अभी मैं अपने क्लिनिक में आया ही था कि बाहर शोर-गुल सुनाई पड़ा। देखा कि कुछ लोग एक 10-12 साल के बच्चे को चोर बताकर लप्पड़-थप्पड़ कर रहे थे। आसपास के ही लोग थे, पता करने पर मालूम हुआ कि यह लड़का पास के एक गुमटी से पैसे चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया है। दुबला-पतला मरियल सा लड़का, लोगों के बीच सिर झुकाये खड़ा था और गालियां एवं थप्पड़ की मार को अपनी नियति मानकर चुपचाप सह रहा था। पूछताछ शुरू हुई तो उसने अपना नाम शमीम एवं बाप का नाम अब्दुल अंसारी, घर आजाद नगर बताया। इतना सुनते ही भीड़ जो कि हिंदुओं की ही थी, तरह-तरह की बातें करने लगी। कोई उसके परिवार को तो कोई मुस्लिम कौम को ही दोषी बताने लगा। कुछ ने मुस्लिम जानकर दो-चार हाथ और जड़ दिये। यह कहकर कि साले पैदाइशी चोर होते हैं, घर में खाने को कुछ नहीं और पैदा किये जा रहे हैं। लड़का आज चोरी कर रहा है, कल डाका डालेगा, गाड़ी लूटेगा, बड़ा होकर न जाने आतंकवादी ही बन जाये। न खिलाने की औकात, न पढ़ाने की हैसियत, फिर भी एक दर्जन से कम पैदा नहीं करेंगे। गलती खुद करेंगे और दोष अल्लाह को देंगे कि सब अल्लाह का फजल है। भीड़ में कुछ मुस्लिम युवक भी थे, उन्होंने बीच- बचाव कर लड़के को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन बात बनती न देख, किसी ने पास के मुस्लिम मोहल्ले में जाकर लोगों को उकसा दिया। नतीजा वहां से कई लोग भागकर आये। कुछ ही देर में अच्छा खासा मजमा लग गया। मुस्लिम युवकों की संख्या बढ़ने पर वे लोग बच्चे को छोड़ देने का दबाव डालने लगे, दूसरी ओर हिन्दू लोग चोर को थाने ले जाने पर अड़े थे। बात तू-तू, मैं-मैं से शुरू होकर तना-तनी एवं धक्का-मुक्की तक पहुंच गयी। चोरी की बात गौण हो चुकी थी और
मामला सांप्रदायिक रूप लेने लगा था। इसी बीच कहीं से पुलिस की पेटोलिंग पार्टी आ गयी। बड़े बाबू साथ ही थे, उन्होंने लोगों को समझा-बुझाकर मामला शांत कराने में अहम भूमिका निभाई। चोर बच्चे को चेतावनी देकर छोड़ दिया गया और लोग जैसे आये थे वैसे खिसक गये।
मैं खड़ा सोचता रह गया भला चोरों की भी कोई जात-धर्म होती है? ये लोगों को क्या होता जा रहा है? धर्मनिरपेक्षता का दंभ भरने वाले इस देश में छोटी-से छोटी बात को सांप्रदायिक रंग देना आम बात होती जा रही है। यदि हम अब भी नहीं संभले तो निकट भविष्य में इस देश को शायद एक और बंटवारे का दंश सहना पड़े। क्या यह उचित होगा?
– डॉ. हर्षदेव गुप्ता, चतरा
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