“”उपासना से भावना का, जीवन साधना से व्यक्तित्व का और आराधना से क्रियाशीलता का परिष्कार और विकास होता है। आराधना उदार सेवा-भावना से सधती है और श्रेष्ठतर सेवा वह है, जिससे किसी की पीड़ा का, अभावों का निवारण होता है।”
सार्थक जन्म
“”समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी के चार सद्गुणों को व्यक्तित्व का अंग बनाने से ही जीवन साधना सधती है। इन्हीं आधारों को अपनाकर ही मनुष्य जन्म को सार्थक बनाया जा सकता है।”
चार पुरुषार्थ
“”साधना, स्वाध्याय, संयम और सेवा के चार पुरुषार्थ में ही जीवन की प्रगति एवं सफलता बन पड़ती है। इसलिए दिनचर्या में इन चारों के लिए समुचित स्थान रहना चाहिए।”
मनुष्य जन्म
“”मनुष्य जन्म जीवनधारी के लिए सबसे बड़ा सौभाग्य है। इसका सदुपयोग बन पड़ना ही किसी की उच्चस्तरीय बुद्घिमत्ता का प्रमाण-परिचय है।”
– पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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