चाय उद्योग का संकट

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि भारत में चाय उद्योग ने जहॉं देश की अर्थव्यवस्था के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है वहीं भारी तादाद में लोगों को रोजगार भी मुहैया करवाया है। इस बात को असम के चाय उद्योग के उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। असम में तकरीबन एक हजार चाय बागान हैं जहॉं लगभग 10 लाख लोग काम करते हैं। इसका अर्थ है कि अगर भविष्य में चाय का उत्पादन बढ़ेगा तो चाय उद्योग के मुनाफे में भी बढ़ोत्तरी होगी, इसके साथ ही रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। असम का चाय उद्योग हाल के वर्षों तक असम की अर्थव्यवस्था में भी अहम भूमिका निभाता रहा है।

वित्तीय वर्ष 1999-2000 में असम सरकार को चाय उद्योग से राजस्व के रूप में 122.48 करोड़ रुपये मिले। यह राशि कुल राजस्व का 13 प्रतिशत थी। उसी वर्ष गुवाहाटी के चाय नीलामी केन्द्र से असम सरकार को बिाी कर के रूप में मोटी रकम मिली। गौरतलब है कि वर्ष 2001 में असम में चाय का कुल उत्पादन 54.39 करोड़ किलोग्राम था।

इसके बावजूद चिंता की बात यह है कि वर्तमान समय में चाय उद्योग को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। एक तरफ निर्यात में कमी होती जा रही है तो दूसरी तरफ घरेलू बाजार में चाय की खपत भी घटती जा रही है। वर्ष 2000 से अब तक चाय उद्योग को मंदी के दौर से होकर गुजरना पड़ रहा है। वर्ष 1999 तक वैश्र्विक बाजार में भारतीय चाय उद्योग की खास जगह थी और दक्षेस में शामिल देशों के अलावा विभिन्न देशों को चाय निर्यात कर भारतीय चाय उद्योग मुनाफा कमाता रहा था। उदाहरण के तौर पर 1999 में भारतीय चाय उद्योग ने रूस को 10.2 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया था। लेकिन वर्ष 2000 से वैश्विक बाजार का परिदृश्य बदलने लगा और अंतर्राष्टीय स्तर पर भारतीय चाय की मांग भी घटती गई। वर्ष 2000 में भारतीय चाय उद्योग ने रूस, जर्मनी, पोलैंड, ब्रिटेन, इराक, ईरान और पाकिस्तान को कुल मिलाकर 9.5 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया। पहले इराक को जहॉं 4.4 करोड़ किलोग्राम चाय का निर्यात किया जाता था वहीं 2002 में महज 1.2 करोड़ किलोग्राम चाय का ही निर्यात किया गया।

चाय उद्योग के संकट पर गौर करने से पता चलता है कि भारत में अन्य देशों की तुलना में चाय उत्पादन पर सबसे अधिक खर्च किया जाता है। श्रीलंका, केन्या, चीन और इंडोनेशिया में चाय उत्पादन की लागत भारत से कम है। वैश्र्विक बाजार में भारत के सामने श्रीलंका और केन्या ने चुनौती खड़ी कर दी है। 35 वर्ष पहले तक भारत जहॉं कुल चाय उत्पादन का 60 प्रतिशत निर्यात करता था, वहीं आज कुल उत्पादन का महज 25 प्रतिशत हिस्सा ही निर्यात कर पा रहा है। वर्ष 1960 में वैश्र्विक बाजार में भारतीय चाय उद्योग की उपस्थिति 36 प्रतिशत थी जो 2003 में घटकर 13 प्रतिशत रह गई।

अक्तूबर, 2004 में भारतीय चाय संघ ने चाय उद्योग के संकट के बारे में एक पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें विभिन्न समस्याओं को रेखांकित किया गया था। उत्पादन लागत अधिक होनेे के अलावा पुराने चाय बागानों में जमीन की उत्पादकता, बागान मालिकों का गैर पेशेवर रवैया, योजना एवं सर्वेक्षण की उपेक्षा आदि कारणों का उल्लेख पुस्तिका में किया गया था।

इन बातों के अलावा चाय श्रमिकों के प्रति चाय बागान मालिकों का सामंती रवैया भी चाय उद्योग के संकट की अहम वजह है। लंबे समय तक चाय उद्योग को जीवित रखने के लिए ़जरूरी है कि चाय श्रमिकों के जीवन स्तर में भी सुधार किया जाए। श्रम अधिनियम 1951 के तहत समय-समय पर चाय श्रमिकों की मजदूरी बढ़ा कर उनके जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है। लेकिन जब तक चाय श्रमिक आंदोलन नहीं करते तब तक बागान का प्रबंधन मजदूरी बढ़ाने के लिए तैयार नहीं होता। इस तरह के आंदोलनों की वजह से चाय का उत्पादन प्रभावित होता है। पश्चिम बंगाल के कुल 350 चाय बागानों के 3.5 लाख चाय श्रमिकों ने 11 जुलाई, 2005 से मजदूरी बढ़ाने की मांग के समर्थन में अनिश्र्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी थी। 25 जुलाई, 2005 को बागान मालिकों और श्रमिकों के बीच समझौता हो पाया था। हड़ताल की वजह से उद्योग को प्रतिदिन 6.5 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा था।

पिछले कुछ वर्षों में असम में ग्यारह चाय बागान बंद हो चुके हैं। दोषपूर्ण प्रबंधन, मजदूरी के लिए श्रमिकों का आंदोलन और उत्पादन लागत में वृद्घि के कारण इन चाय बागानों को बंद किया गया। ऐसे कड़वे अनुभव के बावजूद राज्य के चाय उत्पादक अपने रवैये में बदलाव लाने की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं। असम चाय निगम राज्य में 14 चाय बागानों का संचालन करता है। इन बागानों में कुल 15 ह़जार श्रमिक कार्य करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से निगम को घाटे का सामना करना पड़ रहा है और वह श्रमिकों को समय पर मजदूरी दे पाने में असमर्थ हो चुका है। बिगड़ते हालात को देखते हुए अखिल असम चाय जनजाति छात्र संघ (आटसा) ने इन चाय बागानों के निजीकरण की मांग की है।

पूर्वोत्तर के प्रचार माध्यमों में इस तरह की खबरें प्रकाशित हो रही हैं कि चाय की खेती के लिए निर्धारित सहायता राशि मुहैया कराने में केन्द्र सरकार विलंब कर रही है और राशि की किल्लत की वजह से चाय उद्योग को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। गौरतलब है कि चाय उद्योग के संकट के संदर्भ में सितम्बर, 2004 में नई दिल्ली में वाणिज्य मंत्रालय और भारतीय चाय बोर्ड की बैठक हुई थी जिसमें चाय की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से आश्र्वासन दिया गया था और 1000 करोड़ रुपये का विशेष कोष इस मद के लिए बनाने की बात कही गई थी।

केन्द्र की तरफ से वादे तो किए गए मगर चाय उद्योग को संकट से उबारने के लिए राशि मुहैया नहीं करवाई गई। अगर समय पर चाय उद्योग की समस्याओं से निपटने के लिए कारगर कदम नहीं उठाया गया तो आने वाले समय में संकट गंभीर रूप ले सकता है।

 

– दिनकर कुमार

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