कॉन्टैक्ट

कलाकार – अध्विक, प्रसाद पुरंदरे, साक्षी गुलाटी, विनीत शर्मा, सादिया सिद्दी़की, सौरभ महाजन, जाकिर हुसैन

संगीत – अनिल मोहिले

निर्देशक – राम गोपाल वर्मा

निर्देशक राम गोपाल वर्मा ने फिर एक बार अंडरवर्ल्ड को अपनी फिल्म का विषय बनाया है। पता नहीं, ऐसा उन्होंने क्यों किया है? क्योंकि इस फिल्म में उनके पास कहने के लिए न कोई नयी बात है और न ही कोई नया तरीका।

फिल्म के शीर्षक के अनुसार कॉन्टैक्ट होता है, नूतन नायक अध्विक एवं पुलिस अफसर प्रसाद पुरंदरे के बीच। अंडरवर्ल्ड के हाथों अध्विक की पत्नी तथा बेटी की मौत हो जाती है। इस पर आध्वक निश्र्चय करता है कि उस गिरोह के मुखिया से वह बदला लेकर रहेगा। मुखिया सुल्तान (जाकिर) तक पहुँचने के लिये पहले वह आर.डी. (सुमित निझावन) के गिरोह में पुलिस अफसर पुरंदरे की मदद से शामिल होता है। कॉन्टैक्ट के तहत उसे पुलिस का खबरिया बनना होता है। सुल्तान के लिए काम करने वाले आर.डी. का एक दुश्मन है, गूंगा (उपेन्द्र लिमये)। अध्विक किस प्रकार अंडरवर्ल्ड के आर.डी. के गिरोह में प्रवेश पाकर उसका विश्र्वास प्राप्त करता है, यह राम गोपाल वर्मा अपनी फिल्म में उजागर करते हैं। इसके साथ ही गूंगा से होने वाली बार-बार की मुठभेड़ और पुलिस तक खबरें पहुँचाने के प्रयास भी बतलाये गये हैं। सुल्तान से बदला लेना ही फिल्म का चरम है।

राम गोपाल वर्मा ने हत्याओं पर अपना कैमरा ज्यादा केन्द्रित किया है। कभी “सरकार राज’ की भांति अति क्लोजअप्स दिखला कर, तो कभी धीमी गति से हत्या का चित्रण करते हुए। कई आपत्तिजनक दृश्य हैं, जो निर्देशक की मानसिकता की ओर भी शायद संकेत करते हैं, जैसे अध्विक अपने गैंग के एक सदस्य को इस बात के लिए अपनी पत्नी की पिटाई करते हुए देखता है कि उसने कॉफी लाने में कुछ देर कर दी। और, एक छोटी लड़की “टिं्वकल टिं्वकल’ कविता गाती है, किन्तु उसकी पंक्तियों में “बम’ की आवाज आती है। सुल्तान का स्कूल में बम रखना भी आपत्तिजनक लगता है।

वैसे तो इस फिल्म के सभी पात्र एवं उनकी जिंदगी अपराध में रंगी हुई है। ऐसी फिल्मों में दर्शकों को कुछ मिल सकता है तो केवल मनोरंजन। लेकिन इस फिल्म में वह भी उन्हें प्राप्त नहीं हो सकता। पात्रों के किरदार अच्छे होने के बावजूद गीतों में “मौला खैर करे’ दिलचस्प है तो फिल्म का पार्श्र्व संगीत शोर भरा-सा है। अंत में कई प्रश्नों को अनुत्तरित रखा गया है, जो अखरता है। साक्षी अपनी छोटी भूमिका में ठीक लगती है।

 

“बैटमैन2 – द डार्क नाईट’

कलाकार – िास्टिअन बाले, हीथ लेजर, एरोन एरवार्ट, मायकल केन, मैमी गिलेनहाल

निर्देशक – िास्टोफर नोलन

बच्चों की कॉमिक-बुक के पात्र को लेकर अंग्रेजी में बैटमैन की चार फिल्में बनी हैं, जिनमें से दो का हिन्दी में रूपान्तरण किया गया है। हिन्दी में बनी फिल्म को “बैटमैन2 – द डार्क नाईट’ शीर्षक से हाल ही में पेश किया गया है। इस फिल्म के बैटमैन की पोशाक कुछ नये डिजाइन की है और उसका सिर का पहनावा हेलमेट की तरह बनाया गया है।

“द डार्क नाईट’ का बैटमैन अब कुछ ठंडा पड़ गया है, लगभग दस वर्ष से वह शांति और सुकून की जिंदगी जीने की कोशिश कर रहा है। लेकिन दुनिया ाूर, कठोर और बेरहम बनती जा रही है। विशेषतः गोथम शहर, जहॉं बैटमैन न्याय-अन्याय की सोच में दिन बिता रहा है। बैटमैन ब्रूसवेन (िास्टिअन बाले) कब तक हाथ बांधकर बैठेगा? खास तौर से जब दुष्ट जोकर (हीथ लेजर) लोगों के प्रति जबरन ऐसे निर्णय लेने लगता है, जिनकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। मानसिक तौर पर विक्षिप्त जोकर लोगों को एक-दूसरे के विरोध में खड़ा करता है और उनकी अलग-अलग स्तरों की अमानुषिक, ाूर भिड़ंत देखकर मजा उठाता है। इस के साथ है आतंकवाद का बढ़ता हुआ प्रभाव।

शांति-सुकून से जीवन गुजारने वाले ब्रूसवेन को मजबूर होकर बैटमैन बनना पड़ता है। बैटमैन का काला सूट और सिर पर हेलमेट जैसा पहनावा पहन कर वह रात के अंधेरे में ऊँचाई से छलांग लगाता है, यह खूबसूरत दृश्य याद रह जाता है। दर्शकों को याद होगा कि पहले बैटमैन की पोशाक लाल-काली हुआ करती थी, जो अब बदल गई है। बैटमैन और खलनायक जोकर के बीच होने वाले मुकाबले के कारण फिल्म में अनेक एक्शन दृश्य उभरते हैं। हिंसा वीभत्सता की हद तक पहुँच जाती है। बैंक लूटने का दृश्य, टक के उलटने का हादसा दर्शकों को बांधे रखते हैं।

परंतु इन एक्शन दृश्यों से उभर कर प्रभावित करता है, हीथ लेजर का जोकर वाला किरदार। दर्शक इस बात पर भी गौर करें कि इस फिल्म में यह बताने का दिलचस्प रूप से प्रयत्न किया गया है कि अच्छे- भले इन्सान भी कभी-कभार बुराई की सरहद पर आ पहुँचते हैं। फिल्म का स्तरीय तकनीक, जीवंत छायाकारी एवं िास्टोफर नोलान का निर्देशन इस फिल्म को और ऊँचा उठाते हैं। दर्शकों को संतुष्ट करते हैं।

 

“किस्मत कनेक्शन’

कलाकार – शाहिद कपूर, विद्या बालन, जूही चावला, ओमपुरी, बोमन ईरानी, कर्णवीर बोहरा

संगीत – प्रीतम

निर्देशक – अजीज मिर्जा

निर्देशक अजीज मिर्जा की फिल्मों में कहानी सीधे-सादे ढंग से कही जाती है। “किस्मत कनेक्शन’ में भी उन्होंने अपनी इसी शैली को अपनाया है। लेकिन इस बार पता नहीं क्यों, उन्होंने अपनी कहानी को भारत में नहीं बल्कि टोरेन्टो में घटित होते हुए दिखलाया है।

युवा आर्किटेक्ट शाहिद कपूर टोरेन्टो में अपना हुनर प्रगट करना चाहता है, कोई बहुत ही खास इमारत बनाकर। कई बार प्रयत्न करने के बाद भी उसे प्रसिद्घि नहीं मिलती है तो हार कर वह ज्योतिष विशेषज्ञ जूही चावला से सलाह लेता है। जूही चावला उसे बताती है कि उसका भाग्य बनाने वाली कोई चीज उसके हाथ लगेगी, जिसे उसे थाम कर रखना होगा। क्या होगी यह भाग्य बनाने वाली चीज?

कहीं समाज-कार्य करने वाली विद्या बालन तो नहीं?

हर मुलाकात में शाहिद और विद्या की नोंक-झोंक ही होती है। शाहिद को इस बात का पता भी नहीं चलता कि हमेशा विद्या के कारण उसका अच्छा होता है। मुलाकात दर मुलाकात के चलते शाहिद और विद्या प्रेमी बन जाते हैं। शाहिद को एक बड़े मॉल का डिजाइन बनाने का काम मिलता है। विद्या बालन इस मॉल के निर्माण के विरोध में खड़ी होती है, क्योंकि इस मॉल के बनने से आम-आदमियों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। क्या शाहिद मॉल बनवा कर गरीबों को रास्ते पर ला पटकेगा? प्रेमिका विद्या के विरोध में वह कुछ कर सकेगा? क्या होगा उसका?

इन पहलुओं को अजीज मिर्जा ने बहुत ही खूबसूरती से ढाला है, जिससे फिल्म में वजन- उत्पन्न हुआ है। शाहिद का अभिनय सहज है, पर पूरी तरह से नहीं। विद्या बालन ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभायी है। प्रीतम के गीतों में “ऐ पापी’ तथा “बखुदा तुम्हीं हो’ पसंद आ जाते हैं। विनोद प्रधान के कैमरे ने टोरोन्टो शहर को अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है। अपराध एवं हिंसा से मुक्त यह फिल्म परिवार के साथ देखी जा सकती है।

 

– अनिल एकबोटे

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