(1)
जान कर तुम
क्यों अनजान बन गये
मेरे दीवानेपन का
सामान बन गये
पागल होने की हद तक
चाहा है तुम्हें
जाने फिर भी क्यों
तुम चॉंद बन गये
(2)
अपनी ़िंजदगी का एक दिन तो
मेरे नाम कर दो
झूठमूठ ही सही कुछ तो
बदनाम कर दो
जीने के लिए
इतना सहारा काफ़ी होगा
मेरी खुशियों के लिए
इतना-सा काम कर दो
(3)
मैं प्रणय वचन में बंधी हुई
मैं विरह तीर से बिंधी हुई
मत पूछ व्यथा मेरी मुझसे
मैं घायल विरहन छली हुई
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