जनमानस में रच-बस गया है फागली

कुल्लू, लाहौल, स्पीति, किन्नौर और मंडी कांगड़ा के कुछ भागों में एक ऐसा त्योहार मनाया जाता है, जो फागली के नाम से जाना जाता है। कहीं फागली, कहीं फागड़ी तो कहीं फाग जाच के नाम से जाना जाने वाले इस त्योहार के पीछे भी यही भाव काम कर रहा है।

फागली त्योहार एक ही समय में सब स्थानों पर एक साथ नहीं मनाये जाते, बल्कि हर देवी-देवता के मंदिरों में अलग-अलग समय पर मनाये जाते हैं। कुल्लू में फागली मेले को “टुण्डी राक्षस’ और उसकी पत्नी “तिम्बर छातकी’ के साथ जोड़ा गया है, जिनका क्षेत्र के विभिन्न देवी-देवताओं के साथ संघर्ष हुआ माना जाता है। तिम्बर छातकी वास्तव में मानवी थी, लेकिन “टुण्डी’ राक्षस था। एक जनश्रुति के अनुसार एक समय में टुण्डी राक्षस का कुल्लू के ऊझी क्षेत्र में जबरदस्त आतंक था। मनुष्य क्या देवी-देवता भी उससे आतंकित थे। उसे प्रतिदिन एक मनुष्य की बलि दी जाती थी अन्यथा उसका उत्पात और अधिक बढ़ जाता था। तब मनाली स्थित मनु ऋषि ने कूटनीति से काम लेते हुए टुण्डी को अपने विश्र्वास में लेकर उसका विवाह गांव की एक कन्या छातकी से रचा दिया। टुण्डी गांव वालों का जमाई बन गया। शांडिल्य ऋषि टुण्डी को विदा करने रोहतांग के उस पार तक गए, लेकिन राक्षस ने भी एक शर्त रखी कि वह ससुराल में मिलने के लिए वर्ष में एक बार अवश्य आएगा, अतः उसका स्वागत किया जाये। मनु मान गये। उसके बाद से वह प्रतिवर्ष अपने ससुराल वर्ष में एक बार आने लगा। इस अवसर पर उसकी खूब आवभगत होने लगी। उसके लिए मनपसंद मानव बलि दी जाने लगी। मनु को यह पसंद नहीं था, अतः उन्होंने राक्षस से कह दिया कि उसे बलि अवश्य दी जाएगी, लेकिन मृत मनुष्यों की। टुण्डी मान गया, उसके बाद में सुदूर अरछण्डी गांव से लेकर कोठी-सोलंग तक जब भी कोई मरता तो उसका शव मनाली गांव लाया जाता रहा। टुण्डी के साथ कई समझौते जब सफल न हुए तो देवताओं का उससे संघर्ष हो गया। मनु ने टुम्डी के मुंह में देवदार के पूरे वृक्ष ठूंस दिये। टुण्डी वहां से भाग खड़ा हुआ, लेकिन साथ ही कह गया कि वह हर साल जरूर आएगा। तभी से इस त्योहार की शुरूआत मानी जाती है।

मनाली गांव में यह त्योहार धूमधाम से मनाने की परम्परा है। वैसे यह त्योहार मास भर चलता है, लेकिन 11 दिनों तक समारोह होते हैं। पौष अमावस्या को तिम्बर छातकी आती है। उसके बाद मकर संाांति के बाद के पहले रविवार के दिन से यह त्योहार शुरू होता है। इस दिन को “फागली उघड़ता’ कहते हैं। सुबह देवता निकलता है। अगले दिन “जागरा’ होता है। इस दिन को “माला गोण्ठणा’ भी कहते हैं। इस अवसर पर गौढ़ा नामक गांव के शीर्ष पर एक खंडहर पर मेला लगता है, जहां से समारोह शुरू होते हैं। ढोल-नगाड़ों के साथ देवता और राक्षस के प्रतिनिधि माला बनाकर नाचते हैं। इसके बाद “माला चुटणी’ समारोह होता है। पूरे 11 दिन देवता घर-घर ले जाया जाता है और उसकी “धूप पौची’ से पूजा होती है। राक्षसों को यहां “मशाच’ कहते हैं, जो वास्तव में “पिशाच’ का अपभ्रंश है। इस अवसर पर देऊखेल यानि देव नृत्य होता है, जिसमें देवता का प्रतिनिधि गूर विभिन्न मुद्राओं में नृत्य करता है। टुण्डी को प्रसन्न करने के लिए आज भी जिन्दा मनुष्य के बाल जलाए जाने की प्रथा है।

मनाली फागली के बाद टुण्डी की सपत्नीक विदाई होती है और फिर वह किसी दूसरे गांव में प्रवेश करता है। वहां के देवता उसकी समारोहपूर्वक आगवानी करते हैं। मलाणा में भी ठीक इसी प्रकार के समारोह होते हैं। यहां के प्रमुख देवता “जमलू’ हैं। इस देवता को कुछ विद्वान “जन्मदग्नि’ भी कहते हैं। शलीण फागली के अवसर पर वहां के देवता “शांडिल्य’ और टुण्डी की भिड़ंत होती है। तीन दिन तक चलने वाले इस त्योहार में देवताओं के प्रतिनिधि गूर “सौह’ (देवशाला) में देवधुनों के बीच लामा बनाकर नाचते हैं। खोपरा-खेपरी आगे की ओर चलते हैं तो गूर पीछे की ओर चलता है। कई बार टुण्डी खेपरे में प्रवेश करता है और आवेशित खेपरा और टुण्डी में जमकर संघर्ष होता है। इस अवसर पर गांव के लोग सादे कपड़ों में बड़ी सादगी से इस त्योहार को मनाते हैं। विश्र्वास किया जाता है कि चटक वस्त्रों पर राक्षसी शक्तियां ज्यादा हावी होती हैं। कोटलू गांव की फागली सबसे अंत में होती है। इस फागली का महत्व सबसे अधिक माना जाता है। यहां देवता का गूर सवेरे से शाम तक औंधे मुंह पड़कर भार्था बोलता है। गूर बताता है कि इस वर्ष की फागली के दौरान किस गांव के देवता ने टुण्डी पर विजय पाई और कौन हारा। माना जाता है कि जिस गांव के देवता जीतते हैं, उस गांव के लिए नववर्ष बहुत सुखमय होगा। कोटलू फागली में तिम्बर छातकी और टुण्डी राक्षस को समारोहपूर्वक विदाई दी जाती है और साथ ही अगले वर्ष फिर से आने के लिए निमंत्रण भी दिया जाता है। यह दृश्य बड़ा भावपूर्ण होता है।

कुल्लू में जमलू देवता को “बड़ा देऊ’ के नाम से जाना जाता है और उसके मंदिरों को “देव घरै’ कहते हैं। कुल्लू की “बारह देव घरै फागली’ बहुत महत्व रखती है। शंगचर, कुलंग, सोईल और मलाणा में देवता के प्रमुख “देव घरै’ हैं। बारह देव घरै फागली तो बड़े समारोह हैं, लेकिन इस दौरान सभी देवी-देवताओं के मंदिरों में प्रतीकस्वरूप फागुली की रस्म अवश्य निभाई जाती है।

– टेकचंद ठाकुर

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