एक जाट गणेश जी की पूजा किया करता था। एक दिन सुबह देखा कि गणेश जी के सिर पर चूहा बैठा है। उसने सोचा, मैं इतने दिन समझ रहा था कि गणेश जी से बड़ा और कौन होगा? किन्तु यह चूहा इनसे भी बड़ा है।
वह चूहे की पूजा करने लगा और उसे विविध मिठाइयॉं खिलाने लगा। एक दिन देखा कि चूहा बिल्ली को देखते ही डर के मारे बिल में घुस गया। जाट ने सोचा, चूहे से बड़ी बिल्ली है और वह बिल्ली की पूजा करने लगा। अपने बच्चों को दूध न पिलाकर बिल्ली को दूध-मलाई खिलाने लगा।
एक दिन उसने देखा बिल्ली पर एक कुत्ता झपट रहा है। बेचारी बिल्ली ज्यों-त्यों अपनी जान बचाकर भाग रही है। उसने सोचा कि मैं तो इतने दिन अंधेरे में ही रहा। बिल्ली से बड़ा तो कुत्ता है। उस दिन से वह कुत्ते की पूजा करने लगा। स्वयं तथा परिवार को सूखी रोटी खिलाकर कुत्ते को घी से चुपड़ी रोटियॉं खिलाने लगा। लेकिन दूसरे ही दिन उसने देखा, उसका लड़का रामू डण्डा हाथ में लिये कुत्ते को पीट रहा है। कुत्ता बेचारा पीड़ा के मारे कराह रहा है। जाट ने सोचा – अरे! मैं तो इतने दिल भूल-भुलैया में था, इस कुत्ते से बड़ा तो मेरा बेटा रामू है।
वह उस दिन से रामू की पूजा करने लगा। लेकिन उसने देखा, रामू के हाथ से दूध की हंडिया गिर पड़ी, तो उसकी मॉं ने उसके चांटें जमा दिये। लड़का रोने लगा। जाट ने सोचा, अफसोस! मैंने तो बड़ी भूल कर डाली। इतने दिन तक मैंने सही तत्त्व को नहीं समझा। वास्तव में तो सबसे बड़ी रामू की मॉं है। उसने तत्काल हाथ जोड़कर उसके पैरों को छूते हुए कहा, हे देवी माता, तेरे से बड़ा इस दुनिया में कौन है? पत्नी ने बोध के स्वर में कहा, अजी! आपने तो अच्छी मूर्खता का परिचय दिया। पूजा तो गुण की होनी चाहिए।
जाट अपनी ना-समझी पर पश्र्चाताप करने लगा।
– बेला गर्ग
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