क्या कहने पंगारा के

सुगंध बिखेरती, मन लुभावनी शाम को उद्यान के आसपास या गॉंव की गलियों में जब आप चहल-कदमी करने निकलें, तो पंगारा के लाल रंग के फूलों की जीवंत आभा आपको मंत्रमुग्ध कर लेगी। पंगारा में जब फूल खिलते हैं, तब एक आकर्षक दृश्य निर्मित हो जाता है। गुच्छों में लगे गहरे लाल रंग के फूलों के कारण ही इसका नाम पंगारा पड़ा है।

पंगारा को वनस्पति शास्त्र में एरिथरिना बैअरिगेट या इंडिका कहा जाता है, जो एक ग्रीक शब्द इरूथ्रोस से आया है। जिसका अर्थ लाल होता है और फूलों के लाल रंग की ओर संकेत करता है। वास्तव में पंगारा भारतीय वृक्ष है, जो भारत के तटीय और भीतरी पतझड़ी जंगलों में अंडमान-निकोबार से लेकर म्यांमार और जावा तक में पाया जाता है।

पंगारा की छाल चिकनी और भूरी होती है। इसमें जगह-जगह धब्बे पाये जाते हैं। तने और शाखाओं पर तीखे, पैने कांटे होते हैं, जो पेड़ की आयु जैसे-जैसे बढ़ती है, वैसे-वैसे समाप्त होते जाते हैं। इन कांटों से छोटे पंगारा का, पक्षी और अन्य कीटों से बचाव होता है। इसकी जड़ें उथली होती हैं। लकड़ी नरम और भुरभुरी व ना़जुक होती है। पत्तियां बड़ा तिकोन लिए होती हैं, जो सामान्यतः 4-6 इंच चौड़ी होती हैं और मध्य का भाग बड़ा होता है। पत्तियॉं चमकीले हरे रंग की होती हैं और ठण्ड के मौसम में गिर जाती हैं। मार्च-अप्रैल तक वृक्ष पत्तों के बगैर रहता है। कम आयु वाले पंगारा में पत्तियॉं वर्षभर रहती हैं। चमकीले लाल रंग के फूल जनवरी की शुरूआत में आना शुरू हो जाते हैं और यह ाम मार्च-अप्रैल तक जारी रहता है। फूल छोटी-छोटी बालियों में लगते हैं, जो एकल होते हैं या छोटी-छोटी शाखाओं के अंतिम हिस्सों पर अन्यों के साथ संलग्न होते हैं। फूल 2 से 2.5 इंच लंबी फलियों के आकार वाले बड़े, सघन गुच्छों में लगे होते हैं। ये गुच्छे 4 से 12 इंच लंबे और 5 इंच के घेरे में फैले होते हैं। जिन शाखाओं में फूल लगे होते हैं, उनका अंतिम हिस्सा टार्च या धधकती मशाल-सा प्रतीत होता है।

फूलों में पॉंच पंखुड़ियॉं होती हैं। इनमें से एक पंखुड़ी अन्य पंखुड़ियों से बड़ी होती है। यह सीधी, लंबी और नुकीली होती है और आधार पर संकरी होती है। दो पंखुड़ियॉं छोटे पंखों के समान होती हैं, जबकि शेष समान आकार की होती हैं। इनका रंग किरमिजी लाल होता है। ये चार पंखुड़ियां मुख्य पंखुड़ी की आधार परतों के साथ जुड़ी होती हैं। फूलों में सुगंध नहीं होती है, किन्तु पक्षियों के लिए ये आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं। वास्तव में तथ्य तो यह है कि पंगारा जब पूर्ण रूप से खिला होता है, तो वहॉं तरह-तरह के पक्षियों का मेला-सा लग लग जाता है, कौए, मैना, सात भाई, तोते, रोजी पैस्टर, इसी तरह असंख्य मधुमक्खियॉं और ततैया को इसका परागण बहुत पसंद होने के कारण इसके फूल उत्पादक बन जाते हैं।

फूलों के आने के बाद जल्दी ही बीज के लिए फलियॉं आना शुरू हो जाती हैं। पहले ये फलियॉं हरी होती हैं और बाद में काली हो जाती हैं। इनकी लंबाई 15 से 30 सेन्टीमीटर तक होती है, जिसमें एक दर्जन के करीब भूरे-लाल या किरमिजी रंग के अंडाकार चिकने बीज पाए जाते हैं। ये मई और जून में पक जाते हैं।

जंगलों में रहने वाले लोगों ने इसे अपने लाभ के लिए उपयोग में लाना शुरू कर दिया है। पशुओं और अन्य प्राणियों से फसल की रक्षा के लिए बाड़ के रूप में खेत के चारों ओर इसे रोप दिया जाता है। पंगारा का इसके अलावा और भी कई तरह से उपयोग किया जाता है। इसे तटीय नगरों में सड़क के किनारे और बगीचे के चारों और बाड़ तैयार करने के लिए लगाया जाता है। यह काली मिर्च और अंगूर की लताओं के लिए सहारे का भी काम करता है। इस कार्य में इसकी योग्यता का मुख्य कारण यह है कि यह बहुत तेज गति से बढ़ता है और इसकी छाल भी उपयुक्त होती है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि गर्मी के महीनों में इसकी सघन पत्तियां, लताओं को सघन छाया प्रदान करती हैं और उनके लिए आवश्यक नमी बनाए रखती हैं। जैसे-जैसे दिन ठण्डे होने लगते हैं, वैसे-वैसे इसकी पत्तियां झड़ने लगती हैं और लता को आवश्यकतानुसार सूर्य-प्रकाश मिलने लगता है। पंगारा के बीज जहरीले होते हैं, किन्तु छाल, पत्तियां और उनका अर्क औषधीय गुणवत्ता लिए होता है। इसके गहरे लाल रंग के फूल हवाना के लोगों में फैशन के लिए बहुत अधिक प्रसिद्घ हैं।

– शोभा प्रधान

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