काग़ज, कलम, दवात सब आउटडेटेड हैं यार!

नयी पीढ़ी टेक्नोसेवी जेनरेशन है। कंप्यूटर, इंटरनेट आदि गैजेट्स उसके लिए कोई स्टेटस सिंबल नहीं हैं, बल्कि लाइफस्टाइल का हिस्सा बन चुके हैं। इसीलिए इस जेनरेशन को पुरानी पीढ़ी के लोग साइबर जेनरेशन भी कहते हैं।

इस साइबर जेनरेशन को अब पुरानी पीढ़ी की तरह कागज, कलम या दवात का शायद ही कोई इल्म बचा हो। यह अब कागज में लिखना भूल रही है। हाथ से चिट्ठी तो शायद ही कोई युवा लिखता हो। ई-मेल, चैटिंग करना, ब्लॉग लिखना, सोशल नेटवर्किंग साइट पर खुद को रजिस्टर्ड करके फ्रैंड बनाना नयी पीढ़ी के लाइफस्टाइल का आम हिस्सा बन गया है। इसमें अब एक नयी गतिविधि जुड़ी है ई-बुक्स पढ़ना।

इसमें कोई दो राय नहीं कि ज्ञान की पढ़ाई-लिखाई के आज की तारीख में तमाम नये माध्यम विकसित हो चुके हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि पढ़ने का जितना व्यवस्थित तरीका किताबें हैं, उतना अभी तक कोई नया माध्यम नहीं बन पाया है। यही वजह है कि पिछले कई सालों से समाजशस्त्रियों, शिक्षाशास्त्रियों और अभिभावकों द्वारा यह चिंता जताई जा रही थी कि उनके बच्चों में रीडिंग हैबिट खत्म हो गई है या खत्म होती जा रही है। इससे समाज के सभी लोग चिंतित थे। लेकिन अब यह चिंता किसी हद तक दूर होती जा रही है, क्योंकि यह साइबर जेनरेशन ही पुरानी पीढ़ियों की तरह किताबें पढ़ने का उतना ही शौक रखती है जितना शौक पुरानी जेनरेशन को था। फर्क सिर्फ इतना है कि पुरानी पीढ़ी जहां कागज में छपी किताबों के पन्ने पल्टा करती थी, वहीं यह साइबर जेनरेशन ऑनलाइन किताबें पढ़ने की शौकीन है।

इंटरनेट ने न सिर्फ ढेरों सुविधाएं पैदा कर दी हैं, बल्कि एक दृष्टि से जीवन को काफी सस्ता भी बना दिया है। आज जहां कागज में छपी किताबें कई-कई सौ रुपये कीमत वाली हैं, वहीं ऑनलाइन किताबें बिल्कुल मुफ्त में उपलब्ध हैं। ऐसे में भला ऑनलाइन किताबों के पढ़ने का ोज क्यों न तेजी से पनपे? एक और बात ध्यान देने योग्य है, ऑनलाइन किताबों में सिर्फ साइंस फिक्शन ही उपलब्ध नहीं है, बल्कि किसी पारंपरिक किताबों की दुकान की तरह ही यहां पर भी नोबेल, स्टोरी बुक्स, कविताएं, नॉनफिक्शन और राजनीतिक किताबें व जीवनियां भी बड़े पैमाने पर उपलब्ध हैं। यही वजह है कि युवाओं में तेजी से ई-बुक्स का कॉंसेप्ट लोकप्रिय होता जा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक हर दिन कोई 40 लाख से ज्यादा लोग ऑनलाइन किताबें पढ़ते हैं। इसमें बड़ी तादाद युवाओं की होती है।

युवाओं के लिए इंटरनेट एक बेहद फ्रैंडली मीडियम है। हर तरह से इंटरनेट उनकी लाइफस्टाइल के लिए फिट बैठता है। हर रोज न तो लाइब्रेरी जाया जा सकता है और न ही इस महंगाई के दौर में एक बड़ी रकम किताबों पर खर्च करना संभव है। एक मीडिया हाउस में उप संपादक रतना शुक्ला कहती हैं, “”ऐसे में इंटरनेट हम जैसे किताब प्रेमियों के लिए वरदान बनकर आया है। मैं इंटरनेट के जरिए तमाम अपनी मनपसंद किताबें बिल्कुल मुफ्त में पढ़ लेती हूं। ….और हां, यदि मन चाहा तो मैं किसी पुस्तक को डाउनलोड करके अपने पास भी रख लेती हूं, वह भी बिल्कुल मुफ्त। ऐसे में हम जैसे लोगों के लिए तो ई-बुक्स ही किताबों के पढ़ने का अच्छा माध्यम है।”

रतना शुक्ला की ही तरह राजू बनर्जी, जो दिल्ली विश्र्वविद्यालय में कैमिस्टी ऑनर्स के छात्र हैं, कहते हैं, “”अकादमिक किताबें दिन पर दिन महंगी होती जा रही हैं और लाइब्रेरीज में नयी किताबें खोज पाना बरसात की रातों में आसमान पर पुच्छल तारे को खोजने जैसा है। ऐसे में इंटरनेट ही वह माध्यम है, जो बिना पैसे सामयिक और दुनियाभर की अच्छी किताबों का एकमात्र सोर्स है, वह भी बिल्कुल मुफ्त में। ये तमाम किताबें या नोट्स उपलब्ध कराता है तो भला ऐसा कौन छात्र होगा, जो इस मुफ्त की मेहरबानी को हासिल नहीं करना चाहेगा। छात्रों के पास वैसे भी पैसे की तंगी रहती है। उन्हें मां-बाप द्वारा पॉकेट मनी या पढ़ाई के लिए दिये गये पैसों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।”

इन स्वीकारोक्तियों से स्पष्ट होता है कि ऑनलाइन किताबें पढ़ना न सिर्फ नयी पीढ़ी में बतौर शौक बढ़ रहा है, बल्कि यह एक बिना पैसे के जरूरी किताबें हासिल करने का माध्यम बनता जा रहा है। एक बात और जान लें, इंटरनेट में सिर्फ अकादमिक किताबें, साइंस या ज्ञान आधारित किताबें ही उपलब्ध नहीं हैं अपितु यहां कई तरह के दूसरे विषयों की भी किताबें उपलब्ध हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऑनलाइन उपलब्ध इन किताबों को लैपटॉप या आईपॉड पर डाउनलोड भी किया जा सकता है। जहां तक इंटरनेट माध्यम से उपलब्ध किताबों में वैरायटी का सवाल है तो रोशनी रस्किन्हा से मिलिए। रोशनी भी बाहर से आये तमाम दूसरे छात्रों की तरह दिल्ली विश्र्वविद्यालय की पढ़ाकू छात्रा है। रोशनी के शौक बहुआयामी हैं। वह जहां फुटबॉल देखने का शौक रखती है, वहीं शेक्सपियर की कविताएं, सिडनी शेल्डोन और ऑर्थर कॉनन डायल के जासूसी फिक्शन और एच.जी. बेल्स की विज्ञान गल्प कथाओं का भी उन्हें जबरदस्त शौक है। रोशनी के मुताबिक उन्होंने अब तक पढ़ी अपनी 70 फीसदी से ज्यादा किताबों को ऑनलाइन पढ़ा है।

रोशनी के मुताबिक उसने सबसे पहले “हैरी पॉर्टर एंड द चैंबर ऑफ सीोट्स’ ऑनलाइन पढ़ी थी। इसके बाद तो उन्हें याद ही नहीं है कि उन्होंने कितने फिक्शन, कितने नोवेल और कितनी कहानियां ऑनलाइन पढ़ी होंगी। माध्यम में यूं तो साइंस फिक्शन ही सबसे ज्यादा पढ़े और पसंद किए जाते हैं, लेकिन साइंस फिक्शन के अलावा जिन कुछ साहित्यिक और गैर-साहित्यिक किताबों ने यहां अपनी जगह बनाई है, उनमें जे.के. रौलिंग की हैरी पॉर्टर सीरीज की किताबें, एरिका सीगल की “लव स्टोरी’, सिडनी शेल्डोन और रॉबिन के हल्के-फुल्के जासूसी उपन्यास, चेतन भगत का लाइफस्टाइल आधारित उपन्यास “वन नाइट एट द कॉल सेंटर’ और जैफ्री आर्चर के उपन्यास भी काफी लोकप्रिय हुए हैं।

ऑनलाइन माध्यम से किताबें पढ़ने का यह फायदा तो है ही कि वे मुफ्त में मिल जाती हैं, एक फायदा यही भी है कि उन्हें अपने मनमुताबिक फोन्ट साइज में भी पढ़ सकते हैं। जिस कारण पढ़ने में आसानी रहती है। तेजी से बढ़ रही ऑनलाइन रीडिंग हैबिट ने उन तमाम आशंकाओं को दूर कर दिया है, जो रीडिंग हैबिट पर खतरे के बादल की तरह मंडरा रही थीं। ऑनलाइन माध्यम ने न सिर्फ नयी पीढ़ी में रीडिंग हैबिट का विकसित किया है, बल्कि उन्हें अपनी नयी तरह की साज-सज्जा और खत्म हो रहे बुक कंसेप्ट की तरफ भी आकर्षित किया है। इसलिए उनमें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि कागज, कलम, दवात को वह इनडेटेड मानते हैं या आउटडेटेड।

-शैलेंद्र सिंह

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