सिर्फ देसी ही नहीं विदेशी कंपनियॉं भी भारतीय युवकों को विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार देने को लालायित हैं। इसके लिए वे मान्य शिक्षण संस्थाओं में कैम्पस सेलेक्शन का भी कार्याम चला रही हैं। लेकिन उनका यह प्रयास उन्हें हद दर्जे निराश कर रहा है। कारण यह कि उनके गुणवत्ता और कुशलता के मानक पर बहुत कम युवक अपनी योग्यता प्रमाणित कर पा रहे हैं। कुशलता की कमी भारतीय युवकों की महत्वाकांक्षा को बाधित कर रही है और वे डिग्रियॉं हासिल करने के बावजूद रोजगार पाने से वंचित रह जा रहे हैं। यूँ बेरोजगारी का रोना तो हर कहीं रोया जा रहा है लेकिन हम इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं कर सकते कि आज की तारीख में अगर एक ओर बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है, तो दूसरी ओर रोजगार प्राप्त युवा भी अपनी दक्षता और कुशलता मानक के अनुसार प्रमाणित नहीं कर पा रहे हैं। सही अर्थों में उनकी अकुशलता बेरोजगारी की समस्या से कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।
कुछ समय पहले पूर्व राष्टपति एपीजे अब्दुल कलाम ने इस विषय पर चिन्ता प्रकट करते हुए कहा था कि भारतीय नौजवान अपनी अकुशलता के कारण विश्र्व अर्थव्यवस्था में आये बदलाव का सही ढंग से लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। एक समय था जब यह माना जाता था कि नई अर्थव्यवस्था रोजगार के अवसर घटाएगी और इस कारण से बेरोजगारी बढ़ेगी। लेकिन हो रहा है इसके ठीक उल्टा। यह सही है कि बेरोजगारी दर में बढ़ोत्तरी हो रही है। लेकिन वह इस वजह से नहीं हो रही है कि रोजगार के अवसर घट गये हैं। रोजगार के अवसरों में वृद्घि लगभग प्रत्येक क्षेत्र में देखी जा रही है। ऐसी स्थिति में बेरोजगारी बढ़ने का एकमात्र कारण यही है कि विभिन्न क्षेत्रों में जिस तरह की कार्यकुशलता की ़जरूरत है, उसकी अर्हता को पूरा करने वाले युवकों का अभाव है। इंडियन लेबर रिपोर्ट 2007 के अनुसार रोजगार में लगे करीब 53 फीसदी युवा किसी न किसी रूप में कुशलता मानक का स्पर्श करने में अपने को अक्षम सिद्घ करते हैं। आज भी 15 से 29 वर्ष के केवल 7 प्रतिशत युवाओं को ही बाकायदा वोकेशनल टेनिंग उपलब्ध हो पाती है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी यह इंगित किया था कि हमारे उच्च शिक्षण संस्थान कार्यकुशल युवक नहीं तैयार कर पा रहे हैं। निश्र्चित रूप से यह अभाव आगे चलकर देश की प्रगति के रास्ते में रोड़े अटकाएगा।
इसका एक कारण यह भी है कि भारत में अर्थव्यवस्था में बदलाव के मुकाबले गुणवत्ता युक्त शिक्षा के संदर्भ में परिवर्तन की गति बहुत ही धीमी रही है। कुछेक संस्थानों में व्यावसायिक पाठ्यामों को प्रारंभ ़जरूर किया गया है लेकिन उसका अंतिम निष्कर्ष यह है कि देश के 90 फीसदी स्कूल-कॉलेजों में वोकेशनल टेनिंग की कोई खास व्यवस्था नहीं है। अब यह समस्या खुल कर सामने आ गई है कि हमारे शिक्षण संस्थान उद्योग जगत और सेवा क्षेत्र की मॉंग के अनुसार कुशल युवकों की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं। इस कमी को ही दृष्टिगत कर पिछले वर्ष कुछ कांस्टक्शन कंपनियों ने चीन से स्किल्ड लेबर आयात किये थे। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि समुचित आर्थिक विकास के लिए मानव संसाधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन हमारी तैयारी इस स्तर पर बहुत कमजोर समझ में आती है। यह राहत की बात है कि इस विषय को संज्ञान में लेते हुए सरकार गुणवत्ता और कुशलता विकसित करने के लिए एक राष्टीय योजना की रूपरेखा तैयार कर रही है। इसमें कुछ बातों पर खास तौर पर ध्यान दिया जाएगा। सरकार अर्थव्यवस्था की वर्तमान गति को समझते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँची है कि मौजूदा दौर में मैन्युफैक्चरिंग और सेवा क्षेत्र में ही अधिकांश रोजगार के अवसर पैदा होंगे। ये दोनों ही क्षेत्र एक खास तरह की निपुणता की मॉंग करते हैं। इनके लिए अपने युवाओं को तैयार करना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके लिए पूर्व में स्थापित शिक्षा नीति को तो परिवर्तित कर आवश्यकता के अनुरूप बनाना ही होगा, इसके अलावा वर्तमान शिक्षा संस्थानों का ढॉंचागत बदलाव करके उन्हें नई शिक्षा के अनुकूल भी बनाना होगा।
इस कार्य के लिए सर्वाधिक ़जरूरी बात यह होगी कि नीति और योजना तैयार करते समय गुणवत्ता वृद्घि पर सर्वाधिक ध्यान और बल दिया जाय। इस कार्य को संपादित करने के लिए भारी धनराशि और अन्य संसाधनों की उपलब्धता को भी सुनिश्र्चित करना होगा। इसके अलावा शिक्षा संस्थानों को एक केन्द्रीकृत नेटवर्क से जोड़ा जाना भी आवश्यक है। आज व्यावसायिक शिक्षा देने के नाम पर सरकार ने अनेक संस्थानों को मान्यता दे दी है। लेकिन वह इन संस्थानों को निश्र्चित मानदंडों का अनुपालन करने के लिए विवश नहीं कर पा रही है। अनेक संस्थान ऐसे भी हैं जो योग्य शिक्षकों के अभाव से पीड़ित हैं और अनेक ऐसे भी हैं जिनका संस्थागत ढॉंचा आवश्यक संसाधनों के अभाव में चरमरा रहा है। इन संस्थानों को प्राथमिकता के आधार पर तत्परता के साथ सक्षम बनाया जाना चाहिए। कुशल मानव संसाधन तैयार करना सरकार की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। हमारे प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री तथा अन्य योजनाकार देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती का बखान करते थकते नहीं हैं, किन्हीं अर्थों में वह है भी, लेकिन उसकी निरंतरता को बनाये रखने के लिए हमें अपने युवकों की कुशलता, निपुणता तथा गुणवत्ता पर अविलंब ध्यान देना आवश्यक है।
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