काका हाथरसी ने उनके बारे में कहा था-
शैल मंच पर चढ़ेे तब मच जाता है शोर
हास्य व्यंग्य के “शैल’ यह जमते हैं घनघोर
जमते हैं घनघोर, ठहाके मारें बाबू
मंत्री संत्री लाला लाली हों बेकाबू
काका का आशीष विश्र्व में ख्याति मिलेगी
बिना चरण “चल गयी’ ह़जारों वर्ष चलेगी
उन्हें गु़जरे लगभग एक साल होने को आ रहा है। शैल चतुर्वेदी जी की याद पिछले दिनों एक महफिल में अचानक आ गयी, जब कुछ हास्य-व्यंग्यकार बैठ कर बीते दिनों की यादें ता़जा कर रहे थे। लगभग 5 दशकों तक हिन्दी कविता के हास्य-व्यंग्य मंचों पर अपनी गहरी छाप छोड़ने वाले शैल जी को याद करने के लिए उनकी वह एक कविता “चल गयी’ ही काफी है, जिसे लंबे समय तक मंचों पर बार-बार सुना गया और सराहा गया। कविता की पंक्तियों से गु़जरते हुए अनायास ही हॅंसी छूट जाती है। एक शरीफ इन्सान को भी बिना कारण आँख के चल जाने से किस तरह परेशानी का सामना करना पड़ता है, इसका उल्लेख कुछ यूँ किया था शैल जी ने-
एक बार बचपन में
शायद सन पचपन में
क्लास में
एक लड़की बैठी थी पास में
नाम था सुरेखा
उसने मुझे देखा
और बांयी चल गयी
लड़की हाय हाय कर
क्लास छोड़ कर
बाहर निकल गयी
इस कमबख्त आँख के चल जाने के बाद जो कुछ होना था हुआ। आम कविता होती तो यहीं समाप्त हो जाती, लेकिन वह शैल जी की कविता थी, ऐसे ही कैसे खत्म होती, प्रिंसीपल के साथ की घटना का ़िजा कुछ यूँ होता है-
प्रिंसीपल ने बुलाया
लंबा चौड़ा लेक्चर पिलाया
हमने कहा कि जी भूल हो गयी
वो बोले ऐसा भी होता है भूल में
शर्म नहीं आती
ऐसी गंदी हरकतें करते हुए
स्कूल में?
और इससे पहले कि
ह़की़कत बयान करते
कि फिर चल गयी
प्रिंसीपल को खल गयी
हुआ परिणाम
कट गया नाम
हालांकि यह कविता एक छोटे-से तत्व पर आधारित है कि जिसकी आँख खुदबखुद ही चल जाती है, उसे किस-किस तरह की घटनाओं से गु़जरना पड़ता है। इन्टरव्यू के लिए ़कतार में खड़े होने के बाद किसी लड़की से आँख चल जाने के बाद जूतम-पै़जार और फिर सिर फुटा कर घर आना।… कवि के साथ मुश्किल यह है कि ़जबान चलने से पहले ही वह चल जाती है, इसलिए वह अपनी म़जबूरी बताने से पहले ही आँख के चल जाने के खामिया़जे को भुगतने के लिए मजबूर हैं। चाहे जान बचाने के लिए वह जिस घर में आसरा लिये हों और गृहलक्ष्मी के सामने हों या फिर मरहम-पट्टी करने वाली नर्स के सामने। जब चल जाती है तो फिर पिटना ही पड़ता है।
…जब हमें आया होश
तो देखा अस्पताल में पड़े थे
डॉक्टर और नर्स घेरे खड़े थे
हमने अपनी एक आँख खोली
तो एक नर्स बोली
दर्द कहॉं है
हम कहॉं कहॉं बताते
और इससे पहले कि कुछ कह पाते
चल गयी
नर्स कुछ नहीं बोली
बायीं गॉड (चल गयी)
मगर डॉक्टर को खल गयी
बोला
इतने सीरियस हो
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो
इस हाल मे शर्म नहीं आती
मोहब्बत करते हुए
अस्पताल में
इस चलने वाली आँख के कारण कहॉं-कहॉं शर्मिन्दा नहीं होना पड़ता। जब आ़िखरकार शादी के लिए एक लड़की देखने जाते हैं तो लड़की से पहले सास पर ही चल जाती है और लड़की के साथ रुपया-पैसा तो आना दूर लड़की भी हाथ से निकल जाती है।
पहुंच गये रुड़की देखने लड़की
शायद हमरी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली
यात्रा में तकलीफ़ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गयी
वे समझीं कि मचल गयी
बोली
लड़की तो अंदर है
मैं लड़की की मॉं हूँ
लड़की को बुलाऊँ
और इससे पहले कि मै ़जुबान हिलाऊँ
आँख चल गयी दोबारा
उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा
झटके से खड़ी हो गयी
हम जैसे गये थे लौट आये
शैल चतुर्वेदी जी इस एक “चल गयी’ की बदौलत हर जगह चल जाते और लोग यही कविता सुनने के लिए बार-बार सिफ़ारिश करते। आम आदमी के सहज सरल कवि माने जाने वाले कवि शैल चतुर्वेदी की इस कविता की लोकप्रियता का अंदा़जा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके लिए उन्हें “काका हाथरसी सम्मान’ और “ठिठोली पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका था।
गोपाल व्यास, काका हाथरसी और हुल्लड़ मुरादाबादी की काव्य-परंपरा को आगे बढ़ाने के अलावा उन्होंने “उपहार’, “चितचोर’, “हम दो हमारे दो’, “चमेली की शादी’, “नरसिम्हा’, “जहॉं तुम ले चलो’ जैसी फिल्मों में चरित्र अभिनेता के रूप में भी कार्य किया था। कई हिन्दी फिल्मों के गीत भी लिखे।
– एफ. एम. सलीम
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