तरबूज

आ गई गर्मी, देखो भैया,

सूख गये सब ताल-तलैया।

लू चल रही है तेज,

सूख गये हरे-भरे खेत,

पर एक खुशी खूब आई,

गर्मी अब तरबूज लाई।

मोटे, गोल, हरे-हरे

लाल-लाल रस भरे।

मुन्ना राजा खा रहा है,

मुन्नी को भी भा रहा है।

नहीं दांतों की दादी को फिा,

करती तरबूज खाने का जिा।

दादा भी ले रहे हैं स्वाद,

हो कुछ भी, खाने के बाद।

गर्मी का ये उपहार निराला,

काले-काले बीजों वाला।

खाओ भैया! तुम भी खाओ,

खाकर तरबूज गर्मी भगाओ।

– पारुल

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