“”आज से पहले कितनी बार रौशन हुआ है आपका किला?” हालांकि भागमती ने यह बात मुस्कुराते हुए कही, पर उसकी आवाज में छिपा हुआ व्यंग्य साफ था।
“”ऐसा पहली बार होगा मेरी भाग..” मोहम्मद ने उसे अपने पास खींचते हुए कहा।
“”मेरे सरताज, मैं आपके किले में जरूर आऊंगी, पर यूं रात के अंधेरे में नहीं, बल्कि दिन के उजियारे में और वह भी कुछ देर के लिए नहीं, हमेशा के लिए।”
“”तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो और इसके लिए मैं तुम्हें पूरे मान-सम्मान के साथ लेने आऊँगा, मेरी मल्लिका।”
मोहम्मद की ये बात सुनते ही भागमती ने अपने-आप को उसकी बांहों में ढीला छोड़ दिया। दोनों अपनी ही दुनिया, अपने ही ख्यालों में खो गए।
व़क्त अपनी रफ़्तार से चल रहा था। भागमती और मोहम्मद का रिश्ता भी वक्त के साथ-साथ म़जबूत होता जा रहा था। अब तो गांव के लोगों ने भी उनके बारे में बातें बनानी बंद कर दी थीं। गांववालों की नजरों में दोनों की एक खास जगह थी और क्यों न होती भला, उनकी वजह से ही तो गांव की हालत बदल गई थी।
और, एक दिन गांव में खबर आई कि वृद्घ सुल्तान का देहांत हो गया। पेशवा (महामंत्री) सल्तनत के काम से दौरे पर थे। इस बीच भागमती के पास उसके प्रिय राजकुमार की कोई खबर नहीं आई। गांव में एक अजीब-सा सन्नाटा छा गया था। फिर एक दिन गांव में मुनादी हुई कि मोहम्मद कुली, भागमती के प्रिय राजकुमार, नये सुल्तान बन गए हैं। और उसके साथ ही यह अफवाह भी उड़ी कि उन्होंने पेशवा मीर शाह मीर की बेटी, जिसका रिश्ता उनके बड़े भाई से तय था, के साथ निकाह कर लिया है।
भागमती ने भी यह सब सुना, पर वह इसे सच मानने को तैयार नहीं थी। और यह सब सच था कि झूठ, इसे जानने का भी कोई रास्ता उसके पास नहीं था।
दो महीने तक मोहम्मद की कोई खबर नहीं आई। लिंगय्या उदास बेटी की ऩजरों का सामना नहीं कर पाता था, लेकिन वह भी मजबूर था। गांव में हो रहे पूरे काम लगभग बंद हो गए थे। सब कुछ ठहर-सा गया था, पर भागमती का मंदिर जाना नहीं थमा था। वह अब भी कभी-कभार देवी के सामने गाया करती। कई बार उसके मन में देवी के लिए रोष भी उभरता कि उसके साथ ही यह सब क्यों हुआ? लेकिन कुछ ही देर बाद वह मन को समझाती, शायद उसके लिए यही ठीक था, इसलिए ऐसा हुआ।
एक दिन ऐसे ही ख्यालों में गुम वह मन्दिर से निकली तो उसे जानी-पहचानी आवा़ज सुनाई दी, “”भाग, मैं आ गया हूं।” उसके सामने मोहम्मद खड़ा था, लेकिन आज वह अकेला नहीं, उसके साथ कई और सिपाही थे।
“”सुल्तान, आपके इस गांव में आने से यहॉं के लोगों का और इस दासी का जीवन धन्य हो गया है। कहिए, हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं?” यह कहते हुए प्रथा के अनुसार भागमती ने बार-बार झुक कर मोहम्मद कुली को सलाम किया। उसकी आवाज बिल्कुल बर्फ़ जैसी ठण्डी थी।
“”मैं तुम्हें लेने आया हूं भाग।” मोहम्मद ने ऐसे कहा, मानों जैसे उसने उसके ताने की तरफ ध्यान ही न दिया हो।
“”लेकिन सुल्तान का तो निकाह हो चुका है। अरे, मैं तो आपको शादी की मुबारकबाद ही देना भूल गई! इस दासी को इस गुस्ता़खी के लिए माफ करें ह़जूर!”
“”भाग, वह शादी नहीं एक सियासी चाल थी।”
“”शादी और सियासी चाल…? मुझ जैसी गॉंव वाली के लिए यह समझना मुश्किल है कि शादी राजनीतिक चाल कैसे हो सकती है!” भागमती की आवा़ज में गुस्से का पुट साफ सुनाई दे रहा था।
“”तुम नहीं समझोगी। तुम्हें समझने की कोई जरूरत भी नहीं है। तुम सिर्फ इतना समझ लो कि अगर मैं वह सब नहीं करता तो शायद आज तुम्हारे सामने ़िजंदा नहीं खड़ा होता।”
“]िजंदा तो रहते सुल्तान, पर हां शायद सुल्तान न होते। क्या सुल्तान बनना इतना जरूरी था?”
“”भाग, हमारी दुनिया के ़कायदे-कानून अलग हैं। यहॉं या त़ख्त या त़ख्ता का ़कानून चलता है। अगर मैं सुल्तान न बनता तो या तो मेरी गर्दन उड़ा दी गई होती या मैं किसी काल-कोठरी में पड़ा सड़ रहा होता।”
“”आप लड़ सकते थे, लेकिन शादी..”
“”हॉं, शादी जरूरी थी। ये सब पाने के लिए। इसीलिए तो कह रहा हूं कि ये शादी, शादी नहीं एक राजनीतिक ़जरूरत थी, जो अब खत्म हो चुकी है। वह सिर्फ नाम के लिए मेरी पत्नी बनी है। वह तो निकाह वाले दिन से ही मेरे हरम की दीवार के उस पार भेज दी जा चुकी है। उससे अब मुझे कुछ लेना-देना नहीं।”
“”पर सुल्तान, आप मुझे कम से कम एक संदेशा तो भिजवा सकते थे। आपके आने की कुछ तो उम्मीद मुझे दिखायी देती।” अचानक भाग की आवा़ज नरम पड़ने लगी थी।
और अगले ही दिन सुल्तान के आदमी भागमती और उसके पिता के लिए ढेर सारे उपहारों के साथ गांव आ गए। अचानक गांव के लोग लिंगय्या को चौधरी साहब कहकर पुकारने लगे थे। और फिर देखती ही देखते भागमती की शादी सुल्तान से हो गई। सुनहरी पालकी में उसकी डोली गांव से रूखसत हुई। किले में कई दिनों तक जश्न मनाया गया। गॉंव में भी बड़ी दावत का आयोजन किया गया। मन्दिर में देवी को ढेर सारे कीमती गहने चढ़ाये गए। गॉंव में हर किसी को सुल्तान की तरफ से तोहफ़े दिये गए।
महल में आकर भागमती की सुंदरता और निखरने लगी थी। सुल्तान अच्छा कवि था। और उसने भागमती की सुंदरता पर ढेर सारी कविताएँ भी लिख डालीं।
इस दौरान सुल्तान के हरम में औरतों का आना-जाना बराबर लगा रहा। कुछ औरतें चंद दिनों के लिए आतीं तो कुछ हफ्ते भर के लिए। कुछ का आना गाजे-बाजे के साथ होता, तो कुछ रात के अंधेरे में चुपचाप आतीं। लेकिन हफ़्ते से ज्यादा कोई नहीं टिकती। अन्त सबका एक-सा ही होता। जैसे ही उनके दिन खत्म होते, वह हरम में उस कोने में पहुंचा दी जातीं, जहॉं उनकी ा़र्ंिजंदगी में इंतजार के सिवा कुछ न रह जाता। उनका मन बहलाने के लिए वहां हर चीज मौजूद होती। उनको सुल्तान के तईं पतिव्रत रखने के लिए कड़ा पहरा भी रहता। उनके पास कुछ रह जाता था, तो वह थे सिर्फ सुनहरी यादों के वे पल, जो उन्होंने सुल्तान के साथ गुजारे थे। यही हरम की प्रथा थी – हमेशा और हर जगह!
सबको लगता था कि भागमती की किस्मत में भी यही लिखा है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। दिन, महीने, साल गुजरते गए, लेकिन सुल्तान उसका दिवाना ही रहा। और लोग तो यहॉं तक कहने लगे कि भागमती ने सुल्तान पर जादू कर रखा है।
भागमती साल में एक बार बतकम्मा त्यौहार के दिन अपने गांव जाती। उसके साथ सैनिकों का काफिला गांव के बाहर ही रुक जाता। वह सिर्फ तीन औैरतों के साथ ही गांव में पैर रखती। गांव भर में उसने कह रखा था कि जब तक वह गांव में है, उसे “भागो’ ही बुलाया जाए। बिना किसी रोक-टोक के वह पूरे जोश के साथ त्यौहार में हिस्सा लेती। इसी तरह जब वह वर्ष 1588 में गॉंव आई तो उसने गांव वालों को बताया कि जल्द ही उनका ये गांव एक बड़ा शहर बनने वाला है। ये सुनते ही गॉंव भर में खुशी की लहर दौड़ गई।
और जल्द ही गांव में हलचल भी शुरु हो गई। बड़े-बड़े अफ़सर अजीब-अजीब मशीनों के साथ गांव का दौरा करने लगे। गांव में कहीं खुदाई होने लगी तो कहीं मिट्टी के ढेर लग गए। कई अफ़सर तो गांव में रह कर ही काम कर रहे थे। हर तरफ एक अजीब-सा उत्साह था।
और फिर एक शुभ दिन सुल्तान ने आदेश जारी किया कि किले के बाहर एक नया शहर बसाया जाए जो धरती पर स्वर्ग की प्रतिकृति हो और सारे संसार में अपूर्व हो।
(शेष अगले रविवार)
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