खबर है कि बांग्लादेश ग्रामीण उन्नयन केंद्र (बी.आर.ए.सी.) द्वारा बांग्लादेश में चलाये जा रहे ग्रामीण विकास के मॉडल को समझने के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गॉंधी बांग्लादेश जायेंगे। बी.आर.ए.सी. की परियोजनाओं का जायजा लेने इससे पूर्व अमेरिका के पूर्व राष्टपति बिल क्ंिलटन, ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर तथा माइाोसॉफ्ट के अध्यक्ष बिल गेट्स भी बांग्लादेश की यात्रा कर चुके हैं। इन सभी ने ग्रामीण विकास के लिए कार्य कर रहे इस संगठन की कार्य प्रणाली की काफी सराहना की है। उल्लेखनीय है कि फजल हसन आबिद द्वारा स्थापित यह संगठन विश्र्व के निर्धनतम देशों में शामिल बांग्लादेश के ग्रामीण इलाकों में माइाोफाइनेंस, महिला सशक्तिकरण, सामुदायिक स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी और मानवाधिकार संरक्षण जैसे ग्रामीण विकास के मूलभूत कार्यामों को सफलतापूर्वक चला रहा है तथा इसके आशाजनक परिणाम बांग्लादेश के ग्रामीण विकास के क्षेत्र में महसूस किए जा रहे हैं। जहॉं तक बांग्लादेश की बात है तो इसके निर्माण अर्थात् सन् 1971 से ही यह देश गरीबी, अशिक्षा और जनसंख्या अतिरेक के दलदल में फंसा हुआ है तथा वैश्र्विक संस्थाओं द्वारा निर्धारित मानव-विकास संबंधी सूचकांकों में भी इसका प्रदर्शन फिसड्डी रहा है। रोजगार की तलाश में यहॉं के जन-समुदाय का हमारे देश में पलायन लगातार जारी है। ऐसे में इस देश की किसी संस्था द्वारा किए जा रहे गरीबी उन्मूलन और जनहित के कार्यों के जरिए विश्र्व समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचना वास्तव में आश्र्चर्यजनक है, एवं इस संस्था के कार्यों को विश्र्व समुदाय द्वारा लगातार सराहा भी जा रहा है। जहॉं तक गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी की बात है, तो हमारा देश भी इन बातों में बांग्लादेश से कुछ ज्यादा अच्छी स्थिति में नहीं है। मानव विकास के वैश्र्विक मापदंडों में हम बांग्लादेश से कुछ अंकों से ही आगे रहते हैं। हालांकि आजादी के बाद से ही हमारे नीति निर्माताओं का ध्यान ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन की ओर रहा है। गांधी से लेकर अन्ना हजारे के समय तक ग्रामीण विकास के मॉडल विभिन्न स्तरों पर अपनाए जाते रहे हैं, सरकारी स्तर पर भी देश में ग्रामीण विकास को केंद्र में रखते हुए लगातार योजनाओं पर योजनायें बनाई गई हैं। बड़े-बड़े दफ्तर खड़े किए गए हैं। उनमें अधिकारियों की फौज है, ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन की योजनाओं पर लगातार पानी की तरह पैसा बहाया गया है। परंतु गरीब और गांव लगभग जहॉं के तहॉं हैं। आज आजादी के छः दशक बाद भी देश के 35 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहे है। करोड़ों बेरोजगार हैं, गांवों की हालत लगातार बिगड़ी है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, पानी और बिजली जैसे मूलभूत सुविधाओं से गांव आज भी दूर हैं।
देश में चिकित्सा, शिक्षा और बैंकों का काफी उन्नयन हुआ है परंतु यह सभी शहरों तक ही सीमित हो गया है। देश के अधिकांश ग्रामीण हिस्से की चिकित्सा व्यवस्था नीम-हकीमों के हाथों में है। बैंकिंग प्रणाली की बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी साहूकारों का दबदबा है। वर्ष 2004 में विश्र्व बैंक द्वारा कराये गए एक अध्ययन के अनुसार भारत के 60 प्रतिशत ग्रामीण गरीबों का बैंक खाता नहीं है और 87 प्रतिशत ऋण के लिए किसी औपचारिक स्रोत तक कोई पहुँच नहीं रखते हैं। भारतीय राज्यों उड़ीसा और बिहार के ग्रामीण इलाकों में गरीबी की दर आीकी देश मालावी से भी ज्यादा खराब है। ऐसी स्थिति में समग्र ग्रामीण विकास के लिए हमें नए मॉडल पर चिंतन करना होगा। वास्तव में वित्त, विकास की पहली ़जरूरत होती है क्योंकि निवेश नए आर्थिक संसाधन विकसित करता है जिससे आय के नए मार्ग खुलते है, अतः नए मॉडल में हमें ग्रामीण ़जरूरतों के मुताबिक वित्त की व्यवस्था करनी होगी। मसलन, साइकिल के पंचर बनाने वाले की वित्तीय आवश्यकतायें बहुत छोटी होती हैं पर इसके सहारे वह अपने परिवार का भरण-पोषण कर लेता है। बिल्कुल ऐसी ही स्थिति सब्जी का ठेला लगाने वाले की या फिर मिट्टी की गुड़िया बनाने वाले कारीगर की भी है और छोटे किसान की भी, परंतु ये वित्त के लिए मोहताज हैं। इनकी छोटी-छोटी आवश्यकताओं को पूर्ण करने बड़े-बड़े बैंक राजी नहीं हैं, ऐसे में इन्हें साहूकारों की शरण में जाना ही पड़ता है जो मूलतः विकास विरोधी होते हैं। इन जरूरतमंदों की संख्या कुछ लाखों में नहीं वरन् करोड़ों में है और इन्हें वित्तीय सुविधा उपलब्ध कराने से इनकी गरीबी आसानी से दूर की जा सकती है। जहॉं तक हमारे देश के व्यावसायिक बैंकों की बात है तो ये बैंक पहले उद्योगपतियों और व्यापारियों के आसपास कार्य करते थे, अब ये सरकारी कर्मचारियों तक पहुँचे हैं, परन्तु आम आदमी से अब भी बहुत दूर हैं। सड़क का विकास एक रुपये के निवेश पर 500 रुपये का फायदा कराता है, ऐसा विश्र्व बैंक के विशेषज्ञों का कहना है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का जाल नए वित्तीय संसाधनों को पैदा करेगा। ऐसा ही आंकलन स्वास्थ्य सेवाओं को मुहैया कराने पर होने वाले फायदे का है। वास्तव में हमारे ग्रामीण विकास में इन बातों को शामिल कर विकास के नए मानक स्थापित किए जा सकते हैं। अब “गरीबी हटाओ’ के नाम पर चलने वाली सब्सिडी युक्त योजनाओं को बंद कर देना चाहिए क्योंकि इनमें आमजन का ही पैसा लगता है। सस्ता नमक, सस्ती खाद और खाद्यान्न जैसे लुभावने नारे छलावा ही प्रतीत होते हैं। ये निर्माण नहीं करते हैं एवं इनसे अभी तक कुछ चत्कारी परिणाम भी नहीं मिले हैं। सिर्फ भ्रष्टाचार के आंकड़े ़जरूर बढ़े हैं। वास्तव में आज हमें बैंकिंग वित्तीय, बीमा, जनस्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सेवाओं की पहुँच आम आदमी तक करनी होगी जिनके जरिए आर्थिक समृद्घि के तरीकों को अपनाकर अपना और गांव का विकास कर सकें। बांग्लादेश के संगठन बी.आर.ए.सी. के द्वारा चलाये जा रहे माइाो फाइनेंस और जनशिक्षण जैसे कार्यामों की ़जरूरत हमारे देश में भी है। इन्हें सरकारी कार्यामों में प्राथमिकता से शामिल किया जाना चाहिए।
– डॉ. सुनील शर्मा
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