न जाने क्यों, आज उसके पिताजी ने उससे कहा कि निशा को नौकरी से निकाल दें।
उसने कारण जानने का प्रयास भी किया, लेकिन वे कुछ जवाब दिये बिना ही कंपनी चले गये और वह भी अपने कोचिंग संस्थान में आकर अपने कक्ष में बैठ गया। उसने इंटरकॉम पर निशा के नंबर डायल किये और अपने कक्ष में आने को कहा।
निशा, उसके कोचिंग संस्थान की मैनेजर है और पिछले तीन सालों से उसके कोचिंग संस्थान की व्यवस्था को बहुत ही कुशलता से संभाल रही है। संस्थान द्वारा विभिन्न तकनीकी एवं व्यावसायिक पाठयामों में प्रवेश हेतु छात्रों को उचित शिक्षण एवं मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है। उसने मुंबई से आई.आई.टी. करने के बाद भी नौकरी को प्राथमिकता नहीं दी वरन् अपेक्षाकृत अपने छोटे शहर की भावी पीढ़ी को मार्गदर्शन देने का मार्ग चुना।
वह सदैव अपने कोचिंग संस्थान में अध्ययनरत विद्यार्थियों को मूल्य आधारित जीवन की प्रेरणा देता रहा है। जबसे उसने निशा को अपने संस्थान की मैनेजर बनाया है, उसके पिताजी हमेशा निशा को अपमानित करने का कोई न कोई कारण ढूंढ़ते ही रहते हैं, लेकिन आज तो उन्होंने स्पष्टतः उसे नौकरी से ही निकालने का फरमान जारी कर दिया। उसने सोचा, पिताजी तो कुछ बताने से रहे, शायद निशा इस बारे में कुछ बता सके। इसलिए उसने आज निशा से सब कुछ जानने का निश्र्चय कर लिया, जिससे इस बात का खुलासा किया जा सके कि आखिर क्यों उसके पिताजी निशा से नफरत करते हैं, जबकि पिछले तीन सालों में निशा की तरफ से उसे कभी शिकायत का कोई मौका नहीं मिला। वह एक संकोची स्वभाव की लड़की थी और अधिकांशतः अपने कार्य में ही व्यस्त रहती थी। संस्थान में कार्यरत लेक्चरर्स ने भी कभी निशा के बारे में कोई शिकायत नहीं की। अनुशासन उसे बहुत प्रिय था।
“”सर! आपने मुझे बुलाया?” निशा की आवाज से उसका ध्यान भंग हो गया।
“”हॉं-हॉं, आओ बैठो”, उसने कहा।
“”निशा, मैंने अब तक तुम्हारी पारिवारिक पृष्ठभूमि पर कभी कोई सवाल नहीं किया और न ही तुमने अपने आप बताना उचित समझा..”, उसने कहना जारी रखा।
“”चूँकि मैंने अपनी अधिकांश शिक्षा अन्य शहरों में ही पूरी की है, इसलिए तुम्हारे परिवार के बारे में मुझे कुछ भी जानकारी नहीं है। यदि तुम इस मामले में मेरी सहायता करो तो तुम्हारे प्रति मेरे पिताजी के मन पर छाया हुआ नफरत का कोहरा दूर हो सके।”
पहले तो वह इंकार करती रही, किन्तु बहुत दबाव देने पर ही वह तैयार हुई और उसने जो कुछ बताया, यदि वाकई वो सच था तो निशा के पिता के साथ घोर अन्याय किया गया था, जिसमें मेरे पिताजी एवं उनके कुछ मित्र भी शामिल थे। उसने बताया कि उसके पिता जी जिस ऑफिस में कार्यरत थे, उसमें करोड़ों का घोटाला उजागर हुआ था। उस घोटाले को उजागर करने वाले निशा के पिता ही थे। घोटाले में फंसी हुई रकम बहुत बड़ी थी। कई बड़े अधिकारियों के नाम भी बाहर आने की संभावना थी। शुरू में तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा। जॉंच भी धीमी गति से चलती रही। एक दिन अचानक निशा के पिता को उच्च प्रबन्धन द्वारा निलंबन का आदेश थमा दिया गया और उनके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी गयी, जिसमें प्रबन्धन ने पूरी तरह से निशा के पिता को ही जिम्मेदार ठहराया।
प्रबंधन की ओर से की गई विभागीय जांच में भी उसके पिता को दोषी ठहराकर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। उस समय तक निशा ने एम.एस.सी. कर लिया था और वह प्राइवेट ट्यूशन करने लगी थी। निर्दोष होते हुए भी नौकरी से बर्खास्त किये जाने की घटना ने निशा के पिता को मानसिक तौर पर बीमार बना दिया और दो वर्ष पूर्व ही उनका देहांत हो गया।
निशा ने इस समूचे घटनााम में जो कुछ बताया, उसमें मेरे लिए शर्मिंदा होने वाली बात यह थी कि उसके पिता को नौकरी से निकाले जाने की घटना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मेरे पिताजी ने ही अदा की थी। यह बात निशा के पिता ने मरने से पूर्व निशा को बताई थी कि घोटाले में फंसी हुई रकम जिस कंपनी ने प्राप्त की थी, वो मेरे पिताजी की ही कंपनी थी। मेरे पिताजी के संबंध कई उच्चाधिकारियों से थे। उन्होंने बड़ी ही सफाई से अपने आपको बचाते हुए, सारा दोष निशा के पिता पर डाल दिया और जॉंच अधिकारी ने निशा के पिता को दोषी साबित कर दिया, जबकि जॉंच में पेश किये गये सारे के सारे दस्तावेजी सबूत मेरे पिता के खिलाफ थे। समूची जॉंच प्रणाली व्यक्तिगत द्वेष एवं ईर्ष्या के आधार पर लगाये गये आरोपों पर अवलम्बित थी। “”खैर, जो होना था, सो हो चुका।” इतना कहते-कहते निशा की आँखों में आँसू आ गये।
अब उसकी समझ में आया कि क्यों उसके पिताजी हमेशा निशा को भला-बुरा कहते रहते हैं। निशा की बताई हुई घटना की सच्चाई जानना उसके लिए अब बहुत जरूरी हो गया था कि आखिर क्यों उसके पिताजी को यह सब करना पड़ा? अपने पिता के सहयोगियों से सारी जानकारी लेने के बाद जिस हकीकत से उसे रूबरू होना पड़ा, उसने उसके समूचे वजूद को ही हिलाकर रख दिया। वह तो सदैव अपने पिता को एक आदर्श पुरुष ही समझता रहा।
अब उसे अपने भविष्य के बारे में जो भी फैसला लेना है, स्वयं बहुत ही सोच-समझकर लेना होगा। उसने अपने पिता से इस संबंध में कोई बात करना उचित नहीं समझा।
– के.आर. चौहान
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