बालक-बूढ़े एक स्वभाऊ यह महज कहावत नहीं है बल्कि जीवन की वास्तविकता है। बुढ़ापा वास्तव में जीवन में दोबारा से बचपन का लौटना है। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक बुढ़ापा सेकेंड चाइल्डहुड स्टेज है। 58-60 साल की उम्र तक बेहद व्यस्त रहने के बाद जब कोई रिटायर होकर घर में रहने लगता है, तो उसे अकेलापन सताता है। वह निराश और चिड़चिड़ा हो जाता है। बीमारी के समय यह चिड़चिड़ापन और बढ़ जाता है। वह छोटी-छोटी बातों पर नाराज होने लगता है, जिद करने लगता है। ऐसे में वृद्धों को उसी तरह प्यार-दुलार से मनाने की जरूरत होती है, जैसे वे हमें बचपन में मनाते थे। ऐसे समय में ये करें-
– इस उम्र के बूढ़े चाहते हैं कि घर में एकदम शांति रहे। जरा-सी भी आवाज उनके कानों में न पड़े। इसलिए जहां तक संभव हो, शांत रहें। घर के माहौल को भी शांतिपूर्ण बनायें।
– उनसे बातें करें ताकि वह बोर न हों।
– उनसे उनकी पुरानी बातें सुनें, जिन्हें सुनाने में उन्हें इतना मजा आता है कि वह अपनी सारी नाराजगी भूल जाते हैं।
– नौकरों का किया काम उन्हें अक्सर पसंद नहीं आता, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनका काम नौकर शायद इसलिए कर रहा है क्योंकि उनकी अहमियत नहीं है। इसलिए उनका काम जहां तक संभव हो, खुद कर दें।
– संभव है उम्र के इस पड़ाव पर हम भी अपने बहू-बेटों के सामने जिदों का अंबार लगा दें। इसलिए इस उम्र की जरूरत को समझें।
मनोचिकित्सक डॉ. जितेन्द्र नागपाल के अनुसार, इस उम्र में हर किसी को शारीरिक समस्याएं भी होने लगती हैं। क्योंकि उनकी फिजिकल एक्टिविटी कम हो जाती है। अकेलेपन के कारण निराशा का भाव घर करने लगता है। इससे वह डिप्रेशन का शिकार होने लगते हैं। इसलिए यदि बीमारी के समय में हम उन्हें वक्त दें और अपनी फीलिंग्स उनसे शेयर करें, उन्हें एहसास करायें कि वह हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं, तो उनकी तुनकमिजाजी जाती रहेगी।
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर उम्र के इस दौर में हमें भी अपनी अगली पीढ़ी से प्यार और सम्मान चाहिए तो हमें अपने बुजुर्गों की इज्जत करनी होगी और अपने बच्चों को भी सिखाना होगा कि बुजुर्ग हमारा वह खजाना हैं, जो ढेर सारे अनुभवों को सहेजे हुए हैं। इन अनुभवों से हम अपने जीवन की समस्याएं भी सुलझा सकते हैं।
तुनकमिजाज वृद्धों को मनाते समय याद रखें जिस घर में बड़े-बूढ़े हैं, वहां जेनरेशन गैप की समस्या बनी रहती है, पर बच्चों की तरह बड़े-बूढ़े भी घर की रौनक होते हैं। हमारे बुजुर्ग हम से नाराज हो जाएं या किसी बात पर तुनक जाएं तो उन्हें किसी भी तरह मनाकर आप अपना फर्ज पूरा करें। यदि घर में बीमार वृद्ध हैं और उनसे अकेलापन बर्दाश्त न हो तो कोई न कोई घर का सदस्य उनके साथ रहे। आप कितने ही व्यस्त क्यों न हों, अपने घर के बड़े-बूढ़ों को समय जरूर दें, उनसे बात करें। आपके ऐसा करने पर वह सारी नाराजगी भूल जाएंगे। प्रयत्न करें कि घर के बुजुर्ग भी आपके घर की गतिविधियों का हिस्सा हों। उनसे छोटे-बड़े कामों में राय मांगें। समय-समय पर उन्हें अपने साथ घुमाने ले जाएं। अगर अभी तक आपके बुजुर्ग बिजनेस या घर में सर्वेसर्वा थे तो उनका यह एहसास बरकरार रखें कि वह कितने महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा-
-अपने बच्चों को बुजुर्गों का सम्मान करना सिखाएं ताकि बड़े-बूढ़े इस बात से संतुष्ट हों कि नयी पीढ़ी को उनका लिहाज है।
-बीमारी में बुजुर्गों की खाने-पीने की डिमांड बहुत अटपटी होती है। इसके लिए आप डॉक्टर की राय के अनुसार उनकी डिमांड पूरी करें ताकि वह हठ का रूप न ले लें।
-बुजुर्गों को अपने जीवन का हिस्सा बनायें ताकि वे अपने आप को उपेक्षित न समझें।
-बुजुर्गों के पास अनुभव तो होता ही है साथ ही साथ उन्हें यह भी लगता है कि उनकी जानकारी ज्यादा मुफीद है। जबकि कई बार जानकारी के मामले में वह पिछड़े ही होते हैं फिर भी उन्हें बुरा न लगे, इसलिए उनकी जानकारी को ध्यान से सुनें। यह न कहें तुम चुप बैठो।
-बुजुर्गों को भी बच्चों की तरह अपनी प्रशंसा सुनने की आदत होती है, इसलिए जरूरी होने पर उनकी तारीफ जरूर करें।
– नीलम अरोड़ा
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