ज्ञान की प्राप्ति में साधना का महत्व

Gyan ki Praptiहर कोई चाहता है कि ज्ञानवान बने। इसके लिए अधिक से अधिक पढ़ाई करते हैं। लेकिन क्या कोई पढ़ने मात्र से ज्ञानी बन सकता है? वैदिक परम्परा से भारत को जो ज्ञान मिला है, वह विश्र्व का सर्वोत्कृष्ट ज्ञान है। इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बड़ी-बड़ी किताबें नहीं पढ़नी पड़तीं। यह ज्ञान आत्मचेतना को जागृत करके प्राप्त होता है। इसीलिए अपने यहां कहा जाता है कि ज्ञान किताबों से नहीं बल्कि साधना से प्राप्त होता है और भावातीत ध्यान तथा भावातीत ध्यान सिद्धि कार्याम साधना की सबसे सुगम विधा है। आधुनिक विज्ञान के शोधों से भी स्पष्ट हो गया है कि देवी-देवताओं की संस्थाएँ मनुष्य के मस्तिष्क, हृदय एवं अन्य अंगों में विद्यमान हैं। भावातीत ध्यान और भावातीत ध्यान सिद्ध कार्याम के अभ्यास से मनुष्य की चेतना जैसे-जैसे भावातीत, परा, भगवद् और ब्राह्मी स्तर तक जागृत हो जाती है, वैसे-वैसे ये देवी-देवता संकल्प मात्र से व्यक्ति और समाज के काम स्वतः ही पूरा करने लगते हैं।

इस यौगिक-शैली के नियमित अभ्यास से साधक भावातीत, परा और भगवद्चेतना के पश्र्चात् उस ब्राह्मी चेतना में प्रतिष्ठित हो जाता है, जो अखण्ड शांत होने के साथ-साथ अनन्त िायाशीलता का क्षेत्र है। ब्राह्मी चेतना का क्षेत्र कण से लेकर अनन्त तक विस्तारित है। इसी के संदर्भ में श्रुति अणोरणीयान और महतोमहीयान का गान करती है। यह अव्यक्त का क्षेत्र है। इसी क्षेत्र में वेद की पूरी सत्ता, सृष्टि के सारे नियम एक साथ स्थित हैं। ़

भारत और उसका वैदिक ज्ञान अत्यन्त विलक्षण है। इससे यहां की जीवनचर्या में जीवन को दैवी-चेतना से अनुप्राणित रखने का विधान है। जगह-जगह दैवी पीठें हैं। द्वादशज्योतिर्लिंग हैं, शक्ति पीठें हैं, तीर्थ हैं। यहॉं का हर दिन किसी न किसी देवता से सम्बद्ध है। भारत के गांव-गांव के लोक-जीवन में विभिन्न देवी-देवताओं की शक्ति की मान्यता है और इन्हीं की शक्ति को अपनी तथा सामूहिक चेतना में जागृत करने के लिए समय-समय पर विशिष्ट देवता से जुड़े पर्व-त्योहार हैं। इन अवसरों पर संबंधित देवी-देवता का आठान कर उनकी विधिवत पूजा, अर्चना मंत्रोच्चार और साधना की जो परम्परा है, उससे सामूहिक चेतना में दैवी-चेतना का अनवरत लहरा चलता रहता है। इन पर्वों और त्योहारों में कभी कोई भक्त विष्णु, तो कोई गणेश, कोई शिव, कोई सूर्य, कोई मां दुर्गा, कोई महालक्ष्मी के सहस्त्रनाम, स्तोत्र का पाठ करता है। कहीं कोई यज्ञ होता है, तो कहीं अनुष्ठान। इस सबसे परिवार, नगर, प्रांत और राष्ट्र की चेतना में दैवी तत्व निरंतर प्रवाहमान रहता है।

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