मुनीष प्राइमरी स्कूल में जेबीटी अध्यापक था। वह जेबीटी अध्यापक केवल इस कार की वजह से बना था। यह कार न होती तो वह जेबीटी अध्यापक नहीं बन सकता था। अब जब वह मास्टर बन चुका है तो भी टैक्सी चलाता है। उसके स्कूल का मुखिया बहुत मेहरबान व्यक्ति है। छुट्टी आसानी से दे देता है। मुनीष समय-समय पर मुखी को चारा डालता रहता है। इसलिए मुखी उसको छुट्टी पर ही रखता है। जरूरत पड़े तो मुखी भी उसकी कार का इस्तेमाल कर लेता है।
उसने प्लस टू हाई स्कूल सैकेंड डिवीजन में नकल मारकर उत्तीर्ण की थी। इधर-उधर से पैसे उठाकर चलती कार ले ली थी और कार को टैक्सी के रूप में चलाने लगा था। एक दिन उसके एक रिश्तेदार ने पूछा, “”मुनीष, हर सप्ताह पड़ोसी राज्य में कुछ लड़के-लड़कियों को ले जाया करेगा?” उसने हां कर दी। पड़ोसी राज्य में कुछ लड़के-लड़कियॉं जेबीटी का कोर्स करते थे। एक लड़के ने मुनीष से कहा, “”यार तुझे हर सप्ताह यहॉं आना ही होता है। तू भी दाखिला ले ले। आता तो तू है ही। केवल हाजिरी लगानी है, हमारे साथ तू भी पेपर दे देना।” मुनीष को यह बात अच्छी लगी। उसने जेबीटी में दाखिला ले लिया। बस, फिर क्या था, सप्ताह के बाद हाजरियां लगाना और वर्ष बाद पेपर दे देना। मनीष ने मुफ्त में ही जेबीटी कर ली।
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