(टेर) हरदम पिया के प्रित रस बिन म्हारी मन भटके
अली आसाढ़ के मास विरह सुन बादल गहरा है
चम चम चमके बिज विकल पिव के बिन हैरा है
खबर बिन धीरज नहीं आवे
तन मन बदन बैहाल विपत में नहीं कोई कछु भावे
कहोनी मिलदा त्रृण अटके
सखी सावण के मास सोक में सुंदर घवरानी
रिम झिम बरसे मेघ मोर दादूर की धूनवानी
झिंगूर अहंर हिव लहरावे
तडप तन के माय हाय पिय खोज कहा पावें
रही हिम में पीव को रसके
भर भादव झड मेघ अखण्डीत भर से जल धारा
आवे पीया की पीड नीर नैनों से बहे जोधारा
सुख सब आँखी यन मेलाली
मोरे कोचा तान के यु कसके से भाली
कलेजे अंदर में खटके
ऋतु पुआर के मास आस कागा संग सुध बिसरी
हंस सिरोमणी फुल फुल से तज मेवा भिकी
मर्म संगत बीन सह पावे
बिन संत गुरु की बात घाट घर
कैसे ओ चढ़ जावे
सूरत मन यु करके लटके
कार्तिक पील के माय जाय सब सुध
बुध दरसावे
अष्ट कमल दल पार पार पद अह सब समजावे
शरण हुवी संत गुरु की चेली
मैली बुद्धि निकाल सार जब लख पावे है ली
चाँदनी हिवडे में चीट के
अग अगन के मास पाप पुण्य सब ही जल लाव
निर्मल नीर बनाय जाय सब त्रिवेणी नावे
कर्म का भोग भ्रम छुटे
बिन बैनी स्थान पर जम धर धर ने लुटे
बचे नहीं सब को ही पटके
पोष पुरुष की आस बात बिन जीवन ही निसकार
सत गुरु केवट गेल गमन कर जव पावे पार
मिले जब पिव परसे प्यारी
सुंदर सेज बिचाय पीया संग सोर्वकर थारी
अर्ज कर पितम से हटके
माहा मनोरथ प्रित परम पद सुद ही सम्हाली
ऐसी होय कोई नारी जगत तज तन मन से हारी
सुरत की डोरी लो लावे
मुल मुकट की राह दाव कर सहज ही चढ़ जावे
सुमती सुन बेगी बुद्ध झटके
फागुण फरक निकाल थारसंग खेले फूल होरी
आस अबीर उडाय पुनन की भर मारे झोली
हरकणा निस चंदन लेपे
निल सिंकर की राह सुरत चढ़ सुंदर में छेपे
चरण में निस चिस से गटके
चतूर सेहली चेत हेत हिवडे से सन लावे
पल पल पाले पीत पीय जी को रस चावे
अमल कर हो जावे मतवाली
नशा नैन के माय बिसर गई सुध बुध ही सारी
गर्क थोडी बाते पटके
बुन्धु बैशाख की साख सिंधु गत सन्तों ने गई
सुनक सजन होय समझ सब छोड़े ओ चतुराई
बिन मिल दुरमत की छोड़ेे
मन मकरन को जान मानकर कामन को तोड़े
लहर संत सगत की चढ़के
जबर जैठ की रीत करे कोई झंकर जब होवे
मन के बिकम्ब विकार काड के तुलसी सब धोवे
भरम तज भक्ति भजन करना
मन मुरख को बाद पकड़ यु जीवत ही मरना
निकल घट न्यारी होय पटके
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