जरूरी है ऊर्जा के नये स्रोतों की तलाश

पूर्व राष्टपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने एक बार फिर परमाणु-ऊर्जा की आवश्यकता पर बल दिया है। उनका यह रु़ख अमेरिकी असैन्य पारमाणविक समझौते के समर्थकों के लिए नया उत्साह पैदा करता है। लेकिन चेन्नई स्थित मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान में दिया गया उनका भाषण यह भी रेखांकित करता है कि इसके अलावा भी सस्ते, प्रदूषण-मुक्त और सहज-सुलभ ऊर्जा साधनों की भी खोज की जानी चाहिए। उन्होंने इस संस्थान में दिये गये अपने भाषण में यह भी रेखांकित किया है कि अगर भारत को विश्र्व में आर्थिक शक्ति बनकर आना है तो उसे हर हाल में 2030 तक ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना ही होगा। उन्होंने इस सीमारेखा के संबंध में बताया कि इस अवधि में भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन तक पहुँच जाएगी और बिजली की मांग बढ़कर 4 लाख मेगावाट के करीब होगी। उनका कहना है कि इसकी पूर्ति के लिए सौर और पवन ऊर्जा के जरिये एक लाख बीस हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन करना होगा और साथ ही कम से कम 50 ह़जार मेगावाट परमाणु रियेक्टरों से बिजली पैदा करनी होगी।

इंटरनेशनल मार्केट में तेल की कीमतें बहुत तेजी से बढ़ने के कारण भारत जैसे अनेक तेल आयातक देशों में अब यह धारणा बनने लगी है कि ऊर्जा के रूप में इसका उपयोग अब कम किया जाय। इसके लिए भारत सरकार ने एक राष्टीय कार्ययोजना भी पेश की है। माना यह जा रहा है कि अगर निकट भविष्य में तेल-ईंधन की कीमतें कुछ कम भी हो जाएँ, तो भी समय रहते इसका विकल्प तैयार कर लेना होगा। एक कारण यह भी है कि तेल-खनन अब अपने अंतिम बिन्दु के करीब पहुँच रहा है और आगे चलकर इसकी उपलब्धता में कमी आ सकती है। वैश्र्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा सामने आने के बाद तेल और कोयले की खपत को कम करने के लिए एक वैश्र्विक नीति भी बनाई जा रही है और माना जा रहा है कि ऊर्जा के इन स्रोतों से वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड का प्रसार अधिक हो रहा है। इन समस्याओं को ध्यान में रख कर कई देशों ने ऊर्जा के उन स्रोतों की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया है जिनसे पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि नहीं होती। इसमें एक विकल्प परमाणु ऊर्जा भी है। लेकिन इसके खतरे भी हैं। पहला खतरा इसके रिसाव का है जो पिछले दिनो चेरनोबिल में देखने में आया था। वैसे इस खतरे से निपटने की व्यवस्था भी अब कठिन नहीं रह गई है। दूसरा एक खतरा यह भी है कि इसका उपयोग सामरिक शक्ति के लिए भी चोरी-छिपे किया जा सकता है।

जहॉं तक भारत का प्रश्र्न्न है, वह गंभीर ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। उसकी तापविद्युत और जलविद्युत का उत्पादन आवश्यकता के अनुरूप नहीं हो रहा है। हमारे सामने लक्ष्य साफ है। यह कि ऊर्जा की कमी हमारे आर्थिक विकास में बाधक न बने। इसके अलावा हमारी निर्भरता आयातित तेल-ईंधन पर कम से कम हो। तथा हम ऐसी ऊर्जा के स्रोत तलाश सकें जो किसी भी तरह पर्यावरण को हानि न पहुँचावें। यह लक्ष्य कठिन भी नहीं है। भारत गॉंवों का देश है। अतः ग्रामीण स्तर पर ग्रामीण उत्पादों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के जरिये ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता उपलब्ध की जा सकती है। क्षेत्र की विशेषताओं और क्षमताओं के अनुसार कहीं पवन ऊर्जा की भूमिका ज्यादा प्रभावी सिद्घ हो सकती है, तो कहीं छोटी पन-बिजली परियोजनाओं को संचालित किया जा सकता है। इसी प्रकार ऐसे भी क्षेत्रों की खोज की जानी चाहिए जो सौर ऊर्जा के उत्पादन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए गॉंव अथवा कुछ गॉंवों का समूह बनाकर यह प्रयास किया जा सकता है कि कम से कम अपनी खपत की बिजली वे ़खुद पैदा कर सकें। खेती के साथ पशुधन का विकास बायो-गैस के निर्माण में काफी उपयोगी हो सकता है। अतः ग्रामीण खेतिहरों को पशुपालन के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। गॉंव के पढ़े-लिखे युवाओं को ऊर्जा के नये स्रोतों की खोज में लगाया जाना चाहिए।

इस क्रम में उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के किसान मंगल सिंह का उदाहरण दिया जा सकता है। इस किसान ने “मंगल वाटर-व्हील’ नाम से एक यंत्र का निर्माण किया है। इस यंत्र के माध्यम से बिना किसी बिजली अथवा डी़जल-मोटर का उपयोग किये सिंचाई का पानी नदी-नाले से लिफ्ट किया जा सकता है। यह शुद्घ रूप से ग्रामीण अनुसंधान है और आविष्कृत यंत्र की टेक्नोलॉजी भी बहुत जटिल नहीं है। मंगल सिंह को अपनी इस तकनीक पर पेटेंट भी हासिल हो गया है। सोचना यह है कि अकेले अगर मंगल सिंह की यह तकनीक सिंचाई के क्षेत्र में विकसित हो गई तो प्रचुर मात्रा में उपयोग में लाई जाने वाली बिजली और डीजल की बचत हो सकती है। क्या इस तरह की खोजों के लिए हमारे अन्य पढ़े-लिखे और बेरोजगार युवकों को प्रोत्साहित नहीं किया जा सकता? यह सही है कि अगर भारत-अमेरिकी परमाणु समझौता, जैसी कि आशा अब बंधने लगी है, कारगर हुआ तो वह बहुत हद तक हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकेगा। लेकिन यह उपलब्धता एक लंबा समय लेगी। हमें इसके अतिरिक्त भी अभी से छोटे, कम खर्चीले तथा प्रदूषण-मुक्त ऊर्जा संसाधनों की खोज शुरू कर देनी चाहिए। कम से कम हमारा ग्रामीण क्षेत्र बहुत आसानी से अपनी ़जरूरतों के लिए अपने संसाधनों से बिजली पैदा कर सकता है, आवश्यकता है एक सही दिशा-निर्देश की। अगर ग्रामीण ़जरूरतें इस संदर्भ में पूरी हो जायॅं तो बिजली का कोई संकट देश के सामने नहीं खड़ा होगा।

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