गाय को हमारे शास्त्रों में पूजनीय बताया गया है। पुरातन समय में गाय ही हमारी व्यावसायिक धुरी रही है। गौ-उत्पादों की महिमा आज फिर से अधिक उपयोगी सिद्घ हो रही है। जिन तथ्यों को हमने बढ़ते हुए वाणिज्यिकरण के युग में भुला दिया था, वे सब अब पुनः विज्ञान की कसौटी पर भी महत्वपूर्ण साबित हो चुके हैं। गौ-उत्पादों की उपयोगिता ने गौ-माता को और अधिक पूजनीय बना दिया है।
शास्त्रों, वेदों, पुराणों में महिमा मंडित गौ को चिकित्सा जगत भी महत्वपूर्ण मानने लगा है। कैंसर जैसे असाध्य रोगों में भी पंचगव्य चिकित्सा ने अपना स्थान बना लिया है। ऐसी बहुपयोगी गाय की वन्दना करने मात्र से ही काम नहीं चलेगा। गौ-वंश की अभिवृद्घि के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। शहरी परिवेश में गौ-पालन घर में करना मुश्किल हो गया है। जहॉं भी संभव हो, प्रत्येक भारतीय परिवार को एक गाय के पालन की जिम्मेदारी उठाने का प्रण करना होगा, तब ही गाय की सच्ची सेवा होगी। गाय जो हमें इस लोक से तारने वाली है और समस्त रोगों से छुटकारा दिलाकर हृष्ट-पुष्ट करने वाली है, के पालन-पोषण का पुनीत कर्त्तव्य हमें निभाना होगा। गौ सेवा ही माधव सेवा है। गौ-माता की रक्षा के लिए हमें हर वक्त तत्पर रहना चाहिए क्योंकि गौ-रक्षा पर ही हमारा अस्तित्व भी निर्भर है।
– हनुमान शर्मा (हैदराबाद)
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