कार्तिक सुदी एकम के दिन सुबह जल्दी उठकर घर में झाडू लगाकर कचरे को डगरे में डालते हैं, वो कचरा सासुजी बाहर डालकर आती हैं, बेलन से डगरा बजाती हैं, घर के आगे बन्दरवार (आसोपालव के पत्ते, फुल की) बान्धते हैं, न्हा धोकर अच्छे कपडे पहन कर मन्दिर जाकर आते हैं, गायकागोबर लेकर आते हैं,जो लक्ष्मीजी की पूजन की सामग्री की थाली होती हैं, उसी से गोवर्धन की पूजा करते है, दीपक जलाते हैं, गोबर में पाली करके पानी से सींचते है, थोडी सी आतिशबाजी करते हैं, चार परिक्रमा गोवर्धन के चारों तरफ करते हैं।
गोवर्धन पूजन करने की विधि
दीपावली के बाद होने वाली गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजन में घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की अल्पना बनाकर उनका पूजन करते हैं। इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले गिरिराज भगवान को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल मालाए धूपए चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जलए रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं।
यह है गोवर्धन की पूजन व्रत कथा
गोवर्धन पूजा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है। उससे पूर्व ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थीए लेकिन भगवान कृष्ण ने गोकुल वासियों को तर्क दिया कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं प्राप्त होता। वर्षा करना उनका कार्य है और वह सिर्फ अपना कार्य करते हैं जबकि गोवर्धन पर्वत गोवर्धन का संवर्धन एवं संरक्षण करता हैए जिससे पर्यावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए। इसके बाद इंद्र ने ब्रजवासियों को भारी वर्षा से डराने का प्रयास कियाए लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सभी गोकुलवासियों को उनके कोप से बचा लिया। इसके बाद से ही इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का विधान शुरू हो गया है। यह परंपरा आज भी जारी है।
ये है पूजा का महत्व
माना जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के मानवमर्दन के पीछे उद्देश्य था कि ब्रजवासी गोवर्धन एवं पर्यावरण के महत्व को समझें और उनकी रक्षा करें। आज भी हमारे जीवन में गायों का विशेष महत्व है। आज भी गायों के द्वारा दिया जाने वाला दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है। मान्यता हैए कि गोवर्धन पूजा के दिन यदि कोई दुखी हैए तो पूरे वर्ष भर दुखी रहेगाए इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए।
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