हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले में नारनौल शहर के पश्र्चिम में आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ढोसी। प्राचीन समय में यहॉं सघन वन था। ढोसी की पहाड़ी हरियाणा में सबसे ऊँची पहाड़ियों में से एक है। आज यहॉं घने वन नहीं रहे, किन्तु इसके धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए पहाड़ी की चोटी पर बने च्यवन ऋषि के आश्रम, मॉं मनसा देवी की गुफा और सूर्य कुंड धाम तक पहुँचने के लिए पौड़ियॉं बनायी गयी हैं और नारनौल से लेकर ढोसी की पहाड़ी तक पक्की सड़क बनी हुई है।
ढोसी हिन्दुओं का तीर्थ स्थान है। यहॉं सोमवती अमावस्या को विशाल मेला लगता है। हजारों की संख्या में लोग यहॉं चंद्र-कूप और सूर्य-कुंड में स्नान कर पुण्य के भागी बनते हैं। खड़ी और कठिन चढ़ाई के बाद जब श्रद्घालु चंद्र-कूप में स्नान करते हैं तो उनकी सारी थकान काफूर हो जाती है। च्यवन ऋषि के आश्रम में एक प्राचीन शिवालय भी है। इस पहाड़ी पर चढ़ते ही शिव कुंड धाम और पंच तीर्थ पवित्र स्थल हैं। यहॉं झरना बहता रहता है। इस झरने का निर्मल एवं शीतल जल श्रद्घालुओं की थकान को दूर करके कठिन चढ़ाई चढ़ने की अतिरिक्त क्षमता प्रदान करता है। पहाड़ी की चोटी पर एक गेट बना है। वहॉं से पश्र्चिम में सीढ़ियॉं जाती हैं, जो मॉं मनसा देवी की गुफा तक ले जाती हैं और एक ओर की सीढ़ियॉं नीचे उतरती हैं, जो च्यवन ऋषि के आश्रम में जाती हैं। पहाड़ी के बीच में एक विशाल खुला मैदान है, जहॉं च्यवन ऋषि का मंदिर और एक शिवालय बना है।
यहॉं का प्राकृतिक सौंदर्य मनोहारी है। यहॉं एक प्राचीन कुआं है, जिसे चंद्रकूप कहते हैं। अपने नाम की भांति ही इस कूप का जल चंद्रमा के समान शीतल है। आज ढोसी की पहाड़ी पर्यटन स्थल के रूप में उभर कर सामने आयी है। सैकड़ों की संख्या में रोज लोग ढोसी की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन मंदिरों एवं स्मारकों को देखने जाते हैं और पुण्य के भागी बनते हैं। ढोसी की पहाड़ी के साथ एक पौराणिक कथा भी जुड़ी है, जो इस प्रकार है –
एक बार राजा ययाति अपने परिवार और अंगरक्षकों के साथ घूमते-घूमते इस वन में आ पहुँचे और पहाड़ के ऊपर उन्होंने अपना डेरा डाल लिया। यहॉं की प्राकृतिक सुंदरता ने उन्हें रुकने को विवश कर दिया। एक दिन राजा की बेटी सुकन्या अपनी सहेलियों के साथ घूमने निकली। घूमते-घूमते राजकुमारी को एक मिट्टी का ढेर दिखाई दिया। जब राजकुमारी उत्सुकतावश उस ढेर के पास गयी तो उस ढेर में दो छिद्र दिखाई दिये। चंचल राजकुमारी ने उन छिद्रों में दो तिनके घुसा दिये। इससे उस स्थान से खून बह निकला। राजकुमारी और उसकी सखियॉं यह देखकर डर गयीं। वे दौड़कर तंबू में राजा के पास गयीं और सारी घटना कह सुनाई। राजा तुरंत वहॉं पहुँचे और सैनिकों को ढेर की मिट्टी हटाने का आदेश दिया। जब ढेर की मिट्टी हटाई गई, तो उसमें से एक बूढ़ा ऋषि निकला, जिसकी आँखों से खून बह रहा था। राजा ने दुःखी होकर ऋषि से क्षमा मांगी और राज कुमारी को प्रायश्र्चित करने के लिए ऋषि की सेवा करने की आज्ञा देकर वहीं छोड़ दिया। ऋषि बहुत बूढ़े थे। उन्होंने देवों के वैद्य अश्र्विनी कुमारों से निवेदन किया कि उनकी शक्ति एवं ज्योति दोबारा से लौटाएँ। अश्र्विनी कुमारों ने इसी पहाड़ी पर खड़ी च्यवन जड़ी-बूटियों को एकत्रित कर उनका एक लेप बनाया, जिसे शरीर पर लगाने से ऋषि की शक्ति और उसे खाने से ज्योति दोबारा प्राप्त हो गयी।
ऋषि ने सुकन्या से शादी की और इस पहाड़ी की चोटी पर आनंदपूर्वक रहने लगे।
वर्तमान में यही स्थान ढोसी की पहाड़ी के नाम से प्रसिद्घ है। आज जो च्यवनप्राश मिलता है, वह प्राचीन समय में ढोसी की पहाड़ी पर खड़ी जड़ी-बूटियों से ही बनाया गया था। आज ढोसी की पहाड़ी हिन्दुओं का एक पूजनीय एवं पवित्र स्थल बन गया है। यहॉं शिवालय में जो शिवलिंग है, वह प्राकृतिक रूप से स्थापित है। पांडव भी अपने अज्ञातवास में यहॉं रहे थे। यहॉं दो कुंड हैं, एक स्त्रियों के नहाने के लिए और एक पुरुषों के लिए। यहॉं पर च्यवन ऋषि का एक भव्य मंदिर है, जहॉं लोग पूजा और अर्चना करते हैं।
– भूपसिंह बल्डोदिया “भारती’
You must be logged in to post a comment Login