संयोग तो संयोग होता है। एक तारा नष्ट हो और आपकी आँखें ठीक उसी समय आसमान के उसी हिस्से पर गड़ी हों, इससे बड़ा संयोग क्या होगा। हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों के साथ ऐसा ही संयोग हुआ।
आमतौर पर बड़े-बड़े तारों की मृत्यु तब होती है, जब उनके केंद्रीय भाग में उपस्थित ईंधन चुक जाता है। बड़े तारों से आशय है, हमारे सूरज से करीब आठ गुना बड़े तारे। जब इनका ईंधन चुक जाता है तो इनमें भयानक धमाका होता है और तारे का वायुमंडल छिन्न-भिन्न हो जाता है। बचा-खुचा केंद्रीय भाग अपने ही गुरुत्वाकर्षण से सिकुड़ने लगता है और अंततः एक ब्लैक होल या न्यूटॉन तारा बनकर रह जाता है। ऐसे धमाकों को सुपरनोवा कहते हैं।
हर साल सैकड़ों सुपरनोवा देखे जाते हैं। मगर इन्हें तभी देखा जाता है, जब इनके मलबे में मौजूद रेडियो सिाय धातु “निक्कल’ से निकलने वाला प्रकाश अधिकतम हो जाता है। यह वास्तविक धमाके के चंद सप्ताह बाद होता है। मगर तब तक यह पता करने का समय गुजर चुका होता है कि फूटने वाला तारा किस किस्म का था।
मगर एलिसिया सोडरबर्ग और उनके साथियों की किस्मत अच्छी थी। वे तो नासा की एक अंतरिक्ष दूरबीन से एक निहारिका को देखने की कोशिश कर रही थीं जो हमसे 88 प्रकाश वर्ष दूर है। उसी समय उन्हें एक संक्षिप्त लेकिन तीक्ष्ण एक्स-रे संकेत मिला। ऐसा संकेत सुपरनोवा धमाके का स्पष्ट लक्षण होता है। इस संकेत के कारण गैस अचानक निकल भागती है। सोडरबर्ग के मुताबिक यह संकेत चंद मिनटों का ही था।
इस संकेत के विश्र्लेषण से पता चलता है कि जो तारा फूटा था वह विशाल, गर्म और चमकीले किस्म का था। इन्हें वुल्फ-रेयेट तारे कहते हैं। यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि शॉक तरंग को इसके केंद्र से परिधि पर आने में पूरे दस मिनट लगे होंगे।
बहरहाल, यह तो संयोग की बात हुई मगर भविष्य में शायद हमें संयोगों के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। नासा द्वारा अब ऐसी अंतरिक्ष स्थित दूरबीनों की योजना बनाई जा रही है, जो काफी नियमित रूप से पूरे आकाश को खंगाला करेंगी।
इनमें से एक दूरबीन है-एनर्जेटिक एक्स-रे इमेजिंग टेलीस्कोप (एक्सिस्ट) जो हर 95 मिनट में पूरे आसमान का एक अवलोकन कर लेगी। उम्मीद है कि एक्सिस्ट जैसी दूरबीनें हर साल ह़जारों सुपरनोवा वारदातों का सुराग देंगी।
संयोग तो संयोग होता है। एक तारा नष्ट हो और आपकी आँखें ठीक उसी समय आसमान के उसी हिस्से पर गड़ी हों, इससे बड़ा संयोग क्या होगा। हाल ही में कुछ वैज्ञानिकों के साथ ऐसा ही संयोग हुआ।
आमतौर पर बड़े-बड़े तारों की मृत्यु तब होती है, जब उनके केंद्रीय भाग में उपस्थित ईंधन चुक जाता है। बड़े तारों से आशय है, हमारे सूरज से करीब आठ गुना बड़े तारे। जब इनका ईंधन चुक जाता है तो इनमें भयानक धमाका होता है और तारे का वायुमंडल छिन्न-भिन्न हो जाता है। बचा-खुचा केंद्रीय भाग अपने ही गुरुत्वाकर्षण से सिकुड़ने लगता है और अंततः एक ब्लैक होल या न्यूटॉन तारा बनकर रह जाता है। ऐसे धमाकों को सुपरनोवा कहते हैं।
हर साल सैकड़ों सुपरनोवा देखे जाते हैं। मगर इन्हें तभी देखा जाता है, जब इनके मलबे में मौजूद रेडियो सिाय धातु “निक्कल’ से निकलने वाला प्रकाश अधिकतम हो जाता है। यह वास्तविक धमाके के चंद सप्ताह बाद होता है। मगर तब तक यह पता करने का समय गुजर चुका होता है कि फूटने वाला तारा किस किस्म का था।
मगर एलिसिया सोडरबर्ग और उनके साथियों की किस्मत अच्छी थी। वे तो नासा की एक अंतरिक्ष दूरबीन से एक निहारिका को देखने की कोशिश कर रही थीं जो हमसे 88 प्रकाश वर्ष दूर है। उसी समय उन्हें एक संक्षिप्त लेकिन तीक्ष्ण एक्स-रे संकेत मिला। ऐसा संकेत सुपरनोवा धमाके का स्पष्ट लक्षण होता है। इस संकेत के कारण गैस अचानक निकल भागती है। सोडरबर्ग के मुताबिक यह संकेत चंद मिनटों का ही था।
इस संकेत के विश्र्लेषण से पता चलता है कि जो तारा फूटा था वह विशाल, गर्म और चमकीले किस्म का था। इन्हें वुल्फ-रेयेट तारे कहते हैं। यह भी निष्कर्ष निकाला गया कि शॉक तरंग को इसके केंद्र से परिधि पर आने में पूरे दस मिनट लगे होंगे।
बहरहाल, यह तो संयोग की बात हुई मगर भविष्य में शायद हमें संयोगों के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। नासा द्वारा अब ऐसी अंतरिक्ष स्थित दूरबीनों की योजना बनाई जा रही है, जो काफी नियमित रूप से पूरे आकाश को खंगाला करेंगी।
इनमें से एक दूरबीन है-एनर्जेटिक एक्स-रे इमेजिंग टेलीस्कोप (एक्सिस्ट) जो हर 95 मिनट में पूरे आसमान का एक अवलोकन कर लेगी। उम्मीद है कि एक्सिस्ट जैसी दूरबीनें हर साल ह़जारों सुपरनोवा वारदातों का सुराग देंगी।
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