मटमैले रूप में, सड़क के किनारे
जिसे कभी देखा था
सर्द मौसम में
जिसका तन
आधा ढका था
जिसका पेट
पीठ से सटा था
वह आया था
इस शहर में
काम की तलाश में
उस पर अपने
परिवार का बोझ था
उसे कोई काम नहीं
देता था।
उन्हें शक था, कि
वो एक चोर है।
मंदिरों में उसका
प्रवेश मना था
क्योंकि वह निम्न जाति का था
उसके चेहरे पर
उसकी बेबसी का
चित्रण था
कल की सर्द रात में
फूटपाथ पर सोते हुए
एक अमीऱजादे ने
जिसे कुचल दिया
वह वही गरीब था।
– नित्यानन्द गायेन
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