ई-मेल चेक करना हो या दोस्तों से चैटिंग करनी हो या रोजमर्रा का ऑफिस वर्क करना हो, हममें से ज्यादातर लोग दिनभर कंप्यूटर सीन से चिपके रहते हैं। लेकिन यह भी सही है कि मानव शरीर पी.सी. को लगातार घंटों तक इस्तेमाल करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया है। हमारा शरीर वैरायटी मांगता है। एक ही काम को एक ही तरह से लगातार करते रहने से चाहे वह की-बोर्ड पर टाइपिंग करना हो या कलाई से माउस को इधर-उधर हिलाना हो, हमारी मांसपेशियों पर सूजन आ जाती है और जोड़ों में समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इस मुश्किल का समाधान यह है कि बीच-बीच में ब्रेक लेते रहें और अपने जिस्म को स्टेच भी करते रहें। बेहतर तो यह रहेगा कि हर घंटे बाद ब्रेक लें। एक अन्य विकल्प यह है कि अपने सहकर्मी के पास चहल-कदमी करते रहें और उससे बात करें।
आज के डेस्कटॉप जॉब ने जीवन-शैली को आलसभरा बना दिया है, जिसका हमारे स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है। शोधों से मालूम हुआ है कि रोजाना छः घंटे तक लगातार डेस्क पर बैठने से ओवर वेट होने का खतरा दो गुना हो जाता है। मोटे लोगों को हृदय रोग, हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज और स्टोक का खतरा अधिक होता है। मोटापे की वजह से व्यक्ति को अच्छेपन का अहसास भी नहीं होता। इस समस्या का समाधान यह है कि आप नियमित जिम जाएं। अगर आपके पास समय की कमी है, तो घरेलू गतिविधियों के जरिए ही जिस्मानी कसरत करें। मसलन, अपने कुत्ते को वॉक पर ले जाएं, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करें, रिक्शा की जगह पैदल घर तक जाएं आदि। डायटिंग से लाभ हो सकता है, लेकिन बिना एक्सरसाइ़ज के डायटिंग भी बेकार की चीज है।
जब आप अपना लैपटॉप लिये घूमते हैं तो वास्तव में अपने काम को लेकर घूम रहे होते हैं। लैपटॉप 2.5 किलो तक का होता है और फिर उसमें चार्जर, एडाप्टर, बैग आदि भी होता है। आपको अहसास भी नहीं है कि आपकी पोर्टेबल दुनिया वास्तव में पोर्टेबल नहीं है। यह वजन आपके कंधे और कमर पर बहुत बोझ डाल देता है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारी वजन उठाने से जो चोट पहुंचती है, उसे अमूमन गंभीरता से नहीं लिया जाता। यह सही है कि लैपटॉप को छोड़ना मुमकिन नहीं है। इसलिए उसे धीमे से और सावधानी से उठायें साथ ही आप ऐसा बैग लें, जिसमें वजन दोनों कंधों पर बराबर-बराबर बंट जाये। इससे चोट का खतरा कम हो जाता है।
जब हम सीन पर ध्यान लगा रहे होते हैं तो पलकें कम ही झपकाते हैं। सामान्य से कम पलक झपकाने से आंखों का लुब्रिकेशन कम हो जाता है। आपके कंप्यूटर सीन में ऑटोमेटिक रिफ्रेश इंटरवल्स होते हैं, हालांकि आप इन्हें समझ नहीं पाते। लेकिन यह आपकी आंखों से रजिस्टर होते हैं और यह बात सभी मॉनिटर्स पर लागू होती है। इसके अलावा हमारी आंखें इस तरह डिजाइन नहीं की गयी हैं कि बहुत पास वाली चीज पर कॉन्सनटेट करें। अध्ययनों से मालूम हुआ है कि हमारी आंखें उस वक्त ज्यादा अच्छा काम करती हैं, जब कोई चीज बीस फीट या उससे अधिक फासले पर हो। इसलिए पास की चीजों से आंखों पर अधिक दबाव पड़ता है। इस समस्या का समाधान यह है कि कंप्यूटर पर एक घंटा काम करने के बाद पांच मिनट का ब्रेक लें। कहीं और देखें और जो चीज फासले पर है, उस पर फोकस करें। जानबूझ कर पलकों को झपकाते रहें। कभी-कभी आंखों में गुलाब-जल भी डाल लें।
लगातार कंप्यूटर के सामने बैठने रहने से वही स्थिति हो सकती है, जो लम्बी उड़ान के दौरान होती है यानी कहीं ब्लड क्लॉट हो सकता है, जो फेफड़ों तक भी पहुंच सकता है। 2003 में एक व्यक्ति अपने पी.सी. पर 18 घंटे तक बैठा रहा और उसे डीप-वैन फ्रॉम वाइसिस हो गया। कंप्यूटर पर यह रोग कमी के साथ होता है, लेकिन नामुमकिन नहीं है। इसलिए कंप्यूटर पर बैठे हुए जब कभी भी आप को टांगों में खिंचाव या सूजन महसूस हो, तो हल्की कसरत कर लें ताकि रक्त का संचार ठीक हो जाए।
एक अध्ययन से मालूम हुआ है कि घंटों पी.सी. के सामने बैठने से इनसोमानिया यानी नींद न आने की बीमारी हो सकती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि देर रात तक कंप्यूटर पर बैठने से बायलॉजिकल स्लीप क्लॉक प्रभावित होती है। इस कारण मेलाटॉनिक की मात्रा भी कम हो जाती है, जो कि अच्छी नींद के लिए आवश्यक है। इस समस्या का समाधान यह है कि सोने से पहले कंप्यूटर पर अधिक समय न गुजारें। अगर आप किसी ऐसे काम को कर रहे हैं, जिसे अगले दिन दफ्तर में देना जरूरी है तो बेहतर यह है कि सुबह जल्दी उठकर काम पूरा करें बजाए देर रात तक काम करने के।
– नरेन्द्र कुमार
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