“”मैं अजर हूँ, अमर हूँ, अक्षय, अविनाशी, परम प्रकाश हूँ, इस धारणा की पूर्ण पुष्टि को वैराग्य कहा जाता है। सांसारिकता का मोह नष्ट हो जाय, यही वैराग्य है।”
पाठशाला
“”मस्तिष्कीय ज्ञान विकास एवं धारणा परिपक्व करने के लिए अध्ययन-अध्यापन की आवश्यकता पड़ती है। आवश्यक नहीं कि वह पुस्तकों के आधार पर ही अर्जित किया जाय और अध्यापक ही उसे पढ़ाए। यह समूचा संसार एक पाठशाला है। इसमें रहने वाले मनुष्यों और प्राणियों की घटनाएँ निरंतर कुछ-न-कुछ सिखआती रहती हैं।”
-पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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