अमरनाथ की गुफा भगवान शिव के प्रमुख तीर्थ-स्थलों में से सर्वोपरि है। इस गुफा में निश्र्चित समय पर बर्फ का एक शिवलिंग अवतरित होता है, जो अद्भुत व आश्र्चर्यजनक होता है। विद्वान मानते हैं कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर-कथा सुना रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे नागों को अनंतनाग नामक स्थान पर छोड़कर, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में, पिस्सुओं को पिस्सुटाप पर तथा गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थान पर छोड़ दिया था। ये सभी स्थल अमरनाथ की यात्रा में आते हैं। अमरनाथ-यात्रा का मुख्य मार्ग जम्मू तवी से आरंभ होता है और पूरा काफिला पूर्ण रूप से सुरक्षा-व्यवस्था के साथ पहलगांव के लिए प्रस्थान करता है। अमरनाथ-यात्रा पर जाने के लिए दो मार्ग हैं- एक पहलगांव से और दूसरा सोनमार्ग बालटाल से। पहलगांव का रास्ता सुविधाजनक है, जो प्रसिद्घ पर्यटक-स्थल भी है।
पहलगांव के बाद यात्रा का पहला चरण चंदनबाड़ी आता है, जो 16 किलोमीटर की दूरी पर है। यह रास्ता पैदल, मेटाडोर अथवा कार द्वारा पूरा किया जा सकता है। लिछर नदी के तट से इस पड़ाव की यात्रा सुविधाजनक होती है। यहां से आगे जाने के लिए घोड़ों, पालकियों अथवा पिट्ठुओं की सुविधा मिल जाती है। चंदनबाड़ी से पिस्सुटाप के लिए जाते हुए रास्ते में बर्फीला पुल आता है। यह घाटी सर्पाकार है, जो 10,600 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। रास्ता काफी जोखिम से भरा है।
तत्पश्र्चात् शेषनाग की दूरी 8 किलोमीटर रह जाती है, जिसकी ऊँचाई 11,630 फीट है। इसे तय करने में 4-5 घंटे लग जाते हैं। यात्री शेषनाग में ठहर जाते हैं। यहां नीले पानी की झील है। बताया जाता है कि इस झील में शेषनाग का वास है। यहां ऐसी मान्यता है कि चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील से निकल कर श्रद्घालुओं को दर्शन देते हैं। जिन श्रद्घालुओं को शेषनाग के दर्शन होते हैं, वे अपने आपको धन्य मानते हैं।
शेषनाग से पोषपत्री तथा फिर पंचतरणी की दूरी 6 किलोमीटर है, जो कि 12,500 फीट की ऊँचाई पर है। पोषपत्री में विशाल भंडारे का आयोजन होता है। यहॉं भोजन, आवास, चिकित्सा सुविधा, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि की पूर्ण सुविधा उपलब्ध रहती है। पंचतरणी में विभिन्न मार्गों में बहता पांच नदियों का संगम है। पंचतरणी से पवित्र अमरनाथ गुफा 6 किलोमीटर है, जो 13,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें 3 किलोमीटर का रास्ता बर्फ से ढका हुआ है। हिमनदी को पार करने के पश्र्चात मुख्य गुफा के दर्शन होते हैं। यह रास्ता काफी जोखिम से भरा हुआ है। यह गुफा लगभग 100 फीट लम्बी और 150 फीट चौड़ी है। इसमें हिम से निर्मित ठोस लगभग 10 फीट का शिवलिंग प्रकट होता है, लेकिन कुछ वर्षों से यह शिवलिंग छोटे आकार में निर्मित होने लगा है। पर्यावरण विदों और वैज्ञानिकों ने इसका कारण इस पवित्र गुफा के आस-पास भक्तों व पर्यटकों के जमावड़े से उत्पन्न प्रदूषण को माना है।
लाखों की संख्या में यहां श्रद्घालु आते हैं, जिनमें छोटे बच्चों से लेकर वृद्घजन तक होते हैं। भक्तगण कठिन यात्रा द्वारा हिमलिंग के दर्शन करके अपने आपको धन्य मानते हैं। यह यात्रा आषाढ़ मास की पूर्णिमा से आरंभ होकर रक्षा बंधन तक चलती है। सावन के पूरे महीने में देश-विदेश से यहॉं आने वाले भक्तों की भीड़ उमड़ी रहती है। उनके होंठों पर “बम-बम भोले हर-हर महादेव’ का नाम रहता है।
इस पवित्र गुफा में पहुँचते ही सारी थकान दूर हो जाती है और आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है। गुफा का भीतरी हिस्सा लाल रंग की रेलिंग का बना हुआ है। इसका मुंह उत्तर-पश्र्चिम की ओर पड़ता है। यहां से लगभग 3000 फीट की ऊंचाई पर पर्वत की चोटी है, जिसका भीतरी भाग लगभग 40 फीट चौड़ा है। इस गुफा में बर्फ इस जगह पर और एक निश्र्चित स्थान पर गिरने से शिवलिंग निर्मित होता है। श्रावण पूर्णिमा के दिन यह अपने वास्तविक आकार में निर्मित हो जाता है और इसी माह की अमावस्या तक धीरे-धीरे लघुतम होता जाता है।
साधारणतया गुफा में कच्ची बर्फ होती है, लेकिन यह अद्भुत एवं आश्र्चर्यजनक बात है कि शिवलिंग ठोस बर्फ का ही बना होता है। इसके साथ ही बायीं तरफ गणेश व पार्वती के हिमखंड रूप भी बने होते हैं। प्राचीन काल से एक कथा प्रचलित रही है कि भगवान शंकर ने माता पार्वती को इस अमर गुफा में सृष्टि की रचना के रहस्य से संबंधित कथा सुनाई थी। इस गुफा में एक कबूतर का जोड़ा भी था, जिसके बारे में महादेव व सती को पता नहीं था। इस जोड़े ने रहस्यमयी कथा को सुन लिया। ऐसा माना जाता है कि इस कथा का श्रवण करने के कारण वह जोड़ा अमर हो गया और वहीं अपना स्थाई निवास बनाकर यात्रियों को आज भी दर्शन देता है।
यहॉं आने-जाने का एक मार्ग बालटाल से भी है। यह मार्ग थोड़ा कठिन व जोखिम भरा है। इसकी दूरी 15 किलोमीटर है। वापसी में बालटाल होकर श्रीनगर की सुंदर वादियों का आनंद लिया जा सकता है। यहॉं से पवित्र गुफा तक हेलीकॉप्टर द्वारा भी पहुंचा जा सकता है। यह मार्ग कठिन और जोखिम से भरा होने पर भी प्रकृति के अद्भुत दृश्यों से भरपूर है। यह यात्रा करके निश्र्चित रूप से हम भगवान शिव की महिमा से अभिभूत हो जाते हैं। यह उक्ति सार्थक हो जाती है-
“जोगी तेरा रूप निराला,
अमरनाथ में डेरा डाला’
– निर्मल वर्मा
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