की दो बड़ी पार्टियों के राजनेताओं ने बयानबाजी की, उससे इस मुहावरे में कतई अतिशयोक्ति नहीं लगती कि राजनेता वोट की रोटियां इंसानी चिताओं में सेकते हैं।
भारत आतंकवाद के भयानक दलदल में फंस चुका लगता है। आतंकवादियों ने हिन्दुस्तान में न सिर्फ अपनी जड़ें मजबूत कर ली हैं बल्कि हम चाहें लाख मना करें लेकिन उन्होंने एक सामाजिक दरार भी पैदा कर दी है और इस दरार में खुद को सुरक्षित कर लिया है। इस सबको देखने और समझने के बाद भी हमारे राजनेता कोई सबक नहीं सीख रहे बल्कि वह इन कठिन समय की घड़ियों का भी अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। भले यह कहा जा रहा हो कि दुनिया के ज्यादातर पश्र्चिमी देश आतंकवाद से जूझ रहे हैं लेकिन आतंकवाद के जिस घिनौने रूप से हिन्दुस्तान दो-चार है, वैसा भयानक और वीभत्स आतंकवाद और कहीं देखने को नहीं मिला। आतंकवादी दिन पर दिन अपने कुत्सित इरादों में सफल होते जा रहे हैं। पहले एक-दो धमाके करने के बाद आतंकवादी दुबक जाते थे। उन्हें डर रहता था कि अगर उनकी सिायता देर तक जारी रही तो पकड़े जाएंगे। मगर अब उनका दुस्साहस इस कदर बढ़ चुका है कि एक, दो, तीन नहीं बल्कि 17-17 धमाके लगातार करते हैं और यह धमाके भी कोई दो-चार मिनट के अंदर नहीं होते बल्कि पूरे 90 मिनट तक इन धमाकों का एक के बाद एक सिलसिला चलता रहता है।
आतंकवादी सिर्फ बम विस्फोट ही नहीं करते बल्कि विस्फोटों के पहले और उसके बाद दुस्साहसी धमकियां भी देते हैं। हैरानी की बात यह है कि वह अकसर अपनी धमकियों पर अमल कर पाने में भी सफल हो जाते हैं। अगर ऐसा न होता तो अहमदाबाद के ठीक बाद सूरत में एक के बाद एक 23 बमों और कई दर्जन बम बना सकने की सामग्री न मिली होती। सूरत में आतंकवादियों ने अहमदाबाद से भी एक कदम आगे का दुस्साहस दिखाया है। क्योंकि शनिवार की शाम अहमदाबाद में बम विस्फोटों की श्रृंखला के बाद पूरे देश में हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया। फिर भी इतवार के दिन सूरत में कई जगहों पर बम बनाने की सामग्री का जखीरा मिला। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सूरत में इसके बाद देश के दूसरे शहरों के मुकाबले और ज्यादा हाई अलर्ट कर दिया गया होगा। लेकिन इन तमाम सजगताओं को धता बताते हुए आतंकवादियों ने जिस तरह से पूरे शहर में बमों का जाल बिछा दिया और मंगलवार के दिन रह-रहकर शहर के हर कोने से बमों की बरामदगी होती रही, वह आतंकवादियों के हैरान कर देने वाले दुस्साहस और हमारी खुफिया एजेंसियों की शर्मनाक विफलता की कहानी है।
देश जब इतने भयानक संकट से गुजर रहा हो, आम लोगों का अपनी सुरक्षा को लेकर विश्र्वास उठ गया हो और सरकारें अपने तमाम दावों के बाद आतंकवादियों के सामने लाचार साबित हो रही हों, उस सबके मध्य भी अगर राजनीतिक पार्टियां वोट की राजनीति करें, एक-दूसरे पर घिनौने आरोप लगाएं तो इसे उनके पतन की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या कहा जा सकता है। यह महज संयोग नहीं है कि आतंकवादियों के एक संगठन ने ई-मेल करके राजनेताओं को धन्यवाद दिया है कि वह उनका काम आसान कर रही हैं। यह हमारे राजनीतिज्ञों और लोकतांत्रिक परिपक्वता के तथाकथित दावों के मुंह पर तमाचा है। हो सकता है आतंकवादियों की बजाय यह किसी शरारती तत्व का काम हो। लेकिन जिस तरह से इन बम विस्फोटों के बाद राजनेताओं ने फूहड़पन दिखाया, अपनी भोथरी राजनीतिक मंशा को उजागर किया, वह सब किसी शर्मनाक हादसे से कम नहीं है।
इस समय भले ही पूरे देश में बौद्घिक तबके के बीच सुषमा स्वराज के उस बयान की थू-थू हो रही हो जिसमें उन्होंने कहा कि केन्द्र में सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी आम मतदाताओं का संसद के कैश कांड से ध्यान बंटाने के लिए भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेशों में बम विस्फोट करा रही है ताकि अमेरिकापरस्ती के चलते जो मुस्लिम वोट कांग्रेस से छिटक चुका है वह वापस आ जाए। लेकिन शायद ज्यादातर लोग भूल रहे हैं कि आतंकवाद को लेकर इस घिनौने स्तर पर सुषमा स्वराज और भाजपा के उतरने के पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने इसकी शुरूआत की थी। शनिवार की शाम जब अभी विस्फोटों की खौफनाक खबरें आनी शुरू ही हुई थीं कि कानपुर में गृह राज्यमंत्री ने एक बेहद घटिया टिप्पणी की। उन्होंने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए कहा कि यह जांच का विषय है कि आखिर भाजपा शासित प्रदेशों में ही क्यों विस्फोट हो रहे हैं। यह कहते हुए मंत्री महोदय ने अपनी आंखों को आरोह-अवरोह के ाम में जिस तरह से नचाया, वह इस अधूरे वाक्य यानी इस सवालिया वाक्य का जवाब थीं।
आखिर गृह राज्यमंत्री ने बम विस्फोटों के दौरान ही इस तरह की भड़काऊ टिप्पणी कैसे की? अगर उन्हें इन आतंकवादी वारदातों के पीछे भाजपा की कोई राजनैतिक मंशा या उसका षड़यंत्र लग रहा था तो वह इस आशंका को मंत्रिमण्डलीय बैठक में रखते और इस पर सरकार के स्तर पर विचार-विमर्श किया जाता या इसकी जांच-पड़ताल होती और उस जांच-पड़ताल के दौरान जो बात सामने ठोस सबूत के साथ आती, उसे लोगों, खासतौर पर उस मीडिया के सामने रखती जो अपना धंधा चमकाने के लिए बात का बतंगड़ बनाने से नहीं चूकती। लेकिन गृह राज्यमंत्री जैसे बेहद जिम्मेदार पद पर बैठे होने के बावजूद श्रीप्रकाश जायसवाल ने इतनी परिपक्वता दिखाने की जहमत नहीं उठाई।
भाजपा की वरिष्ठ नेता और कई वरिष्ठ मंत्री पद पर रह चुकीं सुषमा स्वराज ने भी गृह राज्यमंत्री की इस गैर जिम्मेदाराना बयान से कोई सबक नहीं लिया उल्टे उनसे अधिक गैर-जिम्मेदारी दिखाने पर आमादा हो गईं। उन्होंने तो एक कदम और जाते हुए सीधे-सीधे कांग्रेस पर आरोप लगाया कि ये तमाम बम विस्फोट कांग्रेस करा रही है ताकि भाजपा के विरूद्घ राजनीतिक माहौल बनाया जा सके और एटमी डील के चलते खुद से बिछड़े मुस्लिम वोट को फिर से हासिल कर सके। सुषमा स्वराज के बयान को हालांकि एनडीए के सहयोगी दलों ने भी सिरे से खारिज कर दिया है और भाजपा के पैतृक संगठन आरएसएस ने भी सुषमा स्वराज के इस निचले स्तर पर उतर आने पर हैरानगी जताई है। लेकिन भाजपा ने इस संबंध में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की कि सुषमा स्वराज ने जो भी कुछ कहा है, उसकी वह निंदा करता है अथवा यह उनका अपना निजी बयान है। अलबत्ता, खुद सुषमा स्वराज ने जरूर चारों तरफ से अपने पर थू-थू देखकर इस बयान को अपनी व्यक्तिगत राय बताकर उसे हल्का करने की कोशिश की है।
लेकिन बार-बार शर्मसार होने के बाद भी राजनीतिक पार्टियां किसी भी संवेदनशील मुद्दे को, समस्या को राजनीतिक रंग देने से नहीं चूक रहीं। सत्ता की हवस उन पर कुछ इस कदर तारी है कि वह उसके लिए कुछ भी करने और कहने को तैयार हैं। ऐसे में जनता को ही परिपक्वता दिखानी होगी और आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए कमर कसनी होगी।
वैसे जनता ऐसा करती दिख भी रही है। बार-बार सांप्रदायिक तनाव वाले शहरों में बम विस्फोटों के बाद भी जिस तरह से हिन्दुओं और मुसलमानों ने संयम का परिचय दिया है, बम विस्फोटों के बाद किसी तरह का दंगा नहीं भड़का है तथा इन हादसों के बाद लोग एक-दूसरे की मदद के लिए जिस तरह से आगे आएं हैं, वह सब जनता की परिपक्वता की कहानी के हिस्से हैं। यही नहीं, सूरत में जो 23 बम और बारूद से भरी कई कारें बरामद हुई हैं, उन सबको बरामद कराने वाले भी आम लोग ही रहे हैं, ये बातें इस बात की गवाह हैं कि जनता परिपक्व हो रही है मगर नेता तो शायद उलटी दिशा में चल रहे हैं। उन्हें अपने पतन से कतई कोई शर्म महसूस नहीं हो रही है। शायद भारतीय लोकतंत्र के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की कोई दूसरी बात नहीं हो सकती।
– लोकमित्र
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