साल में छः माह से अधिक समय तक बर्फ की सफेद चादर से ढकी रहने वाली हिमाचल की स्पीति घाटी को “गोम्पाओं की धरती’ भी कहा जाता है। इस घाटी के उत्तर में लद्दाख, पश्र्चिम में चम्बा और पूर्व में तिब्बत पड़ता है। हिमश्र्वेतिमा और यहां के अजीबो-गरीब रीति-रिवाजों के लिए यह घाटी काफी मशहूर है। अक्तूबर-नवम्बर में जब स्पीति घाटी बर्फ की अधिकता के कारण शेष दुनिया से कट जाती है, तब यहां का जीवन नहीं रुकता, बल्कि यहां की जिन्दगी उत्सव और उल्लास के साथ हंसते-गाते चलती रहती है।
स्पीति घाटी के लोग बौद्घ-धर्म के अनुयायी हैं। बौद्घ-धर्म में अगाध आस्था रखने वाले अधिकांश स्पीतिवासी घरों में पुरातन प्रतिमाओं एवं पोथियों की प्रतिदिन पूजा करते हैं। यहॉं की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक परिवार से बड़े लड़के को छोड़कर शेष सभी छोटे भाइयों को बचपन से ही गोम्पाओं में भेज दिया जाता है, जहॉं वे बौद्घ-धर्म की शिक्षा-दीक्षा ग्रहण करते हैं। पैतृक सम्पत्ति का स्वामी बड़े लड़के को ही समझा जाता है। अगर कोई माता-पिता अपने बच्चों को गोम्पा में न भेजना चाहे तो वह निश्र्चित धनराशि गोम्पा में दान कर देता है। यहॉं कई परिवार की लड़कियॉं भी अल्पायु में ही भिक्षुणी बना दी जाती हैं। गोम्पाओं के जीवन-निर्वाह का खर्च यहां के स्थानीय निवासी उठाते हैं।
इस घाटी में जब कन्या विवाह के योग्य हो जाती है, तब माता-पिता ज्योतिषी, जिसे “झोय’ कहा जाता है, से उपयुक्त वर के विषय में विचार-विमर्श करते हैं। कन्या और वर की जन्म-कुंडलियों का मिलान तो कराया ही जाता है, साथ ही भावी संतानों के बारे में भी झोय से जानकारी प्राप्त की जाती है। विवाह निश्र्चित होने पर लड़के का पिता लड़की के घर आता है, जहां उसका स्वागत छांग नामक सुरा पिलाकर किया जाता है। विवाह के अवसर पर भी बारातियों की आवभगत छांग से की जाती है। विवाह से पूर्व बारातियों का चयन गांव के बुजुर्गों द्वारा किया जाता है। शादी की रस्म पूरी होने पर वरपक्ष की ओर से एक तीर लड़की की मॉं को उपहार स्वरूप भेंट किया जाता है। इस घाटी में प्रेम-विवाह भी होते हैं, जिन्हें “खाडयू’ नाम से जाना जाता है। घाटी के कुछ स्थानों पर सगाई की रस्म कन्या के पिता व वर के मामा के बीच परस्पर सहमति होने पर तय की जाती है। इस सहमति के बीच स्वागत-सत्कार में छांग की दावतें होती हैं। जब विवाह की तारीख निश्र्चित हो जाती है और वधू के द्वार पर बारात का आगमन होता है, तब घर की छत से एक जीवित भेड़ को मंत्रोच्चार के बीच बारातियों पर फेंका जाता है। बारातीगण इस भेड़ को पकड़ कर उसका वध कर डालते हैं तथा वधू के घर में प्रवेश करते हैं। इसके पश्र्चात ही विवाह की सारी रस्में सम्पन्न होती हैं।
स्पीति घाटी के निवासी नाच-गाने के शौकीन व उत्सव प्रेमी होते हैं। सालभर यहॉं उत्सवों का सिलसिला चलता रहता है। “लोसर’ यहॉं का प्रमुख उत्सव है, जो शीत ऋतु में मनाया जाता है। यह उत्सव तीन दिन तक चलता है, जिसमें बच्चे-बूढ़े सभी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं। “फागुनी’ यहां नववर्ष का उत्सव है। इस उत्सव में सभी लोग एक-दूसरे को फूलों के गुलदस्ते भेंट करके नववर्ष की बधाइयां देते हैं। लड़के के जन्म पर गोछी नामक उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर गांववासी उस घर में एकत्र होते हैं, जहां लड़के का जन्म हुआ होता है। नाच-गाने के साथ ग्राम देवता को छांग अर्पित की जाती है। लड़की के जन्म पर भिगरी नामक उत्सव आयोजित किया जाता है। स्पीति घाटी के मेलों में “लादरचा’ मेला काफी मशहूर है।
विवाह का अवसर हो या संतान का जन्म, कोई उत्सव हो या मेला अथवा अन्य कोई सामुदायिक त्योहार स्पीतिवासी तन्मयता के साथ लोकवाद्य बजाकर पारम्परिक नृत्य करते हैं। “राक्षस नृत्य’ यहां का प्रमुख नृत्य है। इस नृत्य में नर्तक राक्षसी मुखौटे पहन कर और हाथों में धारदार खूखरियॉं लेकर नाचते हैं। इस नृत्य को यहां अत्यंत पवित्र माना जाता है, इसलिए इस नृत्य में केवल लामा लोग ही भाग लेते हैं। इसी तरह “बुकम नृत्य’ भी लामाओं द्वारा किया जाता है।
– निर्विकल्प विश्र्वहृदय
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