जिस प्रॉपर्टी को किराये पर दिया गया है, उसकी देखभाल व टूट-फूट की मरम्मत कराने की जिम्मेदारी किसकी है? मालिक और किरायेदार के बीच विवाद का मुख्य-बिंदु यही रहता है कि किराये वाली जगह की मेंटेनेंस का जिम्मा किसका है? आमतौर से, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर होता है कि पार्टियों के बीच आपसी समझौता किन नियमों व शर्तों पर हुआ है और ली़ज एग्रीमेंट में क्या दर्ज किया गया है।
राज्यों के किराया नियंत्रण कानूनों में इस संदर्भ में कुछ दिशा-निर्देश दिये गये होते हैं। इन कानूनों के तहत यह मालिक की जिम्मेदारी है कि वह प्रेमेसिस को अच्छी स्थिति में रखे। अगर लिखित नोटिस के बाद उचित समयावधि के दौरान मालिक वह मरम्मत नहीं कराता है, जो उसे करानी चाहिए, तो किरायेदार वह मरम्मत स्वयं करा सकता है और मरम्मत के खर्च को किराये में काट सकता है या मालिक से ले सकता है। लेकिन इसमें एक शर्त है-किसी भी वर्ष में इस तरह जो खर्चा काटा जायेगा, वह उस वर्ष दिये जाने वाले कुल किराये के बारहवें हिस्से से अधिक नहीं होना चाहिए। दूसरे शब्दों में एक साल में एक माह के किराये से अधिक की मरम्मत का खर्च मालिक से नहीं लिया जा सकता।
यह मालिक की जिम्मेदारी है कि किराये पर दिया गया स्थान रहने लायक और सुरक्षित हो। अगर जरूरत पड़े तो उसे यह सुनिश्र्चित करना चाहिए कि उचित मरम्मत कराकर स्थान को रहने लायक व सुरक्षित बनाया जाए। मगर मालिक ऐसा करने में सक्षम नहीं है या ऐसा करने का इच्छुक नहीं है तो किरायेदार घर की मरम्मत करा सकता है। इस सिलसिले में उसे मालिक को उचित नोटिस देना होगा, जिसमें स्पष्ट रूप से समस्याओं को बताना होगा, जो परेशानी हो रही है, वह भी बतानी होगी। सुरक्षा की समस्याओं से भी अवगत कराना होगा और समस्या के समाधान के लिए जो भी आवश्यक कदम उठाये जाने हैं, उन्हें भी बताना होगा।
नोटिस में किरायेदार को अपनी बात इस तरह से कहनी चाहिए कि अगर मालिक निश्र्चित समय में मरम्मत नहीं कराता है तो वह स्वयं इस कार्य को पूरा करायेगा और मरम्मत में जो खर्च आयेगा, उसे मालिक से वापस लेने के लिए हकदार होगा।
बहरहाल, यह ध्यान रखना चाहिए कि इसके तहत वही मरम्मतें होंगी, जो आवश्यक और अर्जेंट आवश्यकता वाली हैं। इनमें वह स्थितियां नहीं आयेंगी, जो किरायेदार अपने आराम के लिए कुछ बदलाव या जोड़ चाहता है। आवश्यक व अर्जेंट का अर्थ है- वह जरूरतें जिनसे स्थान को सुरक्षित, रहने लायक और इस्तेमाल करने योग्य बनाया जाता है।
जिन मामलों में वह मरम्मत की जानी हैं, जिनके तहत स्थान रहने योग्य या इस्तेमाल करने योग्य नहीं है सिवाय बहुत परेशानी के और लिखित नोटिस के बाद भी मरम्मत कराने की बात को मालिक नजरअंदाज करता है या असमर्थ है, तो किरायेदार किराया कानून के तहत कंटोलर से अनुमति मांगने के लिए अर्जी दे सकता है ताकि स्वयं मरम्मत करा सके। ऐसे में उसे कंटोलर को मरम्मत की अनुमानित लागत भी प्रेषित करना होता है।
कंटोलर मालिक को अपना पक्ष रखने की अनुमति प्रदान कर सकता है। अनुमानित लागत की समीक्षा और आवश्यक जांच-पड़ताल करने के बाद ही कंटोलर आदेश के जरिए किरायेदार को मरम्मत कराने की अनुमति दे सकता है, उस खर्च पर जो कि ऑर्डर में दर्ज हो। इसके बाद किरायेदार को यह कनूनी हक होगा कि वह स्वयं मरम्मत कराये और खर्च को किराये में से काट ले। मालिक से जो खर्चा लिया जा रहा है, वह उस राशि से अधिक नहीं हो सकता, जो कंटोलर ने अपने ऑर्डर में निर्धारित किया है। साथ ही राशि सालभर के किराये की आधी से अधिक नहीं हो सकती। अगर कोई मरम्मत ऐसी है, जो उस राशि से बाहर है और कंटोलर की राय में आवश्यक है और अतिरिक्त खर्च किरायेदार खुद उठाने को तैयार है तो कंटोलर किरायेदार को ऐसी मरम्मत करने की अनुमति भी प्रदान कर सकता है।
आखिरकार यह मालिक के फायदे की ही बात है कि प्रॉपर्टी फिट और सही रहे ताकि वह उसे किराये पर देने की बजाए स्वयं इस्तेमाल करे। इसमें किरायेदार का हित कम ही होता है।
– प्रवेश कुमार सिंह
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