संसार में मनुष्य के लिए सब से कीमती क्या है? निश्चित ही वह दृष्टि है, जो उसे संसार को देखने के लिए दी गयी है। इसी से वह सौंदर्य को देख और परख सकता है। इसी दृष्टि से पूर्वी गोदावरी के एक छोटे-से गॉंव से संबंध रखने वाला चित्रकार क्या देखता है?
कोंडा श्रीनिवास राव के कुछ दिलचस्प चित्र नागार्जुना हिल्स स्थित कलाहिता आट्र्स गैलरी में प्रदर्शित हैं। यह एक छोटा-सा कला संसार है, जिसमें प्रकृति और प्रकृति के साथ मानव-निर्मित विकारों को रंगों के हवाले करने का प्रयास किया गया है, जिसमें युवा चित्रकार ने बड़ी हद तक सफलता भी पायी है। हरियाली से आच्छादित चोटियों के बीच से बहती नदी की धारा के दूर और नज़दीक के दृश्य, धुआँधार वर्षा के बाद जहॉं से जगह मिले वहॉं छा जाने को बेचैन बरसाती जल। जल- जो कहीं टपकता और कहीं बहता है, नाले और नदी की शक्ल में भी और बाढ़ की शक्ल में भी, समतल भूमि से भी और ऊँचाई से भी। इन सभी दृश्यों को कोंडा श्रीनिवास की दृष्टि से देखने में कला-प्रेमी निश्चित ही आनंद महसूस करते हैं और कुछ देर के लिए अपने आपको उस दुनिया में महसूस करते हैं जहॉं की कलाकार ने कल्पना की है। मुहावरा मशहूर है कि वह जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। ऊपर वाले के उन देने वाले हाथों से छप्पर कैसे फटती है, यह तो शायद ही किसी ने देखा होगा, लेकिन बारिश या तूफान का पानी किस तरह ग़रीब की छप्पर फाड़कर बहता है- यह दृश्य श्रीनिवास के चित्रों में ज़रूर देखा जा सकता है।
यही कलाकार जब हरियाली, नदियों, पहाड़ों की दुनिया छोड़ कर भीड़-भाड़ भरे शहरों में आता है, तो यहॉं वह गॉंव से बिल्कुल अलग ज़िन्दगी देखता है। वह क्या है जो गॉंव और शहर में सामान्य और एक जैसा है? श्रीनिवास के चित्र इसका जवाब बड़े दिलचस्प अंदाज़ से देते हैं। ऊँची-ऊँची इमारतें हों या फिर झुग्गी बस्तियॉं, सामान्य नदियों-नालों से भरे खेत हों या गॉंव की झोंपडियॉं, इन सभी स्थलों पर एक वस्तु कॉमन है और वह है- बिजली के तार। ये वही बिजली के तार हैं, जो किसी सामान्य व्यक्ति के लिए तो बस एल्यूमिनियम की वस्तु से अधिक महत्व नहीं रखते, लेकिन देखने वाली दृष्टि देखती है कि उसमें से आग गुज़र रही है। यह वही आग है, जो बल्बों से गुज़रती है तो रोशनी देती है और कोई उसके संपर्क में आता है तो उसे मौत के हवाले कर देती है।
चित्रकार ने इसी आग को खंभों से गुज़रते तारों पर देखा है। लगभग सभी चित्रों में तारों का वजूद सफेद चमकीली रेखाओं के रूप में है। शहर की बस्तियों की छोटी-बड़ी इमारतों और वाहनों की भीड़ से भरी सड़कों के ऊपर से गुज़रते बिजली के तारों के जाल को श्रीनिवास की दृष्टि ने उसके वास्तविक रूप में देखने का प्रयास किया है।
पूर्वी गोदावरी ज़िले के कृष्णा रायुड़ू पेद्दापल्ली में 1979 में जन्मे श्रीनिवास राव ने आसपास की वस्तुओं को सामान्य दृष्टि से हट कर देखने का प्रयास किया है। चाहे वह टूटी-फूटी झोंपड़ियॉं हों या फिर निर्माणाधीन फ्लाइओवर, बेकार पड़े ऑटो रिक्शा को भी उन्होंेने एक नये ढंग से अपनी कला का हिस्सा बनाया है। कुछ चित्रों में संतुलन बनाए रखने के लिए चित्रकार ने गहरे लाल रंग का प्रयोग किया है। इस संबंध में पूछे जाने पर श्रीनिवास बताते हैं कि यह उनकी अपने खालीपन को भरने का प्रयास और चित्र में दृश्य के साथ दृष्टि की मौजूदगी का एहसास है।
श्रीनिवास बताते हैं कि गॉंव और शहर के मिज़ाज़ में काफी अंतर पाया जाता है। जहॉं ग्रामीण आदमी का रिश्ता सारे गॉंव के साथ होता है और वह गॉंव के लगभग हर आदमी के बारे में कुछ न कुछ जानता है, लेकिन शहर का आदमी अपना रिश्ता उन्हीं लोगों के साथ रखता है जिनसे उसके हित और अहित जु़डे हुए हैं। गॉंव और शहर का यह अंतर वे अपने चित्रों में अभिव्यक्त करने की कोशिश करते हैं।
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