अगले महीने प्रारंभ होने वाले गणोशोत्सव को ध्यान में रखकर जिला प्रशासन की ओर से जिस कार्यशाला का आयोजन किया गया, उसमें जिलाधीश नवीन मित्तल ने संबंधित समितियों से ऐसी गणेश प्रतिमाओं का निर्माण करवाने को कहा है, जो पर्यावरण के अनुकूल हों, जिसमें कच्ची मिट्टी, घासफूस, बॉंस की खपच्चियों तथा प्राकृतिक रंगों का उपयोग हो। साथ ही उन्होंने प्रतिमा स्थापित करने वालों से कहा है कि वे प्रतिमा निर्माताओं से ऐसी ही प्रतिमाओं की खरीदी करें। कार्यशाला में उन्होंने स्पष्ट रूप से रेखांकित किया कि पर्यावरण को सुरक्षित और जीवनोपयोगी बनाये रखना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है। उनके अनुसार रासायनिक रंगों द्वारा बनायी गई प्रतिमाएँ विसर्जन के बाद गंभीर रूप से जल प्रदूषण का कारण बनती हैं। इससे जल-जंतुओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचता है। ये जलजंतु जल में प्रवाहित होने वाली विभिन्न गंदगियों और उच्छिष्टों का भक्षण कर जल की शुद्घता बनाये रखते हैं।
हालॉंकि जल प्रदूषण का सारा भार गणेश प्रतिमाओं पर डाले जाने का विरोध कई आयोजकों ने किया, लेकिन इस विरोध से यह किसी तर्क से साबित नहीं किया जा सकता कि रासायनिक रंगों, लोहा और प्लास्टर ऑफ पेरिस से निर्मित प्रतिमायें विसर्जन के बाद जल-प्रदूषण का कारण नहीं बनती हैं। इस आपत्ति को ठुकराया नहीं जा सकता कि समस्या बनते जल प्रदूषण के लिए अकेले जिम्मेदार प्रतिमा-विसर्जन को ही नहीं बनाया जा सकता, लेकिन यह भी स्वीकार नहीं किया जा सकता कि इसके लिए ़िजम्मेदार कारणों में यह एक कारण भी शामिल नहीं है। हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरायें उत्सवधर्मी ़जरूर हैं, लेकिन इस परंपरा ने बहुत प्राचीन काल से पर्यावरण शुद्घता के प्रति बहुत सचेत भाव से गंभीर चिन्ता प्रकट की है। हमने इसकी सुरक्षा के प्रति प्राकृतिक संसाधनों को बड़ी श्रद्घा के साथ पूजनीय बनाया है। यह एक दुःखद स्थिति मानी जानी चाहिए कि यह पूज्य भाव अब अपना वास्तविक संदर्भ खोकर शुद्घ प्रदर्शन बन गया है। इसी ाम में हम अपने विभिन्न धार्मिक उत्सवों के लिए जो प्रतिमा-पूजन का विधान रचते हैं, उसमें इस बात का ध्यान नहीं रखते कि हमारे उत्सव की प्रसन्नता और सुख आगे चलकर स्वयं हमारे लिए कौन-सी समस्या और संकट खड़ा कर सकते हैं।
जल को जीवन माना गया है। देश ही नहीं समूचा विश्र्व शुद्घ पेयजल की समस्या से जूझ रहा है। चिकित्सा वैज्ञानिक आज अधिकांश बीमारियों का कारण प्रदूषित जल को बता रहे हैं। आगे आना वाला समय आदमी के उपयोग के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता से तो जूझेगा ही, इसके अलावा अगर समुचित ध्यान नहीं दिया गया तो पृथ्वी पर पीने लायक पानी के स्रोत शेष नहीं बचेंगे। रासायनिक प्रदूषण ने न सिर्फ़ धरातलीय जल को ही प्रदूषित किया है, अपितु विभिन्न जहरीले रसायनों के तत्व भूगर्भीय जल तक पहुँच गये हैं। यह सही है कि मात्र गणेश मूर्तियों के विसर्जन से या अन्य धार्मिक उत्सवों के मूर्ति-विसर्जन से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला, क्योंकि जल प्रदूषण की दृष्टि से इस तरह के प्रदूषण को बहुत छोटा कारण माना जाएगा। लेकिन इतना तो माना ही जाएगा कि इन्हीं छोटे-छोटे कारणों से मिलकर एक बड़ा कारण निर्मित होता है। अतः अगर ईमानदारी पूर्वक इस आसन्न संकट का निवारण करना है तो प्रत्येक कारण को मिटाने की एक समग्र नीति अख्तियार करनी होगी। ़जरूरी यह है कि नीति निर्माण को एक सजग दृष्टिकोण के साथ बांधा जाय। इस नीति का अनुपालन सिर्फ़ सरकारी आदेशों के जरिये नहीं कराया जा सकता। इसके लिए जन-जागरण और जन-प्रशिक्षण की भी महती आवश्यकता है।
शुरुआत खेल-महाकुंभ की
उस रंगारंग समारोह का नजारा ही कुछ और था, जिसे पूरी दुनिया के अरबों लोगों ने टेलीव़िजन के रंगीन पर्दे पर 8 अगस्त को 8 बजकर 8 मिनट और 8 सेकेंड पर देखा। जी हॉं, यह वह विशेष क्षण था जब दुनिया भर के विशिष्ट राष्टाध्यक्षों की उपस्थिति में चीन की राजधानी बीजिंग में ओलंपिक के नाम से जाने जाने वाले खेल के इस महाकुंभ की शुरुआत हुई। गीत, संगीत और जगमगाती रोशनी के साथ इस खेल स्पर्धा में अपने खिलाड़ियों के मार्चपास्ट के साथ विश्र्व के 204 देशों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ओलंपिक खेलों की विश्र्व-स्पर्धा का यह 29वॉं संस्करण, सही मायने में अब तक के आयोजनों में सर्वाधिक भव्य माना जाएगा। साथ ही यह भी बेहिचक स्वीकार किया जाना चाहिए कि चीन ने इस आयोजन को अपनी राष्टीय प्रतिष्ठा के साथ जोड़कर इसको भव्यातिभव्य बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
उसने ऐसा अगर किया है तो कतिपय विरोधी परिस्थितियों के बीच से गुजर कर किया है। ओलंपिक मशाल को लेकर दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तिब्बत की आ़जादी से जुड़े लोगों ने चीन के खिलाफ जो विरोध प्रदर्शन आयोजित किये और अमेरिका सहित अनेक पश्र्चिमी देशों ने मानवाधिकार का सवाल खड़ा करते हुए जैसा समर्थन इन आंदोलनकारियों को दिया, उससे यह ़जरूर लगने लगा था कि कई देश इसका बहिष्कार कर सकते हैं। इसके अलावा आयोजन पर आतंकवादी हमले का भी ़खतरा मंडराने लगा था, जिसकी सच्चाई तब सामने आई जब चीन के उत्तरी सीमा प्रांत में एक बड़ा आतंकवादी हमला देखने को मिला। लेकिन सारी विपरीतताओं के बावजूद चीन ने संयम और समझदारी का परिचय दिया। परिणामस्वरूप इस खेल-महाकुंभ के रंगारंग उद्घाटन का ऩजारा देख कर सारी दुनिया विस्मय-विमुग्ध है।
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