“श्री गुरु ग्रंथ साहिब’ सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है। यह एक धार्मिक प्रकाश पुंज है, जो अपनी काव्यात्मक रचनाओं द्वारा महानतम विचारधाराओं को समस्त मानवों तक पहुँचाता है। गुरुग्रंथ साहिब के उपदेश व्यक्ति को आध्यात्मिकता के ऊँचे स्तर तक उठने की प्रेरणा देकर उसे परमपिता परमात्मा में मिला देते हैं। यह कहा जा सकता है कि गुरु ग्रंथ साहिब एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जो जीवन-विज्ञान के हर पहलू को उजागर करता है। गुरु ग्रंथ साहिब सिख धर्म की सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति है एवं सिखों का “शब्द गुरु’ है। यह अपनी ही तरह का एकमात्र ग्रंथ है, जिसमें किसी व्यक्ति या गुरु के जीवन का वर्णन नहीं है अपितु गुरु की शिक्षा रूपी वाणी अंकित है। सिख गुरुओं के अतिरिक्त इसमें अन्य धर्मों के भक्तों की बाणी भी है।
सिख धर्म के पॉंचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब के मूल स्वरूप की रचना की है। उन्होंने अपने सभी गुरुओं के उपदेशों और भक्तिमूल काव्य रचनाओं के साथ-साथ हिन्दू और मुसलमान भक्तों की भक्ति-रचनाओं को संग्रहित कर गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान दिया।
गुरु अर्जुन देव ने, अमृतसर शहर में रामसर सरोवर के किनारे बैठकर इस महान ग्रंथ के संकलन एवं रचना का अत्यंत कठिन कार्य 1599 ई. में किया। अब इस स्थान को गुरुद्वारा रामसर साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु अर्जुन देव की निगरानी में गुरु ग्रंथ की लिखाई का कार्य भाई गुरुदास ने किया। गुरु ग्रंथ साहिब जैसे महान ग्रंथ की रचना पूरी होने में कई वर्षों का समय लगा। ग्रंथ पूरा होने पर भाई बन्नो ने उसकी सुंदर जिल्द तैयार की। गुरु ग्रंथ साहिब को धार्मिक जुलूस में, भक्ति-प्रवाह में बहते अपार जनसमूह के बीच बड़े ही आदर व सम्मान के साथ हरमिंदर साहिब ले जाया गया। बाबा बुड्डाजी इसे अपने सिर पर रख कर ले गये और उनके साथ गुरु अर्जुन देव ग्रंथ साहिब पर चॅंवर झुलाते हुए, पीछे चल रहे थे। ग्रंथ साहिब को सन् 1604 में हरमिंदर साहिब के भीतर एक ऊँचे स्थान पर रखकर प्रथम-प्रकाश किया गया। बाबा बुड्डाजी को ग्रंथ साहिब का पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया।
गुरु ग्रंथ साहिब के प्रकाश के पश्र्चात गुरु अर्जुन देव ने संगत को संबोधित करते हुए कहा, “”यह ग्रंथ एक आध्यात्मिक जहाज है और इसके सहारे संसार-सागर को पार किया जा सकता है। जो व्यक्ति इस ग्रंथ को पढ़ता, सुनता और उस पर अमल करता है, उसे शांतिपूर्वक ढंग से जीवन जीने की कला आती है। किसी भी धर्म, जाति, नस्ल का व्यक्ति इससे लाभ उठा सकता है।”
पवित्र ग्रंथ साहिब में 1430 पन्ने हैं, जिसमें 36 योगदाताओं द्वारा किये गये उपदेशों का सार/निचोड़ है। सिख गुरुओं की वाणी के अलावा हिन्दू और मुसलमान भक्तों की बाणियॉं उसमें मौजूद हैं। भगवान को राम, अल्लाह, गोविंद, ठाकुर, गुरु आदि कई नामों से संबोधित किया गया है। ये भक्त कविगण, देश के विभिन्न प्रांतों, जातियों तथा अवधियों से संबंधित थे। 12वीं सदी के भक्त जयदेव बंगाल के हिन्दू कवि थे। 14वीं सदी में नामदेव नामक भक्त कवि हिन्दू थे, छोटी जाति के थे। पश्र्चिमी पंजाब में 12वीं व 13वीं सदी में बाबा फरीद शकरगंज एक मुसलमान भक्त कवि हुए थे। यह बात बड़े ध्यान देने की है कि अधिकांश भक्त कवि छोटी जातियों के ही थे। नामदेव जाति के धोबी थे तो धन्ना-जाट, साधना-कसाई, रविदास-चमार और सैन-नाई और कबीर जुलाहे थे। गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मुख मत्था टेकने का अर्थ है- इन सभी भक्तों की बाणी के सामने भी नतमस्तक होना। यह बात सोचने वाली है कि यद्यपि सारे के सारे भक्त-कवि विभिन्न धर्मों, आचार-विचारों, भिन्न परंपराओं से संबंधित थे, परन्तु सबके मौलिक सिद्घांत – भगवान एक हैं, सर्वशक्तिमान हैं, सर्वोच्च एकमात्र पवित्रतम आत्मा है। वह पहुँच से बाहर और असीमित है। उसका न रूप है, न रंग और न कोई आकार। वह आरंभ में सत्य था, मध्य में सत्य था, अब सत्य है और भविष्य में भी सत्य ही रहेगा। वह स्वयं ही सृष्टा है – ब्रह्माण्ड में उपस्थित प्रत्येक कण का वह जन्मदाता है और अपनी सृष्टि को चलाने वाला भी स्वयं ही है। उसकी सृष्टि अद्भुत है। यही है गुरु ग्रंथ साहिब के पद-मानव-जीवन के समस्त पहलुओं जैसे – नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन को गहराई से छूते हैं। दुराचार, ाोध, हिंसा, शराबखोरी, संकीर्णता, अहंकार, ईर्ष्या, लोभ, मोह और काम, ये ऐसे शैतान हैं, जिनमें से कोई भी सहनशीलता प्रदान नहीं करते। गुरु ग्रंथ साहिब हमें संपूर्ण मानव बनने की शिक्षा देते हैं। संसार से भाग कर कुछ भी नहीं किया जा सकता। इससे हमें सीख मिलती है कि हमें खुद पर नियंत्रण करना चाहिए, अपने भीतर निर्गुणों का हनन करना चाहिए। गुरु ग्रंथ साहिब हमें अपनी मधुरवाणी, सहनशीलता, क्षमागुण, चरित्र निर्माण, आत्मनिर्भरता और कई महान खूबियों को परखना व अपनाना सिखाते हैं। यह महिलाओं के प्रति समानता की भावना और सारे मानवों के प्रति प्यार करना भी सिखाते हैं। ग्रंथ साहिब मनुष्य-मनुष्य के बीच भेदभाव नहीं करते और छुआछूत जैसी सामाजिक बुराइयों आदि की निंदा करते हैं। इन तथ्यों के सबूत के रूप में कई संदर्भ ग्रंथ साहिब में मौजूद हैं। सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह ने मूल ग्रंथ साहिब में मौजूद सभी बाणियों आदि के साथ सिखों के नौवें गुरु अपने पिता गुरु तेग बहादुर की लिखी बाणियों को भी शामिल करते हुए गुरु ग्रंथ साहिब का नया संस्करण तैयार किया। गुरु गोविंद सिंह जी ने सारे ग्रंथ को तलवंडी साबो (अब दमदमा साहिब) में अपने शिष्य भाई मणि सिंह से लिखवाया था। अपने जीवन के अंतिम काल में गुरु गोविंद सिंह ने “व्यक्ति गुरु’ प्रथा को समाप्त करते हुए 1708 में नांदेड़ (महाराष्ट) में “शब्द गुरु ग्रंथ साहिब’ को अपना उत्तराधिकारी बना दिया और सिखों को “शब्द गुरु ग्रंथ साहिब’ को गुरु मानने का आदेश दिया। संसार भर के सिख इस वर्ष 2008 में गुरु ग्रंथ साहिब की गुरु ता गद्दी की त्रिशताब्दी मना रहे हैं।
संगीत को सीमाओं में, हवा को पिंजरों में कैद नहीं किया जा सकता। प्यार की कोई जाति नहीं होती और न भगवान किसी एक के लिए या किसी विशेष समाज के लिए होता है। वह तो सबका है- सर्वव्यापी है। यदि कोई इस सर्वशक्तिमान से प्रेम करना चाहता हो, तो उसे सबका बनकर रहना होगा। यदि वह सबका बनकर नहीं रह सकता तो उसकी सारी प्रार्थनाएँ झूठी हैं, दिखावा है। हवा-विश्र्वव्यापी है, सच्चाई-विश्र्वव्यापी है और वे लोग जो भगवान को समर्पित हैं, विश्र्वव्यापी हैं और गुरु ग्रंथ साहिब विश्र्वव्यापी है।
– सरदार गुरूभेज सिंह चावला
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